‘क्या मुल्ला पाकिस्तानियों को पागलपन की तरफ ढकेल रहे हैं?’

पाकिस्तानी अखबार डेली टाइम्स ने लिखा है कि 'क्या मौलवियों और मुल्लाओं की दासता मानकर पाकिस्तानी पागलपन की कगार पर पहुंच गए हैं.' अखबार ने 'एक्सीडेंटल ब्लैसफमी' शीर्षक के अपने संपादकीय में यह सवाल उठाया है.

Advertisement
‘क्या मुल्ला पाकिस्तानियों को पागलपन की तरफ ढकेल रहे हैं?’

Admin

  • January 19, 2016 4:02 am Asia/KolkataIST, Updated 9 years ago
इस्लामाबाद. पाकिस्तानी अखबार डेली टाइम्स ने लिखा है कि ‘क्या मौलवियों और मुल्लाओं की दासता मानकर पाकिस्तानी पागलपन की कगार पर पहुंच गए हैं.’ अखबार ने ‘एक्सीडेंटल ब्लैसफमी’ शीर्षक के अपने संपादकीय में यह सवाल उठाया है. यह संपादकीय उस घटना के मद्देनजर लिखा गया है जिसमें 15 साल के एक लड़के ने यह समझकर कि उससे ईश निंदा हुई है, अपना हाथ काट लिया था.
 
अखबार ने संपादकीय में लिखा है कि एक ऐसे देश में जहां धार्मिक कट्टरता इतने नग्न रूप में आम आदमी के होशोहवास पर छा गई हो और जहां मस्जिद के लाउडस्पीकर पर किया गया एक ऐलान किसी बदकिस्मत आरोपी के पीछे भीड़ को दौड़ा देता हो, वहां कोई भी बात अब चकित नहीं करती.
 
संपादकीय में कहा गया है, “हाल में एक बेहद भयावह घटना हुई. 15 साल के एक लड़के ने अपना हाथ काट लिया. उसने खुद को सजा देने के लिए ऐसा किया क्योंकि उसे लगा था कि उससे ईशनिंदा हुई है.” 
 
अखबार ने लिखा है कि लाहौर के पास एक गांव में इमाम ने पूछा था कि जो लोग पैगंबर मुहम्मद को प्रेम करते हैं, वे नमाज पढ़ते हैं. फिर उसने पूछा कि किसने नमाज पढ़ना छोड़ दिया है. जिसने छोड़ा है, वह हाथ उठाए. 
 
बच्चे ने सवाल समझा नहीं और हाथ उठा दिया. लोगों ने तुरंत उस पर धर्म विरोधी होने की तोहमत लगाई. बच्चा घर गया. जो हाथ उठाया था, उसे काटा और तश्तरी में रखकर कटे हुए हाथ को इमाम को दे दिया. उसने कहा कि उसे इसमें किसी तरह की तकलीफ नहीं हुई.
 
संपादकीय में कहा गया है कि लड़के पर पागलपन सवार था. लेकिन, समुदाय के अन्य लोग और खुद उसके घरवाले इस पर खुशी मना रहे थे. ताजा सूचना यह है कि इमाम को पुलिस ने पकड़ लिया है. अखबार ने लिखा है कि बातों को या तो सही या गलत में देखने के नजरिए ने समाज को धर्म के उदात्त मूल्यों से दूर कर इसे औरों से हिंसक प्रतिशोध लेने का जरिया बना दिया है.
 
अखबार ने लिखा है कि लड़के में पैदा हुआ डर साफ है. वह अपनी चेतना पर विश्वास नहीं कर पा रहा है. यही डर हमें धर्म से बेहद दूर के भी किसी मामले में किसी भी तरह के वाद-विवाद से दूर ले जाकर दिमाग को एक कोठरी में बंद कर देने वाला साबित हो रहा है.
 
अखबार ने लिखा है कि अगर इस डर से नहीं निपटा गया तो इससे होने वाले खतरों से पार पाना नामुमकिन हो जाएगा. अखबार ने इसके लिए सरकार, मीडिया और अन्य नागरिक संस्थानों पर पर्याप्त जोर नहीं देने का आरोप लगाया.

Tags

Advertisement