इस्लामाबाद. भारत और पाकिस्तान को अपनी वार्ता के मामले में ‘बाहरी दबावों’ पर अपना ध्यान नहीं केंद्रित करना चाहिए क्योंकि ये दबाव वार्ता की संभावनाओं को कुंद कर सकते हैं. अखबार ‘डॉन’ ने अपने संपादकीय में लिखा, “यह अनुमान लगाया जा रहा है कि भारत-पाकिस्तान की दोस्ती की शुरुआत बाहरी कूटनीति, खासकर अमेरिका की कूटनीति की वजह से संभव हो सकी है.”
अखबार ने लिखा है कि पठानकोट पर आतंकी हमले की वजह से वार्ता में देरी नहीं होनी चाहिए क्योंकि यह सबसे तात्कालिक मसला है जिसे भारत और पाकिस्तान को खुद सुलझाना है.
अखबार ने लिखा है, “उच्च कोटि की कूटनीति और गंभीर खुफिया सहयोग की इस वक्त सबसे अधिक जरूरत है. बजाए इसके कि भारत पर ही सारे सबूत देने की जिम्मेदारी सौंप दी जाए, पाकिस्तान में भी इस हमले की अलग से जांच की जानी चाहिए.”
संपादकीय में लिखा गया है, “नाखुशगवार सच यह है कि पठानकोट हमले ने एक बार फिर भारत और पाक के रिश्तों को अपना बंधक बना लेने की आतंकवाद की क्षमता का इजहार किया है. अगर दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक विवादों को कभी भी सुलझाना है तो फिर ये ऐसे में नहीं हो सकता कि आतंकवाद जब चाहे तब आसानी से अपना दखल दे सके.”