पेरिस. सौर ऊर्जा के अधिक से अधिक इस्तेमाल के लिए 122 देशों का महागठबंधन बनाने के प्रस्ताव के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पेरिस में 12 दिवसीय जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में पहुंच गए हैं. हालांकि मोदी ने पृथ्वी के तापमान बढ़ने की जिम्मेदारी सभी पर डालने की बात कहकर विकासशील देशों का रुख स्पष्ट कर दिया है.
विकसित देशों पर भी हो जिम्मेदारी
सभी पर जिम्मेदारी डालने वाली प्रधानमंत्री मोदी की बात इसलिए काफी महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि विकसित देश जलवायु परिवर्तन के खिलाफ संघर्ष की अधिक जिम्मेदारी भारत जैसे विकासशील देशों पर डालने की कोशिश कर रहे हैं . जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर भारत का कहना है कि विकसित देश सदियों से बड़े प्रदूषक हैं और उन्हें विकासशील देशों को कोष मुहैया कर और कम कीमत पर प्रौद्योगिकी उपलब्ध करा कर ग्लोबल वार्मिंग से लड़ने में व्यापक भूमिका निभानी चाहिए.
क्या चाहता है भारत
भारत यह उल्लेख करता रहा है कि विकसित देश सदियों से बड़े प्रदूषक रहे हैं और उन्हें विकासशील देशों को धन मुहैया कराकर तथा कम कीमत पर प्रौद्योगिकी देकर ग्लोबल वार्मिंग से लड़ने में बड़ी भूमिका निभानी चाहिए. चुनिंदा देशों के समूह में शामिल होते हुए भारत ने कहा कि वह राष्ट्रमंडल में संवेदनशील देशों को 25 लाख डॉलर मुहैया कराएगा जिससे कि उन्हें स्वच्छ ऊर्जा हासिल करने और ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती करने में मदद मिल सके.
भारत के लिए ये हैं 7 चैलेंज
1. पॉल्यूशन कम करने के लिए 2030 तक 40 पर्सेंट बिजली सोलर और विंड एनर्जी के जरिए पैदा करने का फैसला किया है.
2. इसके अलावा इतने फॉरेस्ट डेवलप किए जाएंगे, जो 2 से 3 टन कार्बन डाइऑक्साइड सोखेंगे. शुरुआती अनुमान के अनुसार भारत को इसके लिए करीब 14 लाख करोड़ रुपए खर्च करने पड़ेंगे.
3. भारत ने क्लाइमेट चेंज पॉलिसी के लिए आठ टारगेट तय किए हैं. इसमें ग्रीन हाउस गैसों में से एक कार्बन इमिशन में 33-35 पर्सेंट की कटौती की बात है.
4. इस समिट में प्रधानमंत्री मोदी, यूएस प्रेसिडेंट बराक ओबामा, रूसी प्रेसिडेंट व्लादिमीर पुतिन, चीन के प्रेसिडेंट शी जिनपिंग, ब्रिटिश पीएम डेविड कैमरन और फ्रांस के प्रेसिडेंट फ्रांस्वा ओलांद के अलावा 190 से ज्यादा देशों के स्टेट हेड हिस्सा लें रहे हैं और उन्हीं को अपनी शर्तों पर मनाना सबसे बड़ी परेशानी है.
5. समिट का मकसद दुनिया के औसत तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस के इजाफे को रोकना है. भारत इसके लिए किए जाने वाले उपायों में सभी की बराबर हिस्सेदारी चाहता है.
6. यूनाइटेड नेशन्स पहली बार क्लाइमेट चेंज से निपटने के मद्देनजर ग्लोबल डील पर रजामंदी चाहता है.
7. एक अनुमान के अनुसार 2100 तक 1.5 से लेकर 3.5 डिग्री सेल्सियस तक धरती का तापमान बढ़ना तय माना जा रहा है. कार्बन उत्सर्जन में भारत चीन के बाद दूसरे नंबर पर है.
क्या है कार्बन उत्सर्जन की स्थिति
देश करंट कार्बन इमिशन प्रोजेक्टेड इमिशन (2020 ) इतनी करेंगे कटौती
चीन 6.01 बिलियन टन 24 बिलियन टन 18-22 %
भारत 1.5 बिलियन टन 5.5 बिलियन टन 13-18 %
ब्राजील 0.35 बिलियन टन 1.5 बिलियन टन 36-38 %
मेक्सिको 0.43 बिलियन टन 0.9 बिलियन टन 10 %
साउथ अफ्रीका 0.41 बिलियन टन 0.9 बिलियन टन 16-20 %
‘कथनी और करनी में लानी होगी समानता’
समिट से पहले भारत के पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा, ‘विकसित देशों को कथनी और करनी में समानता लानी होगी.’ उन्होंने उम्मीद जताई है कि विकसित देश कुछ लचीला रवैया अपनाएंगे. सम्मेलन के पहले दिन मोदी और फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद 122 देशों के एक महागठबंधन का प्रस्ताव रखेंगे, जिसका नाम होगा ‘इंटरनेशनल एजेंसी फॉर सोलर पॉलिसी एंड एप्लीकेशन’.
दुनिया की गरीब और उभरती अर्थव्यवस्थाएं चाहती हैं कि समृद्ध देश पर्यावरण अनुकूल प्रौद्योगिकी और धन का हस्तांतरण करें, ताकि वे राष्ट्रीय हित की रक्षा करने के साथ ही पर्यावरण को और नुकसान नहीं पहुंचाएं, क्योंकि उनका मानना है कि समृद्ध देश ही पहले धरती को प्रदूषित करने के लिए जिम्मेदार रहे हैं.
‘विकसित देशों को देना होगा हर्जाना’
भारत का कहना है कि विकसित देशों को यह समझना होगा कि समृद्धि की खोज में गत 150 सालों से अधिक समय से उन्होंने जो कार्बन उत्सर्जित किया है, उसका उन्हें हर्जाना देना होगा. भारत ने दो अक्टूबर को गांधी जयंती के अवसर पर जलवायु परिवर्तन पर अपनी कार्ययोजना ‘इंटेंडेड नेशनली डिटरमिंड कंट्रीब्यूशंस’ पेश की है, जिसमें 15 साल में कार्बन उत्सर्जन में 33-35 फीसदी कटौती करने का वादा किया गया है. 196 देशों से यह योजना जमा करने के लिए कहा गया है. इसका उपयोग वार्ता करने में किया जाएगा.
एजेंसी इनपुट भी