आखिर कौन होती है देवदासी? जिनका पुराणों में भी होता है ज़िक्र
देवदासी… ये शब्द सुनते ही मन में ये खयाल तो जरूर आता है कि इसका मतलब देवताओं की दासी से है.
ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर इन देवदासियों का काम क्या होता था और कैसे ये प्रथा को कुरिति समझा जाने लगा.
देवदासी एक ऐसी प्रथा थी जिसमें लोग अपनी कोई ख्वाहिश या आस्था में अपनी जवान लड़कियों को मंदिरों में दान कर दिया करते थे.
उनका मकसद देवी-देवताओं को प्रसन्न करना होता था और लड़कियों को दान मंदिर की सेवा करने के लिए किया जाता था.
ऐसे में माता-पिता अपनी बेटी की शादी मंदिर या देवता से कर देते थे. देवता से विवाह होने पर उस महिला को देवदासी कहकर बुलाया जाता था.
इस प्रथा की भेंट सबसे ज्यादा दलित या आदिवासी महिलाएं चढ़ती थीं, जिसके लिए कोई निश्चित उम्र तय नहीं थी, पांच या दस साल की लड़कियों को भी देवदासी बना दिया जाता था.
इतिहासकारों के मुताबिक देवदासी प्रथा की शुरुआत छठी सदी में हुई थी. आजादी के बाद भारत सरकार ने इस प्रथा पर रोक लगा दी थी.
हालांकि पुराने जमाने में देवदासियों का बहुत महत्व था और उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था.
उस समय देवदासियां दो प्रकार की हुआ करती थीं, एक वो जो मंदिरों में सेवा करती थीं और दूसरी वो जो नृत्य किया करती थीं.
देवदासी धीरे-धीरे कुरीति में तब्दिल हो गई. सबसे पहले कुंवारी लड़कियों की शादी देवताओं से कराई जाती थी. ऐसे में हर मंदिर में देवदासियों के लिए एक पुरोहित भी रखा जाता था.