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पूरी दुनिया में मचेगा हाहाकार ! 2027 तक आर्कटिक की सारी बर्फ हो जाएगी गायब, वैझानिकों ने किया चौंकाने वाला खुलासा

इस नए अध्ययन में 11 जलवायु मॉडल और 366 सिमुलेशन का उपयोग करके डेटा का विश्लेषण किया गया. वैज्ञानिकों के अनुसार, यहां की लगभग सारी बर्फ अस्थायी रूप से गायब हो सकती है.

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Artaticka
  • December 6, 2024 12:16 pm Asia/KolkataIST, Updated 1 month ago

नई दिल्ली: एक नए रिसर्च में खुलासा हुआ है कि क्लाइमेट चेंज के कारण आर्कटिक का ग्लेशियर पूरी तरह से गायब होने वाला है. इसका मतलब है कि साल 2027 में यहां पहली बार गर्मी का मौसम आ सकता है. अध्ययन के अनुसार, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के कारण आर्कटिक समुद्री बर्फ में हर दशक में औसतन 12 प्रतिशत से अधिक की कमी आ रही है,जिससे ये पिघल रही है. इसका मतलब हम उस तरफ बढ़ रहे हैं. जब सारी बर्फ अस्थायी रूप से गायब हो जाएगी.

जलवायु वैज्ञानिकों ने किया अलर्ट

ये अध्ययन हाल ही में नेचर कम्यूनिकेशन में पब्लिश हुई है,जिसमें ये कहा गया हा कि अगर इंसान अपने में थोड़ा सुधार लाये तो इस प्रक्रिया में 9 से 20 साल देरी से होगा. कोलोरैडो बोल्डर विश्वविद्यालय की जलवायु वैज्ञानिक एलेक्जेंड्रा जॉन और गोथेनबर्ग विश्वविद्यालय की सेलिन ह्यूजेस सहित एक अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान दल ने उच्च तकनीक वाले कंप्यूटर मॉडल का उपयोग करके यह भविष्यवाणी की है.

बिगड़ सकता है जलवायु का संतुलन

जलवायु वैज्ञानिक एलेक्जेंड्रा जॉन ने निष्कर्ष निकाला कि ग्रीनहाउस उत्सर्जन में कोई भी कमी समुद्री बर्फ को संरक्षित करने में मदद करेगी. उन्होंने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए तत्काल कार्रवाई के महत्व पर जोर दिया. वैज्ञानिकों के इस पूर्वानुमान ने दुनियाभर के लोगों की टेंशन बढ़ा दी है.आर्कटिक ग्लेशियर वैश्विक तापमान संतुलन, समुद्री धाराओं के प्रवाह समेत कई चीजों में अहम भूमिका निभाते हैं.

जलवायु संकट पर ICJ में भारत का रुख

भारत ने अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) में ऐतिहासिक सुनवाई के दौरान उन्होंने जलवायु संकट पैदा करने के लिए विकसित देशों की आलोचना करते हुए कहा कि उन्होंने वैश्विक कार्बन बजट का उचित उपयोग नहीं किया तथा जलवायु वित्त से संबंधित अपने वादों को पूरा नहीं किया. भारत ने कहा कि अब वे मांग कर रहे हैं कि विकासशील देश उनके संसाधनों का उपयोग बंद कर दें. भारत ने कहा जलवायु परिवर्तन में योगदान देना आसान है, तो जिम्मेदारी भी आसान होनी चाहिए. भारत ने कहा कि जलवायु परिवर्तन में सबसे कम योगदान देने के बावजूद विकासशील देश सबसे ज्यादा प्रभावित हैं.

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