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लंदन: साहित्यकार गीतांजलि श्री के उपन्यास टॉम्ब ऑफ सैंड ने रचा इतिहास, जीता इंटरनेशनल बुकर पुरस्कार

इंटरनेशनल बुकर पुरस्कार:

नई दिल्ली। प्रसिद्ध भारतीय लेखिका गीतांजलि श्री ने इतिहास रच दिया है। गीतांजलि के उपन्यास टॉम्ब ऑफ सैंड (रेत की समाधि) को प्रसिद्ध अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार 2022 मिला है। बता दें कि ये उपन्यास हिंदी में रेत की समाधि नाम से छपा था, जिसे बाद में अमेरिकन ट्रांसलेटर डेजी रॉकवेल ने अंग्रेजी में ट्रांसलेट किया और इसका नाम टॉम्ब ऑफ सैंड रखा।

13 चुनिंदा किताबों में शामिल

बता दें कि अब टॉम्ब ऑफ सैंड दुनिया की उन 13 चुनिंदा किताबों में शामिल हो गई है, जिन्हें इंटरनेशनल बुकर पुरस्कार मिला है। ब्रिटेन की राजधानी लंदन में गुरुवार को गीतांजलि श्री को ये पुरस्कार दिया गया। इस पुरस्कार में गीतांजलि को 5000 पाउंड की इनामी राशि भी मिली, जिसे वह ट्रांसलेटर डे जी रावल के साथ शेयर करेंगी।

पहली हिंदी भाषा किताब

गौरतलब है कि रेत की समाधि (टॉम्ब ऑफ सैंड ) अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतने वाली पहली हिंदी भाषा की किताब है। इस किताब में एक 80 साल की बुजुर्ग विधवा की कहानी बताई गई है। जो 1947 में स्वतंत्रता के बाद भारत और पाकिस्तान के विभाजन में अपने पति को खो देती है। जिसके बाद विधवा गहरे अवसाद में चली जाती है। काफी जद्दोजहद और परेशानी के बाद वह अपने अवसाद पर काबू पाती है और अतीत को पीछे छोड़ते हुए पाकिस्तान जाने का फैसला करती है। इस उपन्यास को राजकमल प्रकाशन ने प्रकाशित किया है।

जजों के पैनल ने बताया चमकदार उपन्यास

प्रसिद्ध अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार के जजों के पैनल की अध्यक्षता करने वाले अनुवादक फ्रैंक वाइन ने बताया कि इस उपन्यास को लेकर सभी काफी भावुक हो गए थे और लंबी बहस के बाद बहुमत से इसे किताब के लिए चुना गया। उन्होंने आगे कहा कि यह उपन्यास भारत और पाकिस्तान के विभाजन का एक चमकदार उपन्यास है। जिसमें करुणा, पुरुष और महिला, परिवार और राष्ट्र के कई आयाम जुड़े हुए हैं। वाइन ने कहा कि दर्दनाक घटनाओं की वजह से ये एक अविश्वसनीय पुस्तक बन जाती है।

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Vaibhav Mishra

असिस्टेंट प्रोड्यूसर- इनखबर | राजनीति और विदेश के मामलों पर लिखने/बोलने का काम | IIMT कॉलेज- नोएडा से पत्रकारिता की पढ़ाई | जन्मभूमि- अयोध्या, कर्मभूमि- दिल्ली

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