Russia-Ukraine Conflict: रूस को क्यों पसंद नहीं NATO, जाने क्या हैं 7 दशक पुराना विवाद?

Russia-Ukraine Conflict 

नई दिल्ली, Russia-Ukraine Conflict रूस और यूक्रेन के बीच जंग का आगाज शुरू हो गया है. रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) ने यूक्रेन के खिलाफ सैन्य कार्रवाई के आदेश दे दिए है. रूसी सेना विशेष मिलिट्री ऑपरेशन लांच करने वाली है, जिसका मकसद यूक्रेनी सैनिको का गैरफौजीकरण करना है. इससे पहले सोमवार को रूस ने यूक्रेन के 2 शहरों, डोनेत्स्क (Donetsk) और लुहंस्क (Luhansk) को अलग देश के तौर पर मान्यता दे दी थी और वहां रूसी सैनिक भेज दिए थे.

दोनों देशो के बीच विवाद की जड़ NATO को माना जा रहा है. NATO यानी नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन, इसकी शुरुआत 1949 में की गई थी. रूस चाहता है कि यूक्रेन नाटो का सदस्य नहीं बने लेकिन यूक्रेन अपनी इस जिद पर अड़ा हुआ है और नाटो से जुड़े देशो के साथ अपने सम्बन्ध बना रहा है. यदि यूक्रेन नाटो में शामिल होता है तो नाटो से जुड़े देशो के सैनिक रूस की सीमाओं पर खड़े हो जाएंगे, जो रूस को बिकुल पसंद नहीं है.

NATO क्या हैं?

दरअसल, 1939 से 1945 के बीच द्वितीय विश्व युद्ध हुआ था, जिसके बाद सोवियत संघ ने धीरे-धीरे अपनी सेनाओ का विस्तार शुरू कर दिया। सोवियत की इसी विस्तारवादी नीति को रोकने और यूरोप में राष्ट्रवाद को न पनपने के लिए अमेरिका ने 1949 में NATO की शुरुआत की. जब नाटो पहली बार अस्तित्व में आया उस समय इसमें कुल 12 देश शामिल थे. जिनमें अमेरिका के अलावा ब्रिटेन, फ्रांस, कनाडा, इटली, नीदरलैंड, आइसलैंड, बेल्जियम, लक्जमबर्ग, नॉर्वे, पुर्तगाल और डेनमार्क शामिल हैं. वर्तमान की बात करें तो आज नाटो में कुल 30 देश शामिल है.

नाटो एक सैन्य गठबंधन है, जिसका मकसद साझा सुरक्षित नीतियों पर काम करना है. आसान भाषा में कहे तो इसका मकसद है कि अगर कोई बाहरी देश किसी नाटो सदस्य देश पर हमला करे तो बाकी सदस्य देश हमला झेल रहे देश की सैन्य और राजनीतिक तरीके से सुरक्षा करेंगे.

आखिर रूस को नाटो से क्या चिढ हैं

जब दूसरा विश्वयुद्ध खत्म हुआ तो पूरी दुनिया 2 हिस्सों में बट गई. उस समय 2 सुपरपावर देश थे, एक अमेरिका और एक सोवियत संघ. लेकिन 25 दिसम्बर 1991 सोवियत संघ टूट गया और 15 नए बनकर सामने आए. इनमें आर्मीनिया, अजरबैजान, बेलारूस, इस्टोनिया, जॉर्जिया, कजाकिस्तान, कीर्गिस्तान, लातविया, लिथुआनिया, मालदोवा, रूस, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, यूक्रेन उज्बेकिस्तान.

सोवियत संघ के टूटने के बाद अमेरिका एकमात्र सुपरपावर बच गया, जिसने दिन-प्रतिदिन नाटो से जुड़े देशो की संख्या को बढ़ाना शुरू कर दिया। कई देश जो सोवियत संघ से टूटकर नए बने थे, वे भी नाटो में शामिल होने लगे और ये सिलसिला ऐसे ही चलने लगा. साल 2008 में जॉर्जिया और यूक्रेन को भी NATO में शामिल होने के लिए न्यौता दिया गया था, लेकिन दोनों देश उस समय इसमें शामिल नहीं हो पाए. लेकिन एक बार फिर यूक्रेन अब नाटो में शामिल होना चाहता है, जिसके लिए अमेरिका तैयार है.

रूस को यह बात पसंद नहीं है कि यूक्रेन नाटो में शामिल हो जाएं और उसके सीमा पर सभी देशो के सैनिक और हथियार खड़े हो जाएं। आपको यह भी बता दें कि रूस नाटो के सामने बहुत छोटा राष्ट्र है, रूस के पास मात्र 12 लाख जवान है, जिसमें से सक्रीय केवल 8 लाख है. वहीँ नाटो यदि यूक्रेन का अन्य किसी भी देश के साथ युद्ध में कभी उतरता है तो उसपर 33 लाख से भी ज़्यादा सैनिक और आधुनिक हथियार है, जिसके सामने रूस फिसड्डी साबित होगा।

यूक्रेन से क्या चाहता है रूस

रूस चाहता है कि नाटो पूर्वी यूरोप में विस्तारवाद को खत्म करें और यूक्रेन यह गारंटी दें कि वह नाटो में कभी शामिल नहीं होगा। वो ये भी चाहते हैं कि पूर्वी यूरोप में NATO अपना विस्तार 1997 के स्तर पर ले जाए और रूस के आसपास हथियारों की तैनाती बंद करे. 

यूक्रेन क्यों चाहता है नाटो में शामिल होना

1917 से पहले यूक्रेन और रूस एक ही साम्राज्य का हिस्सा थे. लेकिन जैसे ही रूसी क्रांति के बाद यह साम्राज्य टूटा तो यूक्रेन ने खुद को स्वतंत्र देश घोषित कर दिया, लेकिन कुछ ही सालों बाद सोवियत संघ में शामिल हो गया. 1991 में जब यूक्रेन को आज़ादी मिली तो, यूक्रेन के दो हिस्से हैं, पहला है पूर्वी और दूसरा पश्चिमी। पूर्वी लोग खुद को रूस के करीबी मानते है और उसी का समर्थन करते है, जबकि पश्चिम के लोग खुद को यूक्रेन के यूरोपियन यूनियन का हिस्सा मानते है. 2014 में रूस ने पूर्व में हमला कर लगभग 30 फीसदी हिस्सों को अपने देश में शामिल कर लिया। इसके बाद यूक्रेन को यह चिंता है कि कही इसी तरह पूरे देश पर रूस अपना कब्ज़ा न जमा लें. इसलिए यूक्रेन नाटो में शामिल होना चाहता है, जिससे उसे सैन्य समर्थन और रूस के खिलाफ आवाज बुलंद करने की ताकत मिल सके.

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