नई दिल्ली। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने देश-दुनिया में महिलाओं की स्थिति और अपने अनुभवों के बारे में एक आर्टिकल लिखा है। जिसमें उन्होंने जोर देकर कहा है कि अगर महिलाओं को मानवता की प्रगति में बराबर का भागीदार बनाया जाए तो दुनिया ज्यादा खुशहाल होगी। इसके साथ ही राष्ट्रपति […]
नई दिल्ली। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने देश-दुनिया में महिलाओं की स्थिति और अपने अनुभवों के बारे में एक आर्टिकल लिखा है। जिसमें उन्होंने जोर देकर कहा है कि अगर महिलाओं को मानवता की प्रगति में बराबर का भागीदार बनाया जाए तो दुनिया ज्यादा खुशहाल होगी। इसके साथ ही राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि हमारे यहां जमीनी स्तर पर फैसले लेने वाली संस्थाओं में महिलाओं का अच्छा प्रतिनिधित्व है, लेकिन हम जैसे-जैसे ऊपर की ओर बढ़ते हैं, महिलाओं की संख्या क्रमश: घटती चली जाती है। सबसे चौंकाने वाली बात तो ये है कि जिन राज्यों में साक्षरता दर अच्छी है, वहां पर भी महिलाओं की ऐसी ही स्थिति देखने को मिलती है। जिससे यह स्पष्ट होता है कि सिर्फ शिक्षा के जरिए ही हम महिलाओं की आर्थिक और राजनीतिक आत्मनिर्भरता को सुनिश्चित नहीं कर सकते हैं।
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर ‘हर महिला की कहानी मेरी कहानी’ वाले अपने आर्टिकल में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने आगे लिखा कि पिछले वर्ष संविधान दिवस के मौके पर मैं देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट द्वारा आयोजित समारोह को संबोधित कर रही थी। इस दौरान न्याय के बारे में बात करते हुए मुझे अंडर ट्रायल कैदियों के बारे में ख्याल आया और उनकी दशा के के बारे में बताने से मैं खुद को रोक नहीं सकी। उस दौरान मैंने अपने दिल की बात कही और उसका काफी प्रभाव भी पड़ा। आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर मैं आपके साथ, ठीक उसी तरह से कुछ विचार साझा करना चाहती हूं, जो सीधे मेरे दिल की गहराइयों से निकले हैं।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने लिखा कि मैं बचपन से ही समाज में महिलाओं की स्थिति को लेकर बहुत व्याकुल रही हूं। एक तरफ को एक लड़की को हर ओर से ढेर सारा प्यार-दुलार और सम्मान मिलता है, शुभ अवसरों उसको पूजा जाता है। लेकिन दूसरी तरफ उस बच्ची को जल्द ही ये आभास हो जाता है कि उसके जीवन में लड़कों की तुलना में कम संभावनाएं और अवसर उपलब्ध हैं। आर्टिकल में राष्ट्रपति आगे लिखती हैं कि विश्व की सभी महिलाओं की यही कथा-व्यथा है। धरती मां की हर दूसरी संतान (महिला) अपनी जिंदगी की शुरूआत बाधाओं के साथ ही करती है। आज 21वीं सदी में हमने जब हर क्षेत्र में कल्पनातीत तरक्की कर ली है। वहीं, आज भी कई देशों में राष्ट्र प्रमुख के पद पर महिलाएं नहीं पहुंच पाई हैं। दुनिया में ऐसे भी कई स्थान हैं, जहां पर एक लड़की का स्कूल जाना भी उसके लिए जीवन और मौत का प्रश्न बन जाता है।
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