नई दिल्ली: 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह है. इसमें पीएम मोदी समेत देश के सभी बड़े नेता और हस्तियां शामिल होने वाली हैं. लेकिन, चार शंकराचार्य इस समारोह में शामिल नहीं होंगे. हालांकि, इन चार शंकाराचार्यों में से दो लोगों ने आयोजन को अपना समर्थन देने की बात कही है. बता दें कि हाल ही में एक वीडियो संदेश जारी कर जोशीमठ के ज्योर्तिपीठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा था कि चारों शंकराचार्यों (Shankaracharya) में से कोई भी अयोध्या में समारोह में शामिल नहीं होगा क्योंकि यह राम मंदिर के निर्माण कार्य पूरा होने से पहले किया जा रहा है.
वहीं, विश्व हिंदू परिषद् के कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने गुरुवार (11 जनवरी) को कहा कि प्राण प्रतिष्ठा का स्वागत करने वाले द्वारका और श्रृंगेरी शंकराचार्यों के बयान पहले से ही सार्वजनिक हैं. आलोक कुमार ने कहा कि पुरी शंकराचार्य भी इस समारोह का समर्थन कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि केवल ज्योतिर्पीठ शंकराचार्य (Shankaracharya) ने समारोह के खिलाफ टिप्पणी की है, लेकिन बाकी तीन शंकराचार्यों ने साफ कर दिया है कि उनकी तरफ से दिए गए बयान भ्रामक थे क्योंकि वे समारोह के पूर्ण समर्थन में हैं.
ज्ञानवापी मामले के बाद से ही चर्चा में आए स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का जन्म 15 अगस्त 1969 को उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ हुआ. 9 साल की उम्र में ही ये गुजरात चले गए, जहां धर्मसम्राट स्वामी करपात्री महाराज के शिष्य ब्रह्मचारी रामचैतन्य के सानिध्य में गुरुकुल में संस्कृत शिक्षा ग्रहण की. इसके बाद इन्होंने काशी में स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के सानिध्य में दंडी दीक्षा ली. स्वामी अविमुक्तेश्वारनंद को गुजरात की द्वारका-शारदा पीठ और उत्तराखंड की ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के ब्रह्मलीन होने के बाद ज्योतिष पीठ का नया शंकराचार्य (Shankaracharya) बनाया गया.
गोवर्धन मठ पुरी के 145 वें शंकराचार्य (Shankaracharya) निश्चलानंद सरस्वती ओडिशा के जगन्नाथपुरी के गोवर्धनपीठ के शंकराचार्य हैं. इनका जन्म 30 जून 1943 को बिहार के मधुबनी जिले के हरिपुर बख्शी टोल नामक गांव में हुआ था. मात्र 17 साल की उम्र में इन्होंने अपना घर छोड़ दिया और अपनी जीवन यात्रा पर निकल पड़े. शंकराचार्य निश्चलानंद का सन्यास 18 अप्रैल 1974 को हरिद्वार में करीब 31 वर्ष की आयु में स्वामी करपात्री महाराज के शरण में सम्पन्न हुआ. 9 फरवरी 1992 को स्वामी निरंजन देव तीर्थ महाराज ने स्वामी निश्चलानंद सरस्वती को अपना उत्तराधिकारी मानकर उन्हें गोवर्धन मठ पुरी के 145 वें शंकराचार्य पद पर पदासीन किया.
स्वामी भारतीतीर्थ श्रृंगेरी मठ के शंकराचार्य हैं. इनका जन्म 11 अप्रैल 1951 को मछलीपट्टनम के एक तेलुगु स्मार्ट परिवार में हुआ था. इन्होंने अपने पिता से वेदों की शिक्षा ली, जो स्वयं एक वैदिक विद्वान थे. मात्र 15 वर्ष की आयु में स्वामी भारतीतीर्ख अंजनेयालु श्रृंगेरी शारदा पीठम के 35वें जगद्गुरु, जगद्गुरु श्री अभिनव विद्यातीर्थ महास्वामी के पास पहुंचे और उनसे धार्मिक मार्गदर्शन मांगा. अभिनव विद्यातीर्थ महास्वामी ने इन्हें अपने शिष्य के रूप में स्वीकार कर लिया. इसके बाद 11 नवंबर 1974 को जगद्गुरु श्री अभिनव विद्यातीर्थ महास्वामी ने इन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया और ये श्रृंगेरी मठ के शंकराचार्य बने.
शारदापीठ के शंकराचार्य सदानंद सरस्वती का जन्म नरसिंहपुर के ग्राम बरगी (करकबेल- गोटेगांव) में हुआ था. ये चार भाषाओं हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, गुजराती भाषा में निपुण हैं. इन्होंने 1970 में मात्र 12 साल की उम्र में आठवीं की पढ़ाई बीच में ही छोड़ स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का सानिध्य प्राप्त कर लिया था. इन्होंने शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती से दंडी दीक्षा ली. इसके बाद 18 साल की उम्र में ये द्वारका शारदापीठ के शंकराचार्य बन गए.
हिंदू धर्म में शंकराचार्य सर्वोच्च गुरू का पद होता है. भारत में चार मठों में चार शंकराचार्य होते हैं. बौद्द धर्म में दलाईलामा् और ईराई धर्म में पोप का जो पद होता है, वही पद हिंदू धर्म में शंकराचार्य का होता है. इस परंपरा की शुरुआत आदी शंकराचार्य से मानी जाती है. बता दें कि आदी शंकराचार्य हिंदू दार्शनिक और धर्मगुरू थे. सनातन धर्म की प्रतिष्ठा के लिए उन्होंने ही भारत में चार अलग-अलग क्षेत्रों में चार मठों की स्थापना की थी और इन मठों पर अपने चार प्रमुख शिष्यों का आसीन किया. तब से ही यह शंकराचार्य पद की परंपरा चली आ रही है
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