मुंबई: राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी उर्फ़ NCP के अध्यक्ष शरद पवार ने अब पार्टी चीफ के पद को छोड़ने का फैसला ले लिया है. उन्होंने किसी भी तरह का चुनाव न लड़ने का भी ऐलान किया है. शरद पवार ने ये घोषणा उस समय में की है जब उनके भतीजे अजीत पवार के तेवर बदले-बदले नज़र आ रहे हैं. अजीत पवार की बगावत की अटकलों के बीच शरद पवार का ये फैसला महाराष्ट्र की राजनीति पर काफी असर कर सकता है. शरद पवार के सक्रिय राजनीति से पीछे हटने के बाद महाराष्ट्र की सियासत काफी करवट भी ले सकती है. ऐसा इसलिए भी क्योंकि आने वाले समय में लोकसभा चुनावों के साथ-साथ विधान सभा चुनाव भी होना है.
भतीजे अजित पवार के बगावत सुर लंबे समय से सुनाई दे रहे हैं. अब शरद पवार के इस फैसले के बाद पार्टी में टूट की अटकलें और भी तेज़ हो गई हैं. हालांकि, राजनीतिक जानकारों का ये मानना है कि शरद पवार ने पार्टी को टूट से बचाने के लिए ये फैसला लिया है. दूसरी ओर पहले भी अजित पवार पार्टी से बगावत कर चुके है. 2019 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद उन्होंने देवेंद्र फडणवीस के साथ मिलकर सरकार बनाई थी जिसमें वह उप मुख्यमंत्री बनाए जाने के काफी मान-मनौव्वल के बाद वापस चाचा की पार्टी में आ गए थे.
सीनियर पवार यदि अध्यक्ष पद पर नहीं रहेंगे तो महाराष्ट्र में भाजपा का पलड़ा भारी हो सकता है. ऐसा इसलिए क्योंकि भतीजे अजित पवार का झुकाव पहले से ही बीजेपी की तरफ है. इसके अलावा महाराष्ट्र के राजनीतिक गलियारों में बीते कुछ दिनों से यह चर्चा हो रही है कि 40 विधायकों के साथ अजित पवार बीजेपी का समर्थन कर सकते हैं. हालांकि, इन चर्चाओं पर अजित सफाई देते हुए कह चुके हैं कि जीवन के अंतिम समय तक वह चचा की पार्टी में ही रहेंगे।
वहीं शिव सेना, कांग्रेस और एनसीपी को 26 नवंबर 2019 को साथ लेकर शरद पवार ने जो महाविकास अघाड़ी गठबंधन बनाया था वो भी कमजोर पड़ सकता है. राजनीतिक पंडितों की मानें तो शरद पवार के NCP अध्यक्ष पद से हटने के बाद अघाड़ी गठबंधन में बेमेल गठबंधन को पटरी पर बनाए रखने से लेकर सभी तरह के समन्वय के लिए और कोई भी नहीं होगा.
महाराष्ट्र के सियासी जानकारों की मानें तो अगर अजित पवार ने 40 विधायकों के साथ मिलकर भाजपा के साथ गठबंधन कर लिया तो राज्य के मौजूदा मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की मुश्किलें बढ़ जाएंगी. क्योंकि शिंदे ने पिछले साल शिव सेना तोड़कर भाजपा के साथ गठबंधन कर सरकार बनाई है. इस समय वह गठबंधन की सरकार के भरोसे ही मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे हैं. ऐसे में उनकी सियासी पारी सिमट सकती है और आगामी चुनावों में महाराष्ट्र में शिंदे को शिव सैनिकों का बड़ा समर्थन जुटाने में समस्या का सामना करना पड़ सकता है.
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