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ज्ञानवापी केस में कब-कब क्या हुआ ? जानें क्या है मुस्लिम और हिंदू पक्ष का दावा

वाराणसी. ज्ञानवापी मस्जिद-श्रृंगार गौरी मंदिर मामले में वाराणसी जिला कोर्ट का फैसला आ गया है और जिला कोर्ट ने हिंदू पक्ष में फैसला सुनाया है. जिला कोर्ट के जज अजय कृष्णा विश्वेश ने ये फैसला सुनाया है, उन्होंने श्रृंगार गौरी मंदिर में पूजन-दर्शन की अनुमति की मांग वाली याचिका को सुनवाई के लायक बताया है, अब इस मामले में 22 सितंबर को सुनवाई होगी.

क्या है ज्ञानवापी मस्जिद की कहानी

कहा जाता है ज्ञानवावापी मस्जिद का निर्माण औरंगजेब ने करवाया था. वहीं मान्यता है कि मस्जिद से पहले यहां मंदिर हुआ करता था. मंदिर को मुगल शासक औरंगजेब ने तुड़वाया था और औरंगजेब ने 1699 में काशी विश्वनाथ मंदिर का एक हिस्सा तोड़कर मस्जिद बनवाई थी. यहां भगवान विश्वेश्वर के स्वयंभू ज्योतिर्लिंग होने का दावा किया जाता है, बता दें ये मामला आज से नहीं बल्कि साल 1991 से चला रहा रहा है. उस वक्त सोमनाथ व्यास, रामरंग शर्मा, हरिहर पांडे ने याचिका दायर की थी और इसमें कहा गया था कि मस्जिद बनाने में मंदिर के अवशेषों का इस्तेमाल हुआ है.

दरअसल 1991 में याचिकाकर्ता स्थानीय पुजारियों ने वाराणसी कोर्ट में एक याचिका दायर की थी, इस याचिका में याचिकाकर्ताओं ने ज्ञानवापी मस्जिद एरिया में पूजा करने की अनुमति मांगी थी. इस याचिका में कहा गया कि 16वीं सदी में औरंगजेब के आदेश पर काशी विश्वनाथ मंदिर के एक हिस्से को तोड़कर वहां मस्जिद बना दी गई थी. दरअसल काशी विश्वानाथ मंदिर का निर्माण मालवा राजघराने की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया था, याचिकाकर्ताओं का दावा था कि औरंगजेब के आदेश पर काशी विश्वनाथ मंदिर के एक हिस्से को तोड़कर मस्जिद बनवाई थी. उन्होंने दावा किया कि मस्जिद परिसर में हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियां मौजूद हैं और उन्हें ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में पूजा की अनुमति दी जाए. हालांकि, 1991 के बाद से यह मुद्दा समय-समय पर उठता रहा, लेकिन कभी भी इसने इतना बड़ा रूप नहीं लिया, जितना इस समय ये मुद्दा गरमाया हुआ है.

मुद्दा फिर कब गरमाया

वाराणसी के एक वकील विजय शंकर रस्तोगी ने निचली अदालत में एक याचिका दायर की और कहा कि ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण अवैध तरीके से हुआ था, इसके साथ ही उन्होंने मस्जिद के सर्वेक्षण की मांग की. यह याचिका अयोध्या में बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि जमीन विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद दिसंबर 2019 में दायर की गई थी, फिर अप्रैल 2021 में वाराणसी कोर्ट ने भारतीय पुरातत्व विभाग को मस्जिद का सर्वेक्षण कर रिपोर्ट जमा करने का आदेश दिया. हालांकि, उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने वाली अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी ने शंकर रस्तोगी की याचिका का वाराणसी कोर्ट में विरोध किया, बाद में उन्होंने कोर्ट के आदेश पर मस्जिद में हो रहे सर्वे का भी विरोध किया लेकिन सर्वे नहीं रुका.

साल 2021 में भी एक याचिका दायर की गई, दरअसल 2021 में दिल्ली की एक महिला ने याचिका दायर की और कहा कि मस्जिद की दीवार में हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां हैं और उन्हें उनकी पूजा की अनुमति दी जाए. साथ ही उन्होंने याचिका में कहा कि आदेश पारित किया जाए कि वहां मौजूद हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों को खंडित न किया जाए, इसपर वाराणसी जिला सिविल कोर्ट (सीनियर डिवीजन) जज रवि कुमार दिवाकर ने अप्रैल 2022 में मस्जिद परिसर के एडवोकेट कमिश्नर के माध्यम से सर्वे और वीडियोग्राफी करवाने का आदेश दिया. इस मामले में कोर्ट कमिश्नर भी हटाए गए, सर्वेक्षण के दौरान पुरे देश में इस मुद्दे का विरोध देखा गया.

पांच महिलाओं की याचिका से हुई केस की शुरूआत

मामले की शुरूआत अगस्त, 2021 में वाराणसी कोर्ट में दाखिल की गई पांच महिलाओं की याचिका के साथ हुई, इन पांच महिलाओं ने मस्जिद परिसर में मौजूद मां शृंगार गौरी, भगवान गणेश, भगवान हनुमान और अन्य देवी-देवताओं के दर्शन, पूजा और भोग की इजाजत सालभर के लिए मांगी. फ़िलहाल साल में केवल एक बार दर्शन की इजाजत है. इन महिलाओं ने मस्जिद में मौजूद तालाब में शिवलिंग होने का दावा भी किया और मूर्तियों के अस्तित्व को सुनिश्चित करने के लिए सर्वे की मांग की.

क्या हैं हिन्दू और मुस्लिम पक्ष के दावे

हिंदू पक्ष का दावा है कि काशी विश्वनाथ मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई इसलिए ज्ञानवापी परिसर हिंदुओं को सौंपा जाए. हिंदू पक्ष का कहना है कि इस मामले में 1991 का वॉरशिप एक्ट लागू नहीं होता और वजू खाने में शिवलिंग भी मिला है, साथ ही हिन्दू पक्ष ने मांग की कि ज्ञानवापी में मुसलमानों की एंट्री बंद हो और मस्जिद के गुंबद को ध्वस्त करने का आदेश दिया जाए. वहीं, मुस्लिम पक्ष का कहना है कि हिंदू पक्ष का दावा बिल्कुल बेबुनियाद है और ज्ञानवापी मामला सुनवाई योग्य ही नहीं. वहीं, शिवलिंग को लेकर कहा जाता है कि ज्ञानवापी में कोई ‘शिवलिंग’ नहीं है, बल्कि वो तो एक फव्वारा है.
गौरतलब है, मुस्लिम संगठन प्लेस ऑफ वरशिप एक्ट 1991 का हवाला देकर इस कार्रवाई का विरोध कर रहे हैं, खासतौर पर इस एक्ट की धारा 4 के मुताबिक, किसी को भी किसी ऐसे धार्मिक स्थल के धार्मिक चरित्र को बदलने या अन्य कानूनी कार्यवाही शुरू करने की इजाजत नहीं देता, जैसा कि वह 15 अगस्त 1947 को था. ऐसे में मुस्लिम पक्ष लगातार सर्वे का विरोध कर रहा था.

कब-कब क्या हुआ ?

  • 1991- पहली बार याचिका दायर कर पूजा की इजाजत मांगी गई.
  • 1993- इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यथास्थिति रखने का आदेश दिया.
  • 2018- सुप्रीम कोर्ट ने मामले में स्टे ऑर्डर की वैधता 6 महीने की बताई.
  • 2019- वाराणसी कोर्ट में मामले पर फिर से सुनवाई शुरू हुई.
  • 2021- फास्ट ट्रैक कोर्ट ने ज्ञानवापी के पुरातात्विक सर्वेक्षण की मंजूरी दी.
  • अप्रैल 2022- ज्ञानवापी का सर्वेक्षण और वीडियोग्राफी का आदेश दिया गया.
  • मई 2022- ज्ञानवापी में सर्वे के दौरान शिवलिंग मिलने का दावा किया गया.
सर्वे में क्या सामने आया ?

वहीं कोर्ट कमिश्नर की सर्वे रिपोर्ट में तो ज्ञानवापी में शिवलिंग का जिक्र है. साथ ही कहा गया है कि कुएं में जो गोल पत्थर है, उसकी ऊंचाई ढाई फीट है, मस्जिद के अंदर घंटी है, दीवार पर त्रिशूल है. वहीं, हाथी के सूंड खुदे मिले हैं, पश्चिमी दीवार पर स्वास्तिक के चिन्ह हैं और खंभों पर घंटियां हैं.

 

Gyanvapi Case: जिला कोर्ट ने हिंदू पक्ष के हक में दिया फैसला, ज्ञानवापी श्रंगार गौरी केस को बताया सुनने लायक

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Aanchal Pandey

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