Uttarakhand,चुनावी माहौल पूरी गर्म है ऐसे में उत्तराखंड (Uttarakhand) भला अछूता कैसे रह सकता है। प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव (Uttarakhand Assembly Elections) के लिए सभी सियासी दल पूरी तरह तैयार हो चुके हैं। देखा जाए तो उत्तराखंड में करीब 50 से ज्यादा राजनैतिक दल अपनी-अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। लेकिन प्रदेश की राजनैतिक जंग में महज कुछ ही दलों को कामयाबी मिली है।
बात अगर राज्य की करें तो राज्य में जनता ने ज्यादातर राष्ट्रीय दलों पर भी विश्वास जताया है। जबकि क्षेत्रीय दलों को पूरी तरह नकार सा दिया है। लेकिन इस बात को भी नकारा नहीं जा सकता, कि बड़े राष्ट्रीय दलों के नेताओं ने कभी अपनी सियासी जिंदगी की शुरुआत क्षेत्रीय दलों से ही की थी, और अब वह राष्ट्रीय दलों में राजनीति कर रहे हैं। राज्य में क्षेत्रीय दलों का प्रदर्शन लगातार गिर रहा है ।जिसकी वजह से दल का कोई भी प्रतिनिधि विधानसभा की दहलीज को पार करने में असफल साबित हुआ है।
उत्तराखंड चुनाव ( Uttarakhand Election ) को अगर देखें तो राज्य बनने के बाद से ही विधानसभा चुनावों में मुख्य मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच होता रहा है। जिसके साथ ही अन्य क्षेत्रीय राजनैतिक दल राज्य में पिछड़ते चले गए हैं। राज्य के पहले दो चुनावों में बहुजन समाज पार्टी ( BSP ) और उत्तराखंड क्रांति दल ( UKD ) ने अपनी ताकत का अहसास कराया था ।
लेकिन समय के साथ ही ये दोनों दल अपनी साख खोते चले गए और राज्य की सत्ता राष्ट्रीय दलों के इर्द-गिर्द घूमती रही है। बात अगर हम 2017 के विधानसभा चुनावों की करें, तो ये दल भी निचले दर्ज पर या यूं कहे कि हाशिए पर चले गए और दोनों ही राजनैतिक दलों को राज्य में एक सीट भी नहीं मिली। इस चुनाव में जहां बसपा का वोट प्रतिशत घटा तो UKD ने मान्यता प्राप्त रजिस्टर्ड पार्टी का दर्जा तक खो दिया। जो 1979 से राजनैतिक दल का दर्जा प्राप्त राजनैतिक पार्टी थी।
साल 2007 के चुनाव में बसपा को 8 सीटें मिलीं थी । और UKD को 3 सीटें मिलीं, जबकि इस चुनाव में 3 सीटें निर्दलीय नेताओं के खाते में आईं थी। इसके बाद 2012 के विधानसभा चुनाव में बसपा और क्षेत्रीय राजनैतिक दलों की सीटों में कमी देखने को मिली थी। जिसके बाद आने वाले चुनावों में बसपा की सीटें 8 से घटकर सिर्फ 3 ही रह गई, जबकि UKD को महज 1 ही सीट मिली । साल 2017 के चुनाव में मोदी लहर के दौरान बसपा और UKD खाता भी नहीं खोल सके।
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