नई दिल्ली। अमेरिका ने एक बार फिर से भारत के अंदरूनी मामले में दखल देने की कोशिश की है. उसने भारत में धार्मिक भेदभाव के मुद्दे को उठाया है. अमेरिका के अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (USCIRF) के अध्यक्ष रब्बी अब्राहम कूपर ने कहा कि भारत जिसको दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहा जाता है, उसी […]
नई दिल्ली। अमेरिका ने एक बार फिर से भारत के अंदरूनी मामले में दखल देने की कोशिश की है. उसने भारत में धार्मिक भेदभाव के मुद्दे को उठाया है. अमेरिका के अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (USCIRF) के अध्यक्ष रब्बी अब्राहम कूपर ने कहा कि भारत जिसको दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहा जाता है, उसी भारत में धार्मिक भेदभाव ने एक डरावना रूप ले लिया है. भारत के प्रति सख्ती इख्तियार करते हुए कूपर ने कहा कि अगर भारत में धार्मिक भेदभाव खत्म नहीं किया गया तो भारत, अमेरिकी सरकार के कड़े प्रतिबंधों के लिए तैयार रहे. अध्यक्ष ने कहा की भारत को रास्ता बदलना होगा, इससे पहले भारत ने इस मुद्दे पर अच्छा काम किया है. बता दें कि रब्बी अब्राहम कूपर ने आलोचना करते-करते भारत को अफगानिस्तान और सीरिया जैसे देशो के बराबर लाकर खड़ा कर दिया.
रब्बी अब्राहम कूपर ने अमेरिकी सांसदों को संबोधित करते हुए कहा कि धर्म या अन्य आधार पर किसी भी तरह का भेदभाव किसी भी राष्ट्र के सम्मान का प्रतीक नहीं होता है. उसी समय उन्होंने सिफ़ारिश की, कि भारत को भी अफगानिस्तान, सीरिया, नाइजीरिया और वियतनाम जैसे देशों की सूची में डाल देना चाहिए. बता दें कि पूर्व में भी अमेरिका भारत के प्रति ऐसे मुद्दों पर चिंता जता चुका हैं, वर्ष 2019 में जब नागरिकता संसोधन बिल संसद में पारित हुआ था तब भी इसी अमेरिकी अन्तर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग ने इस विधेयक के पारित होने पर चिंता व्यक्त की थी. लेकिन भारत के विदेश मंत्रालय ने जवाब देते हुए कहा था कि नागरिक संसोधन बिल पर USCRIF द्वारा दिया गया बयान न तो सही है और न ही आवश्यक है.
USCIRF के प्रमुख रब्बी अब्राहम कूपर ने उन भारतीयों एजेंसियों और उनके अधिकारियों के खिलाफ आर्थिक रूप से और यात्रा प्रतिबंध लगाने का अनुरोध किया जो धार्मिक स्वतंत्रता के उलंघन में आते हैं. हालांकि कुछ समय पहले ही भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका के दौरे पर गए थे. पीएम मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी, तब भी पीएम मोदी से भारत में अल्पसंख्यकों से भेदभाव को लेकर एक अमेरिकी पत्रकार ने सवाल पूछा था. उसी दौरे के समय अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भी भारत के अल्पसंख्यक के बारे में ही बात की थी. अब देखना यह है कि अमेरिकी अंतरराष्ट्री्य धार्मिक स्वकतंत्रता आयोग यानी (USCIRF) के इस बयान पर भारतीय विदेश मंत्रालय की क्या प्रतिक्रिया होगी.