नई दिल्ली. लोकसभा चुनाव परिणाम के लगभग डेढ़ महीने बाद पिछले एक हफ्ते से यूपी में जो हलचल चल रही थी वो आज अचानक तेज हो गई. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी पीएम नरेंद्र मोदी से मिले और एक घंटे तक यूपी को लेकर मंथन हुआ. उसके तत्काल बाद पार्टी के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह पीएम मोदी से मिले और दोनों की लंबी वार्ता हुई. इससे पहले भूपेंद्र चौधरी और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य अलग अलग कल पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा से भी मिले थे और सूबे की स्थिति से अवगत कराया था.
जेपी नड्डा खुद प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में हिस्सा लेने लखनऊ गये थे, तभी से हलचल बढ़ गई थी. उधर लखनऊ में सीएम योगी ने मंत्रिमंडल की एक बैठक की जिसमें सूबे में 10 सीटों पर होने वाले विधानसभा उपचुनाव को लेकर रणनीति बनी और मंत्रियों को जिलों का प्रभार सौंपा गया. दोनों डिप्टी चीफि मिनिस्टर केशव प्रसाद मौर्य व ब्रजेश पाठक इस बैठक से नदारद रहे और सीएम योगी ने उन्हें उपचुनाव की कोई जिम्मेदारी भी नहीं दी. मंत्रियों के साथ मंत्रणा करने के बाद सीएम योगी राज्यपाल आनंदीबेन पटेल से भी मिले जिसको लेकर अटकलें लगने लगी कि वह इस्तीफा दे सकते हैं.
सबसे बड़ा सवाल है कि क्या लोकसभा चुनाव में झटके के बद केंद्रीय नेतृत्व सीएम योगी से नाराज है और उन्हें हटाने के मूड में है. आपको बता दें कि सीएम योगी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह में लंबे अरसे से खींचतान चल रही है. यह बात किसी से नहीं छिपी है कि यूपी जैसे राज्य को पिछले कई सालों से स्थाई डीजीपी तक नहीं मिला है. कार्यवाहक डीजीपी से योगी काम चला रहे हैं. इस खींचतान का असर लोकसभा चुनाव में भी दिखा. यदि भाजपा एकजुट होकर पूरी ताकत से लड़ी होती तो पार्टी 33 सीटों तक नहीं सिमटती. टिकट वितरण के दौरान यह चर्चा आम थी कि जिसे योगी टिकट दिलाना चाहते थे उनके नाम पर विचार तक नहीं किया गया और पार्टी अयोध्या समेत तमाम ऐसी सीटें हार गई जो भाजपा की गढ़ मानी जाती रही है.
जिस रामलला को भाजपा प्रतिष्ठित कराकर फूले नहीं समा रही थी उस रामलला के घर की सीट अयोध्या तक हार गई जिसको लेकर विपक्ष ने भाजपा का खूब मजाक बनाया. कोई भी पार्टी जब चुनाव हारती है तो संगठन और सरकार को उसकी जिम्मेदारी लेनी होती है लेकिन यूपी में 2019 में 62 सीटें जीतने वाली पार्टी 33 पर सिमट गई और किसी ने सार्वजनिक तौर पर इस्तीफे की पेशकश तक नहीं की.
इस दौरान जब भी पीएम मोदी से योगी की मुलाकात हुई वो सहज नहीं दिखे. तभी से कयास लग रहे थे कि सीएम योगी को हटाया जा सकता है. इसी बीच आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और इंद्रेश कुमार का बयान आया जिसमें केंद्रीय नेतृत्व पर उंगली उठाई गई. हालांकि बाद में संघ की तरफ से स्पष्टीकरण भी आया लेकिन कड़वाहट कम होती नहीं दिखी. इससे लगा कि सीएम योगी का संकट टल गया है लेकिन ऐसा हुआ नहीं और खींचतान चलती रही.
इसी बीच यूपी के डिप्टी चीफ मिनिस्टर केशव प्रसाद मौर्य को सीएम योगी से हिसाब बराबर करने का मौका मिल गया और उन्होंने आक्रामक ढंग से कहना शुरू कर दिया कि संगठन सरकार से ऊपर होता है. वह इशारों ही इशारों में योगी को घेर रहे थे, दरअसल 2022 में खुद सिराथु से विधानसभा चुनाव हारने के बाद मौर्य केंद्रीय नेतृत्व के दबाव में उप मुख्यमंत्री तो बन गये लेकिन काफी कमजोर हो गये थे, महत्वपूर्ण विभाग भी छिन गये थे.
जैसे ही लोकसभा चुनाव का परिणाम आया केशव मौर्य, योगी को घेरने में जुट गये. उन्हें दिल्ली से ऑक्सीजन भी मिल रहा था लेकिन वह भूल गये कि केंद्रीय नेतृत्व के लिए योगी को हटाना आसान नहीं है. योगी न सिर्फ यूपी में बल्कि पूरे देश में हिंदूवादी नेता और सख्त प्रशासक की छवि बना चुके हैं, अपना वोट बैंक तैयार कर चुके हैं. चुनावों में उनकी पूरे देश से डिमांड आती है. वह आक्रामक ढंग से मजबूत हो रही सपा से लड़ना और लॉ एंड ऑर्डर को दुरुस्त रखना जानते हैं लिहाजा नाराजगी होते हुए भी केंद्रीय नेतृत्व के लिए उनको हटाना आसान नहीं है.
भाजपा के अंदर से पक्की खबर है कि संगठन और सरकार में बड़ा बदलाव हो सकता है. प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी समेत कुछ नेताओं को सरकार में शामिल किया जा सकता है. उधर योगी मंत्रिमंडल से कई मंत्रियों की छुट्टी हो सकती है. यानी कि संगठन और सरकार में बड़ा बदलाव होने की पूरी संभावना है. इस बदलाव में एक बार फिर से केशव प्रसाद मौर्य को प्रदेश अध्यक्ष बनने की संभावना है. मौर्य का पिछड़े वर्ग से होना उनकी सबसे बड़ी विशेषता है. यदि योगी बच जाते हैं और संगठन व सरकार में बदलाव होता है, ऐसी स्थिति में भी योगी और मौर्य में तनातनी रहेगी. जो योगी को जानते हैं वो ये भी अच्छी तरह जानते हैं कि वो टूट सकते हैं झुकेंगे नहीं और यदि टूटेंगे तो न जाने कितनों को तोड़ लेंगे.
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