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19 साल की उम्र तक सिर्फ मोहन नाम से पहचाने जाते थे बापू, जानिए फिर कब और कैसे बनें महात्मा और राष्ट्रपिता?

19 साल की उम्र तक सिर्फ मोहन नाम से पहचाने जाते थे बापू, जानिए फिर कब और कैसे बनें महात्मा और राष्ट्रपिता?

नई दिल्ली: आज पूरा देश राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 154वीं जयंती जयंती मना रहा है. बता दें कि साल 1869 में 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी का जन्म गुजरात के पोरबंदर में हुआ था. महात्मा गांधी आज जिस रूप में दुनिया में पहचाने जाते हैं ऐसे पहले से नहीं थे. बता दे कि अपनी 19 साल की उम्र तक बापू केवल मोहनदास के नाम से जाने जाते थे. लेकिन आज दुनिया उनको कई नामों से जानती है. जैसे महात्मा, राष्ट्रपिता, बापू और भी कई नाम. आइए जानते हैं उनके मोहनदास से महात्मा और राष्ट्रपिता बनने की कहानी.

19 साल तक मोहन के रूप में पहचाने जाते थे

2 अक्टूबर 1869 में महात्मा गांधी जन्म से लेकर साल 1888 तक गुजरात में ही रहे. इस दौरान वो सबके लिए मोहनदास ही थे. बापू जब केवल 16 साल के थे तब पिता करमचंद गांधी का निधन हो गया. उसके बाद मां की मर्जी नहीं होने के बावजूद मोहनदास पढ़ाई करने के लिए विदेश चले गए.

24 की उम्र में बने मिस्टर गांधी

साल 1888 में महात्मा गांधी बैरिस्टर की पढाई करने के लिए इंग्लैंड गए और तीन साल बाद 1891 में वापस अपने वतन भारत लौटे. इसे बाद दो साल तक बॉम्बे और राजकोट में उन्होंने काम किया. हालांकि उनको यहां बहुत सफलता नहीं मिली. इसी बीच वो एक व्यवसाई के काम से साल 1893 में अफ्रीका चले गए. अफ्रीका में उन्होंने नस्लीय भेदभाव के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व किया जिसके बाद वो मोहनदास से मिस्टर गांधी बन गए.

चंपारण में मिला बापू नाम

15 अप्रैल 1917 में गांधीजी बिहार के चंपारण जिले में नील आंदोलन में किसानो के समर्थन में पहुंचे थे. वहां जा कर उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंका और पहली बार उन्होंने यहीं पर सत्याग्रह का प्रयोग किया. चम्पारण में सफलता मिलने के बाद उन्हें बापू के नाम से पहली बार संबोधित किया गया था.

रविंद्रनाथ टैगोर ने पत्र में लिखा महात्मा

चंपारण सत्याग्रह के बाद से गांधी जी बापू नाम से पहचाने जाने लगे. उसके बाद आया साल 1919 जब रविंद्रनाथ टैगोर ने 12 अप्रैल 1919 को लिखे पत्र में पहली बार गांधी जी को महात्मा नाम से संबोधित किया था. इसके बाद से ही मोहनदास महात्मा बन गए.

नेताजी ने कहा राष्ट्रपिता

साल 1943 तक मोहन दास बापू और महात्मा नाम से पहचाने जाने लगे थे. फिर आया साल 1944 जब नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने 4 जून 1944 को सिंगापुर से रेडियो से देश को एक संदेश दिया. इस दौरान उन्होंने गांधीजी को राष्ट्रपिता कह कर संबोधित किया. बाद में महात्मा गांधी के निधन के बाद भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहलाल नेहरू जी ने उन्हें राष्ट्रपिता कह के संबोधित किया.

 

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