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TATA के साथ विवाद के चलते सुर्ख़ियों में आए थे साइरस, जानें क्या था विवाद

नई दिल्ली. टाटा समूह के चेयरमैन और शापूरजी पालोनजी ग्रुप के एमडी रहे अरबपति कारोबारी साइरस मिस्त्री का रविवार को एक सड़क हादसे में निधन हो गया, 54 साल के साइरस मिस्त्री की महाराष्ट्र में पालघर के पास एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई, कारोबार परिवार से ताल्लुक रखने वाले साइरस मिस्त्री के जीवन […]

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TATA के साथ विवाद के चलते सुर्ख़ियों में आए थे साइरस, जानें क्या था विवाद
  • September 4, 2022 5:48 pm Asia/KolkataIST, Updated 2 years ago

नई दिल्ली. टाटा समूह के चेयरमैन और शापूरजी पालोनजी ग्रुप के एमडी रहे अरबपति कारोबारी साइरस मिस्त्री का रविवार को एक सड़क हादसे में निधन हो गया, 54 साल के साइरस मिस्त्री की महाराष्ट्र में पालघर के पास एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई, कारोबार परिवार से ताल्लुक रखने वाले साइरस मिस्त्री के जीवन की सबसे अहम घटना Tata Sons का चेयरमैन बनने की ही रही.

2012 में मिली थी कमान

साल 2006 में पालोनजी मिस्त्री के सबसे छोटे बेटे साइरस मिस्त्री टाटा संस के साथ जुड़ गए थे, इसके बाद दिसंबर 2012 में रतन टाटा की जगह साइरस मिस्त्री को टाटा संस का चेयरमैन बनाया गया था. बता दें टाटा ग्रुप ने डेढ़ साल की खोज के बाद इस पद के लिए साइरस मिस्‍त्री का चुनाव किया था. टाटा संस के चेयरमैन बनाए जाने के 4 साल बाद 2016 में उन्हें अचानक पद से हटा दिया गया था, इसके बाद साइरस मिस्त्री टाटा समूह से विवाद को लेकर लगातार चर्चा में बने रहे थे.

टाटा ग्रुप के छठे चेयरमैन थे साइरस

साइरस मिस्त्री टाटा संस के छठे चेयरमैन बने थे, जबिक दिसंबर 2012 को रतन टाटा ने इस पद से रिटायरमेंट ले लिया था, इसके साथ ही साइरस मिस्त्री टाटा संस के सबसे युवा चेयरमैन बने थे. गौरतलब है कि मिस्त्री परिवार टाटा सन्स में दूसरा सबसे बड़ा शेयरहोल्डर्स है और टाटा समूह में इस परिवार की 18.4 फीसदी हिस्सेदारी है. 2016 को मिस्त्री को चेयरमैन पद से हटाए जाने के बाद फिर से समूह की कमान रतन टाटा ने अंतरिम चेयरमैन के रूप में अपने हाथ में ले ली थी.

TATA में इतिहास रचने वाले कारोबारी

आम तौर पर मीडिया की चमक से दूर रहने वाले साइरस मिस्त्री का भारत की आम जनता ने उस समय ही नाम सुना, जब रतन टाटा के समूह के प्रमुख का पद छोड़ने के बाद उन्हें ये जिम्मेदारी दी गई. Tata Group के 100 साल से ज्यादा के इतिहास में वह दूसरे ऐसे शख्स थे, जिनका सरनेम ‘टाटा’ नहीं था और फिर भी वो ग्रुप चेयरमैन बने थे. इसकी वजह उनके परिवार के टाटा समूह के साथ अच्छे संबंध थे.

 

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