नई दिल्ली: तमिल नेशनलिस्ट मूवमेंट के नेता पाझा नेदुमारन ने हैरान कर देने वाला दावा किया है. उनका ये दावा लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम यानी LTTE के चीफ प्रभाकरन से जुड़ा हुआ है. उन्होंने दावा किया है कि LTTE चीफ जिंदा है. इतना ही नहीं उन्होंने आगे कहा है कि बहुत जल्द ही वह […]
नई दिल्ली: तमिल नेशनलिस्ट मूवमेंट के नेता पाझा नेदुमारन ने हैरान कर देने वाला दावा किया है. उनका ये दावा लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम यानी LTTE के चीफ प्रभाकरन से जुड़ा हुआ है. उन्होंने दावा किया है कि LTTE चीफ जिंदा है. इतना ही नहीं उन्होंने आगे कहा है कि बहुत जल्द ही वह दुनिया के सामने भी आने वाला है.
तमिल नेशनलिस्ट मूवमेंट के नेता नेदुमारन के शब्दों में, ‘प्रभाकरन जिंदा है. वह स्वस्थ भी है. हमें भरोसा है कि इससे उनकी मौत की अफवाहों पर विराम लगेगा. वह जल्द ही दुनिया के सामने आएगा.’ तमिल नेता नेदुमारन ने दावा किया है कि, ‘LTTE चीफ इस समय श्रीलंका में मौजूद है. वर्तमान स्थिति और वहां के लोगों द्वारा राजपक्षे शासन के खिलाफ विद्रोह से हमारे नेता (प्रभाकरन) के सामने आने के लिए सही समय है.
तमिल नेता ने आगे कहा कि मुझे दुनिया भर की पूरी तमिल आबादी के सामने यह घोषणा करते हुए खुशी हो रही है कि प्रभाकरन इस समय बहुत अच्छा काम कर रहा है और वह जिंदा है. नेदुमारन आगे कहते हैं कि ‘इससे प्रभाकरन को लेकर चल रहीं अफवाहों को विराम लगेगा. जल्द ही प्रभाकरन तमिलों के लिए नई योजना का ऐलान करेंगे.’
नेदुमारन ने दुनियाभर में मौजूद ऐलम तमिल और तमिल समाज के लोगों से एकजुट होकर प्रभाकरन का समर्थन करने की अपील की. नेदुमारन ने बताया कि वे प्रभाकरन के परिवार से साथ संपर्क में हैं. उन्होंने ही प्रभाकरन के स्वस्थ्य होने की जानकारी दी है.
कौन है प्रभाकरन?
वेलुपिल्लई प्रभाकरन श्रीलंकाई तमिल गुरिल्ला और लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम (LTTE) का संस्थापक है. श्रीलंका के उत्तर और पूर्व में एक स्वतंत्र तमिल राज्य बनाने के लिए उसने उग्रवादी संगठन की स्थापना की थी. इसके लिए श्रीलंका में LTTE ने 25 साल से अधिक समय तक युद्ध लड़ा. जानकारी के अनुसार प्रभाकरन की मौत मई 2009 में हो गई थी. ऐसे में तमिल नेता का ये दावा चौंका देने वाला है.
बता दें, LTTE की मौजूदगी से श्रीलंका में गृह युद्ध शुरू हो गया था. साल 1987 में भारत ने LTTE लड़ाकों से मुकाबले के लिए भी अपनी सेना श्रीलंका भेजी थी. भारत के इसी कदम से LTTE समुदाय बेहद नाराज था. इसके बाद उसने बदला लेने की ठानी और तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या कर दी.
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