Taiwan vs China: नई दिल्ली। अमेरिकी संसद की स्पीकर नैंसी पेलोसी चीन की चेतावनी के बाद भी मंगलवार को ताइवान के दौरे पर पहुंचीं। पेलोसी के इस दौरे के बाद चीन और अमेरिका के बीच तनाव बढ़ गया है। चीन ने इसे उकसाने वाली कार्रवाई बताया है। चीन का कहना है कि अमेरिका को इसके […]
नई दिल्ली। अमेरिकी संसद की स्पीकर नैंसी पेलोसी चीन की चेतावनी के बाद भी मंगलवार को ताइवान के दौरे पर पहुंचीं। पेलोसी के इस दौरे के बाद चीन और अमेरिका के बीच तनाव बढ़ गया है। चीन ने इसे उकसाने वाली कार्रवाई बताया है। चीन का कहना है कि अमेरिका को इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।
दरअसल, चीन वन चाइना पॉलिसी के तहत ताइवान को अपने देश का हिस्सा मानता है। इसे लेकर चीन और ताइवान के बीच पिछले 73 साल से विवाद चल रहा है। क्या है चीन-ताइवान के बीच विवाद? चीन से ताइवान कैसे अलग हुआ? दूसरे देश के दखल पर क्यों बौखला जाता है चीन? चीन की वन चाइना पॉलिसी क्या है? आइये जानते हैं…
ताइवान दक्षिण पूर्वी चीन के तट से करीब 100 मील दूर स्थित एक द्वीप है। ताइवान खुद को एक संप्रभु राष्ट्र मानता है। उसका अपना संविधान और लोगों द्वारा चुनी हुई सरकार भी है। वहीं चीन की कम्युनिस्ट सरकार ताइवान को अपने देश का महत्वपूर्ण हिस्सा बताती है। चीन इस द्वीप को एक बार फिर से अपने नियंत्रण में लेना चाहता है। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ताइवान और चीन के पुन: एकीकरण की जोरदार वकालत करते आए हैं। अगर ऐतिहासिक रूप से से देखें तो ताइवान कभी चीन का ही हिस्सा था।
ये पूरी कहानी साल 1644 से शुरू होती है। उस वक्त चीन में चिंग वंश का शासन हुआ करता था। तब ताइवान चीन का ही हिस्सा था। साल 1895 में चीन ने ताइवान को जापान को सौंप दिया। बताया जाता है कि सारा विवाद यहीं से शुरू हुआ। फिर 1949 में चीन में गृहयुद्ध के दौरान माओत्से तुंग के नेतृत्व में कम्युनिस्टों ने चियांग काई शेक के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कॉमिंगतांग पार्टी को हरा दिया।
कॉमिंगतांग पार्टी हार के बाद ताइवान पहुंच गई और वहां पर जाकर अपनी सरकार बना ली। इस बीच दूसरे विश्वयुद्ध में जापान की हार हुई और उसने कॉमिंगतांग को ताइवान का नियंत्रण सौंप दिया। विवाद इसी बात पर शुरू हुआ कि जब कम्युनिस्टों ने जीत हासिल की है तो ताइवान पर उनका ही अधिकार होगा। जबकि दूसरी तरफ कॉमिंगतांग की दलील थी कि वे सिर्फ चीन के कुछ ही हिस्सों में हारे हैं लेकिन वे ही आधिकारिक रूस से चीन का प्रतिनिधित्व करते हैं, इसलिए ताइवान पर उनका ही अधिकार होगा।
सबसे पहले अमेरिका ताइवान की रक्षा के लिए उसे सैन्य उपकरण बेचता है, जिसमें ब्लैक हॉक हेलीकॉप्टर भी शामिल हैं। ओबामा प्रशासन के दौरान हुए 6.4 अरब डॉलर के हथियारों के सौदे के तहत 2010 में ताइवान को 60 ब्लैक हॉक्स बेचने की मंजूरी दी थी। जिसके जवाब में, चीन ने अमेरिका के साथ कुछ सैन्य संबंधों को अस्थायी रूप से तोड़ दिया था। अमेरिका के साथ ताइवान के बीच टकराव साल 1996 से ही चला आ रहा है। चीन ताइवान के मुद्दे पर किसी तरह का विदेशी दखल नहीं मंजूर करता है। उसकी कोशिश रहती है कि कोई भी देश ऐसा कुछ नहीं करे जिससे ताइवान को अलग पहचान मिल सके। यही, वो वजह है कि अमेरिकी संसद की स्पीकर के दौरे से चीन भड़क गया है।
वन चाइना पॉलिसी का मतलब ताइवान कोई अलग देश नहीं बल्कि वो चीन का ही हिस्सा है। 1949 में बना पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) ताइवान को अपना ही प्रांत मानता है। इस पॉलिसी के तहत मेनलैंड चीन और हांगकांग-मकाऊ जैसे दो विशेष रूप से प्रशासित क्षेत्र भी आते हैं।
गौरतलब है कि ताइवान खुद को आधिकारिक तौर पर रिपब्लिक ऑफ चाइना (आरओसी) कहता है। जबकि चीन की वन चाइना पॉलिसी के मुताबिक चीन से कूटनीतिक रिश्ता रखने वाले देशों को ताइवान से संबंध तोड़ने पड़ते है। वर्तमान में चीन के 170 से भी ज्यादा कूटनीतिक साझेदार है, वहीं ताइवान के केवल 22 साझेदार है। यानी, दुनिया के ज्यादातर देश और संयुक्त राष्ट्र भी ताइवान को स्वतंत्र देश नहीं मानते हैं। 22 देशों को छोड़कर बाकी देश ताइवान को अलग नहीं मानते हैं। ओलंपिक जैसे वैश्विक आयोजनों में ताइवान चीन के नाम का इस्तेमाल नहीं कर सकता, लिहाजा वह लंबे समय से चाइनीज ताइपे के नाम से खेल में उतरता है।