नई दिल्ली। आर्थिक आधार पर सामान्य वर्ग के गरीब तबकों को दिए गए 10 प्रतिशत आरक्षण मामले में आज सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला दे दिया। मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित की अध्यक्षता वाली 5 जजों की बेंच ने EWS आरक्षण को सही ठहराया है। जनवरी 2019 को संविधान के 103वें संशोधन के तहत कमजोर सामान्य वर्ग को सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में 10 फीसदी आरक्षण दिया गया था। इस रिजर्वेशन को कई लोगों ने देश की सबसे बड़ी अदालत में चुनौती दी थी, जिसमें तमिलनाडु की सत्तारूढ़ पार्टी डीएमके भी शामिल है।
आर्थिक आधार पर दिए गए EWS आरक्षण का विरोध कर रहे लोग इसे संविधान की मूल भावना के खिलाफ बता रहे थे और सुप्रीम कोर्ट से इसे रद्द करने की मांग कर रहे थे। वहीं, केंद्र सरकार इसका बचाव कर रही थी। इसी बीच मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से तीन सवाल पूछा। बताया जा रहा है कि इन्ही तीन सवाल के जवाब के आधार पर सुप्रीम कोर्ट आज फैसला दिया है।
1- क्या आर्थिक आधार पर आरक्षण देने के लिए संविधान में किया गया संशोधन भारतीय संविधान की मूल भावना के खिलाफ है?
2- एससी/एसटी वर्ग के लोगों को इस आरक्षण से दूर रखना क्या संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ है?
3- राज्य सरकारों को निजी संस्थानों में दाखिले के लिए EWS कोटा तय करना क्या संविधान के खिलाफ है?
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में EWS आरक्षण का समर्थन किया। सरकार की ओर से कोर्ट में पेश हुए वकील केके वेणुगोपाल ने कहा यह कानून सामान्य वर्ग के गरीब लोगों को आरक्षण देता है। इस कानून से संविधान के मूल ढांचे को ज्यादा मजबूती मिलेगी। इसे संविधान के खिलाफ नहीं बताया जा सकता है।
बता दें कि EWS बिल को लेकर 8 जनवरी 2019 को संसद के निचले सदन लोकसभा में वोटिंग हुई। इसके पक्ष में 323 और विपक्ष में 3 वोट पड़े, कई सांसदों ने इस मतदान प्रक्रिया में भाग नहीं लिया। वहीं डीएमके, आरजेडी और वाम दलों ने इसका विरोध किया। इसके बाद 10 जनवरी 2019 को इस बिल को लेकर राज्यसभा में मतदान हुआ। जहां पर इसके पक्ष में 165 और विरोध में 7 सांसदों ने वोट किया। दोनों सदनों से बिल के पास होने के बाद 31 जनवरी 2019 को केंद्र सरकार ने EWS आरक्षण को लेकर नोटिफिकेशन जारी कर दिया।
केंद्र सरकार ने 103वें संशोधन के जरिए संविधान में अनुच्छेद 15 और 16 जोड़ दिया। जिसके बाद देशभर में आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग को लोगों को सरकारी नौकरी और शिक्षण संस्थानों में प्रवेश के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण मिल गया। EWS कोटा लागू होने के एक साल बाद फरवरी 2020 में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में 2 छात्रों ने इसके खिलाफ याचिका दायर की। उन्होंने कोर्ट में कहा कि 10 प्रतिशत EWS आरक्षण से एससी-एसटी और ओबीसी को बाहर किया जाना संविधान की मूल भावना के खिलाफ है।
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