बिहार. नीतीश सरकार के शराबबंदी कानून पर सुप्रीम कोर्ट Supreme Court ने सख्त टिप्पणी की है। बुधवार को मुख्य न्यायाधीश एन वी रमन ने शराबबंदी कानून liquor prohibition law में दी गई जमानत के खिलाफ दायर अनेक याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा कि बिहार के इस कानून ने अदालतों पर बहुत बोझ डाला है। […]
बिहार. नीतीश सरकार के शराबबंदी कानून पर सुप्रीम कोर्ट Supreme Court ने सख्त टिप्पणी की है। बुधवार को मुख्य न्यायाधीश एन वी रमन ने शराबबंदी कानून liquor prohibition law में दी गई जमानत के खिलाफ दायर अनेक याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा कि बिहार के इस कानून ने अदालतों पर बहुत बोझ डाला है। बता दें कि बिहार में शराबबंदी और उत्पाद अधिनियम, 2016 के तहत 10 साल की सजा का प्रावधान है।
न्यायमूर्ति रमन ने कहा कि मुझे पता चला है कि पटना हाईकोर्ट में रोज ऐसी अनेकों याचिकाएं आती हैं। और वहां ऐसे मामले को सूचीबद्ध करने में एक साल तक का समय लग रहा है। और तो और पटना हाईकोर्ट के 14 -15 न्यायाधीश तो केवल इन मामलों की ही सुनवाई कर रहे हैं। इस दौरान प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एन वी रमन के नेतृत्व वाली पीठ ने करीब 40 याचिकाओं को खारिज कर दिया।
बिहार सरकार के अधिवक्ता मनीष कुमार ने सुनवाई के दौरान अपना पक्ष रखते हुए कहा कि हाईकोर्ट ने शराबबंदी कानून का उल्लंघन करने वाले आरोपियों को बिना कारण बताए जमानत दे दी। जबकि कानून के तहत इस गंभीर अपराध में 10 साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है। उन्होंने हाईकोर्ट के फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा कि जमानत पाने वालो में कुछ आरोपी तो ऐसे हैं जिनसे 400 से 500 लीटर शराब जब्त की गई।
बिहार सरकार के अधिवक्ता के सवाल पर चुटकी लेते हुए प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि तो क्या आपके हिसाब से हमें सिर्फ इसलिए जमानत नहीं देनी चाहिए, क्योंकि आपने कानून बना दिया है। कोर्ट ने कहा आप जिन अपराधों के बारे में कह रहे हैं उनमें कुछ मामलों में साल 2017 में जमानत दी गई थी। अब इसके लिए याचिकाओं से निपटना उचित नहीं होगा। इन मामलों के कारण अदालतों का काम बुरी तरह प्रभावित हुआ है। गौरतलब है कि राज्य में शराबबंदी और उत्पाद अधिनियम के तहत 3,48,170 मामले दर्ज हैं। जिनमें 4,01,855 गिरफ्तारियां की गईं हैं। और तकरीबन 20,000 जमानत याचिकाएं हाईकोर्ट या जिला अदालतों में लंबित हैं।