नई दिल्ली: 24 साल पहले आज ही के दिन भारत के आगे पाकिस्तान ने घुटने टेक दिए थे. हालांकि ये जंग इतनी आसान नहीं थी. जी हां! हम करगिल विजय दिवस की बात कर रहे हैं. वो जंग जब भारत ने पाकिस्तान को उसकी औकात याद दिला दी थी और भारतीय जवानों ने कश्मीर पर […]
नई दिल्ली: 24 साल पहले आज ही के दिन भारत के आगे पाकिस्तान ने घुटने टेक दिए थे. हालांकि ये जंग इतनी आसान नहीं थी. जी हां! हम करगिल विजय दिवस की बात कर रहे हैं. वो जंग जब भारत ने पाकिस्तान को उसकी औकात याद दिला दी थी और भारतीय जवानों ने कश्मीर पर कब्ज़ा जमाने की पाकिस्तान की नीयत को तोड़ दिया था.
भारत की किताब में ये अध्याय सुनहरे अक्षरों में बुना हुआ है जिसे यानी 26 जुलाई को करगिल विजय दिवस मनाया जाता है. हालांकि सुनहरे अक्षरों में लिखे इन शब्दों की स्याही कई बलिदानियों से बनी ही है. आज हम आपको उन्हीं कहानियों गौरव गाथाओं के बारे में बताने जा रहे हैं जिसे हर भारतीय को जानना बेहद जरूरी है. वैसे तो करगिल युद्ध से जुड़ी कई कहानियां हैं लेकिन आज हम आपको कुछ ऐसे किस्से बताने जा रहे हैं जो आपको न सिर्फ अपने देश के वीर जवानों की याद दिलाएंगे बल्कि आपको एक भारतीय होने पर गर्व भी महसूस करवाएंगे.
16 हजार फीट की ऊंचाई… माइनस 10 डिग्री पर पारा… जब बात द्रास पर चढ़ने की आई तो सभी जवानों के हाथ-पैर फूलने लगे. लेकिन चोटी पर कब्जा करने आए पाकिस्तानियों को भगाना था इस बीच भारतीय सेना का जो अफसर सबसे आगे खड़ा था वो नींबू साहब थे. जब उन्होंने चढ़ाई करनी शुरू कि तो उनके जूते कमजोर पड़ने लगे और फिसलने लगे. लेकिन उनका हौसला कहां रुकने वाला था. दिल में भारतीय जुनून लिए उन्होंने जूतों को त्याग दिया और इतनी ठंड में बिना जूतों के ही खतरनाक चढ़ाई की. फ्रॉस्ट बाइट से उनकी जान भी जा सकती थी लेकिन बिना इसकी परवाह किए उन्होंने मोजे भी उतार दिए और नंगे पैर ही चट्टानों पर चढ़ पड़े.
उनके हौसले को देख कर धीरे-धीरे बाकी के साथियों ने भी ऊपर चढ़ना शुरू किया. बाद में नींबू साहब ने रॉकेट लांचर से फायर कर एक के बाद एक सात पाकिस्तानी बंकरों को तबाह कर दिया। अफ़सोस जवाबी फायरिंग में नींबू साहब को गोली लगी. लेकिन तब भी उनका हौसला डगमगाया नहीं और वह दुश्मनों से लड़ते रहे. आखिरकार नींबू साहब के साथियों ने पोस्ट पर अपना कब्ज़ा जमाया लेकिन भारत ने अपने हीरो को खो दिया. नींबू साहब जा चुके थे और उनके साथियों की आँखें नम रह गईं.
टाइगर हिल पर हमला होने से दो दिन पहले हिंदुस्तानी फौज ने एक पाकिस्तानी फौजी मोहम्मद अशरफ को पकड़ लिया था जो बुरी तरह से जख्मी था. अपने जवानों से ब्रिगेडियर एमपीएस बाजवा ने उस पाकिस्तानी फौजी को सामने लाने के लिए कहा. इसके बाद ब्रिगेडियर के सामने पाकिस्तानी फौजी को पेश किया गया जिसकी आंखें खोलते ही वह जोर-जोर से रोने लगा. जब ब्रिगेडियर ने उससे रोने का कारण पूछा तो उसके जवाब ने सभी को हैरान कर दिया. पाकिस्तान फौजी का कहना था कि उसने अपनी पूरी ज़िन्दगी में कमांडर को नहीं देखा था. पाकिस्तान का बड़ा अफसर उससे बात तक नहीं करता था. इतने बड़े रैंकिंग अफसर को देखकर वह अपने आंसू नहीं रोक पाया.
बात उस समय की है जब भारत और पाकिस्तान के बीच जंग तेज थी. भारत अपनी पूरी कोशिश कर रहा था लेकिन उसे ये बात भी बता थी कि ये जंग लंबी चलने वाली है. इसे जीतने के लिए उन्हें एडवांस इक्विपमेंट्स चाहिए होंगे. करगिल में वायुसेना की एंट्री इसके साथ ही हुई जिसके बाद इस जंग में मिराज फाइटर जेट का इस्तेमाल किया गया.
हालांकि दुश्मन को मिराज से टारगेट करने में काफी समस्या होती थी। इसे हल करने के लिए भारत ने इज़रायल से संपर्क किया. दरअसल भारत ने 1997 में इजरायल से लाइटनिंग इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल टार्गेटिंग पॉड्स खरीदने के लिए डील की थी. इसकी खासियत ये थी कि इसमें लेजर डेज़िग्नेटर के अलावा एक तगड़ा कैमरा भी लगा हुआ था जो टार्गेट की तस्वीर दिखाता था. हालांकि इजरायल से इसे जल्द डिलीवर होने में समय लगना था लेकिन भारत की मदद करने के लिए इजरायल आगे आया और उसने कुछ इंजीनियर भारत भेजे जिसके बाद मिराज फाइटर जेट्स में इस डिवाइस को लगाया गया.
भारत के रक्षा मंत्रालय की कमान उस समय जार्ज फ़र्नांडिस के हाथों में थी और टाइगर हिल अब भी भारत के हाथ से बाहर था. उस पर पाकिस्तानी घुसपैठिए कब्ज़ा जमाए बैठे थे. लेफ़्टिनेंट बलवान सिंह और कैप्टन सचिन निंबाल्कर भारत के वो जांबाज अफसर थे जो टाइगर हिल फतह करने से बस 50 मीटर नीचे थे. ब्रिगेड मुख्यालय तक ‘दे आर शॉर्ट ऑफ़ द टॉप.’ का संदेश भेजा गया जिसका अर्थ ‘टाइगर हिल की चोटी अब बस कुछ ही दूर है’ था. लेकिन श्रीनगर से दिल्ली तक आते-आते इस संदेश की भाषा बिलकुल बदल गई. ‘दे आर ऑन द टाइगर टॉप’ संदेश पहुंचा जिसके बाद टाइगर हिल पर भारत के कब्जे का ऐलान कर दिया गया. हालांकि बाद में भारत ने फतह हासिल कर ली लेकिन ये ख़ुशी जीत से पहले ही मनाई गई थी.