कावेरी जल विवाद: कर्नाटक और तमिलनाडु में तेज हुआ विरोध, जानें क्या है मामला?

नई दिल्ली: तमिलनाडु में कावेरी जल विवाद पर विरोध प्रदर्शन तेज हो गया है. इसके बाद अपने राज्य में नदी का पानी छोड़ने की मांग त्रिची के किसानों द्वारा की जा रही है. जबकि कर्नाटक के मांड्या के किसानों ने भी आंदोलन को तेज कर दिया है. इस बढ़ते विवाद के बीच डीएमके की तरफ […]

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कावेरी जल विवाद: कर्नाटक और तमिलनाडु में तेज हुआ विरोध, जानें क्या है मामला?

Vikash Singh

  • September 29, 2023 10:32 am Asia/KolkataIST, Updated 1 year ago

नई दिल्ली: तमिलनाडु में कावेरी जल विवाद पर विरोध प्रदर्शन तेज हो गया है. इसके बाद अपने राज्य में नदी का पानी छोड़ने की मांग त्रिची के किसानों द्वारा की जा रही है. जबकि कर्नाटक के मांड्या के किसानों ने भी आंदोलन को तेज कर दिया है. इस बढ़ते विवाद के बीच डीएमके की तरफ से कहा गया है कि तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन इस मसले को कूटनीतिक तरीके से संभालने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं. हालांकि इस मसले पर कर्नाटक सरकार पहले ही बोल चुकी है कि कर्नाटक राज्य के पास अपने पड़ोसी राज्य को देने के लिए पर्याप्त पानी नहीं है.

क्या है कर्नाटक सरकार का तर्क?

कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच कावेरी के जल बटवारें को लेकर विवाद बढ़ता जा रहा है. इस मामले में कर्नाटक सरकार की तरफ से तर्क दिया जा रहा है कि कावेरी नदी में पानी की कमी हो गई है. ऐसे में अपने राज्य की जरूरतें पूरा करने में ही काफी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है.

तमिलनाडु की सरकार ने क्या कहा?

कावेरी जल विवाद को लेकर तमिलनाडु की सरकार ने भी अपना पक्ष रखा है. तमिलनाडु सरकार का कहना है कि डेल्टा इलाके के किसान पूरी तरह से कृषि पर निर्भर है ऐसे में उन्हें काफी नुकसान हो रहा है. सरकार के प्रवक्ता का कहना है कि तमिलनाडु की सरकार कानूनी प्रक्रिया से इस मसले को हल करने का प्रयास कर रही है. उन्होंने आगे कहा कि इस मुद्दे को आपसी सौहार्द से निपटाने के लिए जल शक्ति मंत्री और केंद्र सरकार के समर्थन के साथ ही सभी संभावित स्रोत से समन्वय की मांग की जा रही है.

क्या है विवाद?

कावेरी जल बंटवारा विवाद लंबे समय से तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच चलता आ रहा है. जो अब एक भावनात्मक मुद्दा बन गया है. बता दें कि इसकी जड़ें साल 1892 और 1924 में मैसूर साम्राज्य और मद्रास प्रेसीडेंसी के बीच किए गए दो समझौतों में खोजी जा सकती हैं. जून 1990 में केंद्र सरकार ने केरल, पुडुचेरी, तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच कावेरी नदी के जल बंटवारे की क्षमता पर असहमति को खत्म करने के लिए कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण (CWDT) की स्थापना की. इसके बाद साल 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में फैसला सुनाया कि कर्नाटक और तमिलनाडु को कितना पानी अपने पास रखना चाहिए. सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के अनुसार कर्नाटक राज्य को मई से जून के बीच सामान्य जल वर्ष में तमिलनाडु को 177.25 टीएमसी देना होगा. साथ ही जून से सितंबर के बीच कुल 123.14 टीएमसी जल देना होगा. न्यायालय के इस निर्णय के बाद इस साल अगस्त महीन में तमिलनाडु राज्य ने कर्नाटक से 15 दिनों के लिए 15,000 क्यूसेक पानी की मांग की थी. लेकिन CWMA द्वारा पानी की मात्रा कम कर के 10,000 क्यूसेक कर दिया गया. इसके बाद से ही फिर एक बार दोनों राज्यों के बीच जल बटवारें को लेकर विरोध और तेज हो गया है.

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