नई दिल्ली: गुरुवार(23 मार्च) को कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को सूरत जिला कोर्ट द्वारा चार साल पुराने मोदी सरनेम मामले में दोषी करार देते हुए दो साल की सजा सुनाई गई थी।कोर्ट ने राहुल गांधी को जमानत तो दे दी लेकिन दो साल की सजा होने की वजह से उनकी संसद की सदस्यता […]
नई दिल्ली: गुरुवार(23 मार्च) को कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को सूरत जिला कोर्ट द्वारा चार साल पुराने मोदी सरनेम मामले में दोषी करार देते हुए दो साल की सजा सुनाई गई थी।कोर्ट ने राहुल गांधी को जमानत तो दे दी लेकिन दो साल की सजा होने की वजह से उनकी संसद की सदस्यता भी छिन गई है। इस मामले में कोर्ट ने राहुल गांधी को दोषी ठहराते हुए 15,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया।
हालांकि राहुल गांधी आज अपनी सदस्यता बचा सकते थे अगर वह आज से दस साल पहले वो एक गलती ना करते तो। दरअसल आज जिस अधिनियम ने उनकी सदयता छीनी है एक समय में राहुल गांधी ने उसे रद्द करने वाले अध्यादेश को ही फाड़ दिया था। आइए जानते हैं क्या है एक दशक पहले का वो वाकया जिसे लेकर राहुल आज जरूर पछता रहे होंगे। बता दें, लोकसभा सचिवालय से जारी हुए नोटिस में बताया गया है कि लोक प्रतिनिधत्व अधिनियम, 1951 के एक कानून के तहत उनकी सांसदी छीनी जा चुकी है।
एक समय ऐसा था जब राहुल गांधी अपनी इस गलती से बच सकते थे। दरअसल, अगर राहुल गांधी ने 10 साल पहले मनमोहन सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश को न फाड़ा होता तो आज उनकी सदस्यता पर किसी भी तरह का खतरा नहीं मंडराता। आपको बता दें, 10 साल पहले राहुल गांधी ने सदन में एक अध्यादेश को फाड़ दिया था और उनकी यही गलती उनपर भारी पड़ गई है। इस गलती की वजह से अब राहुल गांधी 8 साल तक चुनाव भी नहीं लड़ पाएंगे।
2013 सिंतबर में मनमोहन सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश को यूपीए की सरकार ने ही पारित किया था। इसका मकसद उसी साल जुलाई महीने में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित एक आदेश को निष्क्रिय करना था, जिसमें अदालत ने कहा था कि दोषी पाए जाने पर सांसदों और विधायकों की सदस्यता रद्द कर दी जाएगी।लेकिन राहुल गांधी ने मनमोहन सिंह की ओर से लाए गए उस अध्यादेश को फाड़ दिया। अगर राहुल गांधी ने ऐसा नहीं किया होता तो आज उनकी सांसदी नहीं छिनी जाती।
ये मामला है 2013 का जब सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसला सुनाया। इसके मुताबिक अगर किसी सांसद/विधायक को 2 साल या उससे ज्यादा की सजा मिलती है, तो उसकी सदस्यता रद्द कर दी जाएगी और वो अगले 6 साल तक कोई चुनाव नहीं लड़ सकेंगे। उस वक्त इस फैसले का सबसे ज्यादा असर लालू प्रसाद यादव पर पड़ सकता था। क्योंकि उस वक्त चारा घोटाले मामले का फैसला आने वाला था। लालू की पार्टी मनमोहन सरकार का हिस्सा हुआ करती थी। ऐसे में मनमोहन सिंह सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ एक अध्यादेश लाए, जिससे सुप्रीम कोर्ट का फैसला निष्प्रभावी हो जाए।
24 सितंबर 2013 को कांग्रेस सरकार ने अध्यादेश की खूबियां बताने के लिए एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई थी। इसी बीच प्रेस कॉन्फ्रेंस में राहुल गांधी भी पहुंचे थे और उन्होंने कहा था ‘ये अध्यादेश बेहद बकवास है और इसे फाड़कर फेंक देना चाहिए।’ यहां तक कि उन्होंने अध्यादेश की कॉपी को फाड़ तक दिया था। इसके बाद ये अध्यादेश वापस ले लिया गया था।
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