Mumbai: महाराष्ट्र विधानसभा का शीतकालीन सत्र चल रहा है, जिसका आज आखिरी दिन है। इसी के साथ आज सबकी नजरें स्पीकर चुनाव Speaker Election पर टिकी हैं लेकिन उससे पहले चुनाव में एक नया पेंच फस गया है। दरअसल सीएम उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महाविकास आघाडी सरकार चुनाव को वॉयस वोटिंग के आधार पर […]
महाराष्ट्र विधानसभा का शीतकालीन सत्र चल रहा है, जिसका आज आखिरी दिन है। इसी के साथ आज सबकी नजरें स्पीकर चुनाव Speaker Election पर टिकी हैं लेकिन उससे पहले चुनाव में एक नया पेंच फस गया है। दरअसल सीएम उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महाविकास आघाडी सरकार चुनाव को वॉयस वोटिंग के आधार पर कराना चाहती है जबकि राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को ये मंजूर नहीं है। उन्होने इस प्रक्रिया को असंवैधानिक करार दिया है।
महाराष्ट्र की महाविकास आघाडी सरकार और राज्यपाल दोनों ही अपने तर्कों के साथ चुनाव की प्रक्रिया को लेकर अड़ गए हैं। राज्य सरकार ने एक खत लिखकर राज्यपाल से वॉयस वोटिंग की मंजूरी मांगी थी। जवाब में राज्यपाल ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर चुनाव प्रक्रिया को गैरसंवैधानिक बताया था। इस पर ठाकरे सरकार ने राज्यपाल को नसीहत देते हुए लिखा था कि विधानसभा के कामकाज और तरीके पर उन्हें हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है और वह इस पचड़े से दूर रहें। राज्यपाल ने इसका कोई जवाब नहीं दिया। इसी के साथ अब विधानसभा अध्यक्ष के चुनाव पर संदेह गहरा गया है।
यदि वॉयस वोटिंग के आधार पर चुनाव होता है तो खुले तौर पर महाविकास आघाडी सरकार को पता लग जाएगा कि किस विधायक ने किसके पक्ष में वोट दिया। जबकि राज्यपाल के अनुसार वॉयस वोटिंग करवाना संविधान के अनुरुप नहीं है, क्योंकि इससे गुप्त मतदान की परंपरा टूटती है। इस पर ठाकरे सरकार का तर्क है कि यह पहली बार नही होगा कि वॉयस वोटिंग द्वारा चुनाव किया जाए। ऐसा पहले भी अन्य राज्यों में हुआ है, लोकसभा में भी हुआ है।
महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष के चुनाव में राज्यपाल ने वॉयस वोटिंग के लिए अपनी असहमति जरुर जताई है लेकिन चुनाव को रद्द नहीं किया है। ऐसे में ठाकरे सरकार के सामने चुनौती होगी कि वह पहले राज्यपाल कोश्यारी को मनाए और फिर चुनाव कराए। या फिर राज्यपाल की आपत्तियों को ध्यान में रखते हुए चुनाव को फिलहाल टाल दिया जाए। जबकि कांग्रेस चाहती है कि राज्यपाल की सहमति के बिना ही चुनाव कराया जाए। यदि ऐसा होता है तो महाराष्ट्र में एक तरह से संवैधानिक संकट खड़ा हो जाएगा। बीजेपी इस फैसले को कोर्ट में चुनौती दे सकती है।