Advertisement
  • होम
  • top news
  • महाराष्ट्र: चल गया हिंदू-मुस्लिम का फंडा, जानें महायुति की प्रचंड जीत के 5 बड़े कारण

महाराष्ट्र: चल गया हिंदू-मुस्लिम का फंडा, जानें महायुति की प्रचंड जीत के 5 बड़े कारण

महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा के चुनावी रुझानों ने विपक्ष को सोचने को मजबूर कर दिया है कि गलती कहां हुई. लोकसभा चुनाव में जिन मुद्दों ने विपक्ष को सफलता दिलाई थी क्या अब वो काम नहीं कर रहे हैं. आखिर देश के चुनाव में कमजोर हुई भाजपा और एनडीए विधानसभा चुनाव में कैसे भारी पड़ रहे हैं?

Advertisement
Devendra Fadnavis with Ajit Pawar & Eknath Shinde
  • November 23, 2024 4:02 pm Asia/KolkataIST, Updated 1 month ago

मुंबई: महाराष्ट्र और झारखंड की तस्वीर साफ हो चली है. महाराष्ट्र में महायुति तीन चौथाई बहुमत हासिल करने की तरफ है. भाजपा 149 सीटों पर लड़कर 130 हासिल करती हुई दिख रही है जबकि शिवसेना शिंदे गुट 57 और एनसीपी अजित गुट 39 सीट. वहीं बात करें महाविकास अघाड़ी यानी एमवीए की तो कांग्रेस 21, शिवसेना यूबीटी 18 और एनसीपी शरद पवार गुट 13 पर सिमटते नजर आ रहे हैं. 8 अन्य की खाते में जा रही है. किसी भी चुनाव में जीत हार का कोई एक कारण नहीं होता. जानिए वो 5 कारण जिसकी वजह से महायुति खासतौर से भाजपा महाविजेता बनकर उभरी.

लाल किताब Vs आरएसएस

राहुल गांधी की लाल किताब इस पर काम नहीं आई, न संविधान की रक्षा, न ही जाति जनगणना का नारा चल पाया. लोकसभा चुनाव में आरएसएस ने शुरू के दो राउंड में हाथ खींच लिया था लेकिन इस बार वह जी जान से जुटा रहा. यूपी के सीएम योगी के नारे बंटेंगे तो कटेंगे का समर्थन और पर्दे के पीछे से हिंदुओं को एकजुट करने के लिए आरएसएस ने ही रणनीति बनाई थी. आपने गौर किया होगा कि जिस तरह हिंदू बनाम मुस्लिम का हाल में माहौल बना है वह संघ की ही रणनीति बताई जा रही है. महिलाएं भी आगे आईं की यदि अब एकजुट नहीं हुए तो परिस्थितियां हाथ से निकल जाएगी. देवेंद्र फडणवीस स्वभाव के विपरीत इस नारे को लेकर आक्रामक रहे और समय समय पर संघ का दरवाजा भी खटखटाते रहे.

चल गया बंटेंगे तो कटेंगे का जादू

दूध का जला छांछ भी फूंककर पीता है. हरियाणा चुनाव में योगी आदित्यनाथ ने बंटेंगे तो कटेंगे का जो नारा बुलंद किया था उसे पीएम नरेंद्र मोदी और आरएसएस सभी ने अपने अपने हिसाब से बुलंद किया. पीएम ने उसे एक हैं तो सेफ है कहा. चुनाव के दौरान वक्फ बोर्ड और उससे जुड़े विवाद ने भी आम मतदाताओं में नया नैरेटिव बनाया । मुस्लिम संगठनों की ओर से महाविकास अघाड़ी के लिए वोटिंग करने के फतवे ने आग में घी का काम किया.

देवेंद्र फडणवीस और असदुद्दीन औवैसी के बीच राजनीतिक बहस, अकबरुद्दीन ओवैसी का 15 मिनट वाला भाषण हिंदू मतदाताओं को एकजुट कर गया। अजित पवार ने 41 सीटों पर अपने चाचा शरद पवार की पार्टी एनसीपी-एसपी से सीधी लड़ाई लड़े। 51 सीटों पर वह महायुति के साथ थे जबकि 8 सीटों पर फ्रेंडली फाइट किया लेकिन चाचा या परिवार की कहीं बुराई नहीं की. योगी के नारे का समर्थन नहीं किया और अपनी सधी चाल चलते रहे.

लाडली बहनों ने दिया भइया का साथ

महाराष्ट्र चुनाव से पहले शिंदे सरकार ने मध्य प्रदेश वाली लाडली बहना योजना अपने यहां गाजे बाजे के साथ शुरू कर दी जिसमें महिलाओं को 1500 रुपये हर महीना देने का ऐलान किया गया. चुनाव प्रचार के दौरान महायुति ने इसे बढ़ाकर 2100 रुपये हर महीने देने का वादा किया और किसानों को भी कर्ज से राहत देने की बात कही गई। बताते हैं कि इसके प्रचार पर 200 करोड़ से अधिक खर्च किया गया. इस योजना ने महिलाओं में जोश भर दिया और उन्होंने महायुति के पक्ष में खूब वोटिंग की.

शिंदे की इमेज आई काम

उद्धव सरकार गिराकर सीएम का ताज पहनने वाले एकनाथ शिंदे गद्दार और धोखेबाज जैसी आलोचना झेलते रहे और कभी धैर्य नहीं खोया. हमेशा सहज सरल और लोगों के बीच उपलब्ध रहे. उन्होंने 2.5 साल में विकास करने और आम लोगों के बीच रहने वाले नेता की छवि बनाई। बाला साहेब ठाकरे की तस्वीर आगे रखकर यह जताने में सफल रहे कि उद्धव ठाकरे ने सत्ता के लिए समझौता किया है उन्होंने नहीं. सीएम पद के लिए भी उन्होंने दावेदारी नहीं जताई. टिकट बंटवारे में भी उन्होंने बाजी जीती और चुनाव में भी.

उद्धव ने भी अघाड़ी को चौपट किया

लोकसभा चुनाव में 30 सीटों के साथ महाविकास अघाड़ी को बड़ी जीत मिली थी और महायुति खासतौर से भाजपा का बहुत ही खराब प्रदर्शन रहा. इससे कांग्रेस और शिवसेना के नेता अति आत्मविश्वास में आ गये. उनकी बयानबाजी बढ़ती चली गई. भाजपा और शिवसेना शिंदे गुट ने बाला साहब ठाकरे को आगे रखा. उद्धव ठाकरे से बड़ी चूक हुई कि बाला साहब ठाकरे की छवि के विपरीत उद्धव ठाकरे ने खुद को सर्वसमाज का नेता बनाने में लगे रहे। टिकट बंटवारे के दौरान सीटों और सीएम फेस को लेकर विवाद हुआ. कांग्रेस और शिवसेना दोनों सीएम पद की दावेदारी ठोकते रहे. एनसीपी भी पीछे नहीं थी लेकिन वह घुमा फिराकर बात कर रही थी. चुनाव के दौरान उद्धव गुट ने विकास की बात कम, शिंदे से बदले की लड़ाई लड़ती रही। उद्धव ठाकरे के वीडियो ने भी नुकसान पहुंचाया.

Read Also-

बीजेपी के इस दांव से राहुल बाबा चारों खाने चित्त, जलवा हो जाएगा खत्म!

Advertisement