मुंबई, महाराष्ट्र के सियासी नाटक के इस सीजन का अब क्लाइमैक्स हो गया है. एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री बन गए हैं. भाजपा ने उन्हें समर्थन दिया है, अब इस क्लाइमेक्स के बाद सभी के मन में बस एक ही सवाल है कि आखिर भाजपा ने सिर्फ 49 विधायकों के समर्थन वाले एकनाथ शिंदे […]
मुंबई, महाराष्ट्र के सियासी नाटक के इस सीजन का अब क्लाइमैक्स हो गया है. एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री बन गए हैं. भाजपा ने उन्हें समर्थन दिया है, अब इस क्लाइमेक्स के बाद सभी के मन में बस एक ही सवाल है कि आखिर भाजपा ने सिर्फ 49 विधायकों के समर्थन वाले एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री क्यों बनाया?
महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना, दोनों ही हिंदूवादी राजनीति के कॉम्पिटिटर हैं. 30 सालों से साथ होने के बावजूद दोनों ही जानते हैं कि किसी एक के बढ़ने का मतलब दूसरे का कम होना है और आंकड़े भी इसकी गवाही देते हैं. साल-दर साल शिवसेना सिमटती गई और भाजपा उतनी ही तेज़ी से आगे बढ़ती गई.
पिछले विधानसभा चुनाव में शिवसेना और बीजेपी दोनों साथ थी, भाजपा बड़ी पार्टी बनी और सीएम पद पर दावा ठोंक दिया, लेकिन शिवसेना समझ गई कि अगर सीएम की कुर्सी फिर से फडणवीस के हाथ में गई तो भाजपा को तेजी से फैलने में वो नहीं रोक पाएगी. 2019 में भाजपा और उद्धव के बीच मचे घमासान की बड़ी वजह सीएम की कुर्सी ही थी. चूंकि शिवसेना को खत्म किए बिना बीजेपी आगे नहीं बढ़ सकती, लेकिन शिवसेना को और उसके ब्लेम को खत्म करने के लिए शिंदे को सीएम बनाया गया. इसके अलावा शिंदे को मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा ये संदेश देना चाहती है कि उन्हीं का खेमा असली शिवसेना है.
असल में देवेंद्र फडणवीस का यह गेमप्लान ‘सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे’ की कहावत पर आधारित है, भाजपा ने यह दांव चलकर उद्धव ठाकरे से 2019 के ‘धोखे’ का बदला लिया है, भाजपा ने उस समय का बदला लिया है जब साथ मिलकर चुनाव लड़ने के बाद शिवसेना ने पलटी मारते हुए कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बना ली थी. अजित पवार को तोड़कर फडणवीस ने सीएम पद की शपथ ली लेकिन बहुमत साबित नहीं कर पाने की वजह से उन्हें 24 घंटों के अंदर ही कुर्सी से उतरना पड़ा. अब फडणवीस ने ठाकरे का तख्तापलट करके वह बदला पूरा कर लिया है, लेकिन इस तख्तापलट के बाद फडणवीस को सीएम ना बनाकर भाजपा ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि सत्ता के लालच में उद्धव की सरकार नहीं गिराई गई है.
शिंदे के साथ शिवसेना के 39 विधायकों की बगावत के बाद से उद्धव ठाकरे का खेमा लगातार इस पूरे घटनाक्रम में भाजपा को एक विलेन की तरह पेश करने की कोशिश कर रहा था. भाजपा पर सत्ता के लालच में बगावत करवाने और विधायकों की खरीद-फरोख्त का आरोप लगाना शुरू कर दिया था. अब भाजपा ने एक ही झटके में इस नैरेटिव को ध्वस्त कर दिया है.
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