कर्नाटक Karnataka विधानसभा में आज ‘धर्मांतरण विरोधी विधेयक’ Anti Conversion Bill चर्चा के लिए रखा जाएगा। यह विधेयक शुरु से ही विवादो में रहा है। ऐसे में विपक्षी दलों, विशेषकर कांग्रेस द्वारा इसका भारी विरोध होने के आसार हैं। बता दें कि पहले इस विधेयक पर बुधवार को चर्चा होनी थी। लेकिन सभी पक्षों की सहमति से इस पर आज चर्चा करने का फैसला किया गया था।
कांग्रेस शुरु से ही ‘धर्मांतरण विरोधी विधेयक’ के खिलाफ है। पार्टी के नेताओं ने मंगलवार को विधानसभा में विधेयक पेश करने समय इसका कड़ा विरोध किया था और इसे ‘सख्त और संविधान विरोधी’ करार दिया था। पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता सिद्धारमैया ने कहा था कि उनकी पार्टी विधेयक को पारित नहीं होने देगी। ये भाजपा की सोची समझी रणनीति है जिसके जरिए लोगों का असल मुद्दों से भटकाया जा रहा है।
कांग्रेस के साथ जनता दल (सेक्युलर) ने भी ‘धर्मांतरण विरोधी विधेयक’ का विरोध करने की घोषणा की है। इसके अलावा राज्य का ईसाई समुदाय भी विधेयक के खिलाफ है। बुधवार को बेंगलुरु में करीब 40 संगठनों ने विधेयक के खिलाफ प्रदर्शन कर अपनी नाराजगी जताई थी। इस दौरान बेंगलुरु के आर्चबिशप पीटर मचाडो ने कहा, “कर्नाटक देश का एक प्रगतिशील राज्य है और इसे निजता, सम्मान और मानवाधिकार के खुलेपन को लेकर दूसरों को मैसेज देना चाहिए। यह बिल न सिर्फ ईसाइयों को बल्कि पूरे समाज को प्रभावित करेगा। यह लोगों की निजता का सवाल है, महिलाओं, दलितों और मुस्लिमों का सवाल है।
कर्नाटक मंत्रिमंडल से स्वीकृत ये विधेयक धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार की सुरक्षा देता है। यानि बलपूर्वक, अनुचित प्रभाव, लालच या किसी भी कपटपूर्ण तरीके से एक धर्म से दूसरे धर्म में गैरकानूनी परिवर्तन पर रोक लगाता है। ऐसा किए जाने पर दंडात्मक प्रावधानों का भी प्रस्ताव है। हालांकि विधेयक में कहा गया है कि जो लोग अन्य धर्म अपनाना चाहते हैं, उन्हें 30 दिन पहले जिलाधिकारी के पास घोषणापत्र जमा करना होगा। नियम उल्लंघन का दोषी पाए जाने पर 25,000 से एक लाख रुपए तक का जुर्माना और 3 से 10 साल तक की सजा भी हो सकती है।
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