नई दिल्ली. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीसरी बार पीएम बनने के बाद अपनी पहली विदेश यात्रा पर इटली पहुंचे हुए हैं जहां वह बैठक में शिरकत करने के अलावा दुनिया के शक्तिशाली देशों अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन, ब्रिटेन के पीएम ऋषि सुनक, इटली की पीएम जार्जिया मेलोनी, फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रो व यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की समेत तमाम विदेशी हस्तियों से मिलजुल रहे हैं. सबसे बड़ा सवाल है कि भारत जी 7 का सदस्य नहीं है फिर भी उसे लगातार इसकी बैठकों में क्यों बुलाया जा रहा है. ऐसा भारत के बढ़ते प्रभाव के कारण हो रहा है या कोई और बात है?
जी-7 यानी ग्रुप ऑफ़ सेवेन दुनिया की सात अत्याधुनिक अर्थव्यवस्थाओं का एक समूह है, जिसका ग्लोबल ट्रेंड व अंतरराष्ट्रीय वित्तीय व्यवस्था पर प्रभाव है. जो सात देश इस समूह में शामिल हैं उनमें कनाडा, फ़्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, ब्रिटेन और अमेरिका शामिल हैं.1998 में इस समूह में रूस को भी शामिल किया गया था और इसका नाम जी-8 हो गया था लेकिन साल 2014 में रूस के क्रीमिया पर कब्ज़े के बाद उसे इस समूह से निकाल दिया गया. चीन कभी भी इस गुट का हिस्सा नहीं रहा.
ऐसे में सवाल उठता है कि जब भारत जी 7 का सदस्य नहीं है फिर भी उसे क्यों बुलाया जाता है. दरअसल भारत लगभग 3.4 ट्रिलियन डॉलर की जीडीपी के साथ दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, जो केवल अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी से पीछे है. 2047 तक विकसित देश बनने की तैयारी है. विकस दर 7 फीसद से ऊपर है.
अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ़ भी मानता है कि भारत दुनिया की सबसे तेज़ी से उभरती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है. आईएमएफ की एशिया-पैसेफिक की उप निदेशक ऐनी-मैरी गुल्डे-वुल्फ के मुताबिक भारत दुनिया के लिए एक प्रमुख आर्थिक इंजन साबित हो सकता है जो उपभोग, निवेश और व्यापार के ज़रिए वैश्विक विकास को गति देने में सक्षम है. भारत अपनी बाजार क्षमता, कम लागत, व्यापार सुधार और अनुकूल औद्योगिक माहौल के कारण निवेशकों के लिए पसंदीदा जगह बन गया है.
दूसरा कारण ये है कि अमेरिका, जापान और अन्य यूरोपीय देश ऐसी नीतियां बना रहे हैं, जिनमें हिंद-प्रशांत क्षेत्र के साथ क़रीबी बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है.
ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी यानी यूरोप के जी-7 सदस्यों ने अपनी-अपनी इंडो-पैसिफिक रणनीतियां तैयार की हैं. इटली ने भी हाल ही में इंडो-पैसिफिक क्षेत्र संग जुड़ने की इच्छा जताई है. ऐसे वक़्त में जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का प्रभाव कम होता जा रहा है तो ये संगठन और भी महत्वपूर्ण हो गया है जिसमें उभरती अर्थव्यवस्थाओं का दबदब बढ़ रहा है.
एक वजह ये भी है कि 1980 के दशक में जी7 देशों की जीडीपी विश्व के कुल जीडीपी का लगभग 60 प्रतिशत था. अब यह घटकर लगभग 40 फ़ीसदी हो गया है. हडसन इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट कहती है कि प्रभावशाली देश होने के वाबजूद भविष्य में इसके दबदबे में और कमी आने की संभावना है. ऐसे में भारत जी7 का नया सदस्य बन सकता है.
इसका पहला उद्देश्य दुनिया में बढ़ती मंहगाई और व्यापार से जुड़ी चिंताओं के बीच वैश्विक अर्थव्यवस्था को स्थिर करने के लिए आर्थिक नीतियों में तालमेल स्थापित करना है.
दूसरा उद्देश्य, इस शिखर सम्मेलन में कार्बन उत्सर्जन को कम करने और सस्टेनेबेल एनर्जी को बढ़ावा देने की रणनीति होगी और जलवायु परिवर्तन से निपटने के उपायों पर विचार किया जाएगा.
तीसरा उद्देश्य कोरोना के बाद दुनिया ने महसूस किया कि स्वास्थ्य आपातकाल के लिए सिस्टम को और बेहतर बनाना समय की मांग है.
इसके अलावा सम्मेलन में भू-राजनीतिक तनावों, चीन और रूस सहित ग़ाज़ा और यूक्रेन युद्ध भी चर्चा होगी.
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