नई दिल्ली: गुरुवार को गुजरात के सूरत जिला कोर्ट द्वारा चार साल पुराने मोदी सरनेम मामले में कांग्रेस नेता राहुल गांधी को दोषी करार करते हुए दो साल की सजा सुनाई गई थी. इसके ठीक अगले दिन राहुल गांधी को और भी बड़ा झटका लगा है जहां उनकी संसदीय सदस्यता चली गई है. अब राहुल गांधी अगले 6 साल तक कोई भी चुनाव नहीं लड़ सकते हैं. ऐसे में एक सवाल ये भी उठता है कि आखिर कांग्रेस नेता के पास राजनीति में पैर जमाने के लिए और क्या विकल्प बचता है. सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ लूथरा ने इस संबंध में इनख़बर से बातचीत की और सभी सवालों के जवाब दिए हैं.
भले ही राहुल गांधी की सदस्यता ख़त्म हो गई है लेकिन उनके सामने अपनी सदस्यता को बचाए रखने के सारे रास्ते बंद नहीं हुए हैं. अभी भी वह सूरत कोर्ट के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट जा सकते हैं. लेकिन इससे उनकी सदस्यता वापस नहीं आ सकती है तब तक जब तक कोर्ट उनकी सजा पर स्टे नहीं लगा देता. बता दें, आठ साल तक वह कोई चुनाव भी नहीं लड़ सकते हैं. आने वाले लोकसभा चुनावों में उनकी सदस्यता छिन जाना पार्टी के लिए यकीनन बड़ी चुनौती होगी.
हाई कोर्ट यदि तत्काल लोकसभा स्पीकर के फैसले पर स्टे लगा देता है तो राहुल गांधी की सदस्यता वापस आ सकती है. इसके अलावा राहुल गांधी सुप्रीम कोर्ट का भी रुख कर सकते हैं यदि उन्हें हाईकोर्ट से कोई राहत नहीं मिलती है. हालांकि अदालत लोकसभा अध्यक्ष के किसी फैसले पर रोक लगाए इस बात की संभावना बेहद कम मानी जाती है. हालांकि उन्हें कोर्ट का जल्द से जल्द रुख करना होगा. राहुल गांधी की सदस्यता जाने के मामले में उनके पास महज 30 दिन का समय है. इस दौरान वह कोर्ट जाकर स्टे आर्डर ले सकते हैं नहीं तो उनकी सदस्यता वापस नहीं आएगी.
इसके अलावा राहुल गांधी को सजा सुनाने वाली सूरत की अदालत द्वारा दी गई जमानत को लेकर फैसले के खिलाफ सेशंस कोर्ट का भी रुख कर सकते हैं. उन्हें सेशंस कोर्ट में इस फैसले के खिलाफ याचिका दायर करनी होगी हालांकि इसके बाद फैसला आने पर ही राहुल का भविष्य तय होगा.
इस बीच यदि राहुल गांधी को सेशंस कोर्ट से राहत नहीं मिलती है तो उन्हें जेल भी जाना पड़ सकता है. उनपर छह साल का प्रतिबंध भी लग जाएगा जो आने वाले लोकसभा चुनाव के लिए राहुल और पार्टी के लिए काफी कष्टदायी होगा.
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