आदमपुर में भव्य बिश्नोई की जीत, जानें इस सीट पर क्यों चलता है भजनलाल परिवार का सिक्का

आदमपुर. आदमपुर उपचुनाव में आखिरकार कमल खिल ही गया, भाजपा के भव्य बिश्नोई ने यहाँ से शानदार जीत हासिल की है. भव्य आदमपुर के 17वें विधायक हैं, उन्होंने पहले राउंड में ही बढ़त बना ली थी. आदमपुर के कुल 180 मतदान केंद्रों पर 171754 मतदाताओं में से 131401 मतदाताओं ने मतदान किया था, यहाँ कुल […]

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आदमपुर में भव्य बिश्नोई की जीत, जानें इस सीट पर क्यों चलता है भजनलाल परिवार का सिक्का

Aanchal Pandey

  • November 6, 2022 4:38 pm Asia/KolkataIST, Updated 2 years ago

आदमपुर. आदमपुर उपचुनाव में आखिरकार कमल खिल ही गया, भाजपा के भव्य बिश्नोई ने यहाँ से शानदार जीत हासिल की है. भव्य आदमपुर के 17वें विधायक हैं, उन्होंने पहले राउंड में ही बढ़त बना ली थी. आदमपुर के कुल 180 मतदान केंद्रों पर 171754 मतदाताओं में से 131401 मतदाताओं ने मतदान किया था, यहाँ कुल 76.51 प्रतिशत मतदान हुआ था. भव्य विश्नोई यहाँ 15 हजार वोटों से जीते हैं. भव्य बिश्नोई स्वर्गीय पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल के पोते हैं. ऐसे में, आइए आज आपको बताते हैं कि इस सीट पर भजनलाल परिवार का सिक्का क्यों चलता है:

भजनलाल परिवार की कहानी

हरियाणा की आदमपुर सीट पर अगर आज भी किसी का सिक्का चलता है तो वो है भजनलाल परिवार, और ये सब मुमकिन हुआ पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल की वजह से. 6 अक्टूबर 1930 को भजनलाल का जन्म हुआ था, बहुत कम उम्र में वे यहाँ आकर बस गए थे, उनके बचपन के बारे में कहा जाता है कि वो गांव से पैदल आदमपुर की मंडी में घूमने जाते थे और यहाँ घी बेचा करते थे. मंडी के एक दुकानदार ने भजनलाल की कुशलता को भांप लिया और उन्हें अपनी दूकान में हिस्सेदार बनाकर रख लिया, आगे चलकर भजनलाल ने अपनी इसी कुशलता के दम पर विधायक जुटाए और अपनी सरकार बनाई. लेकिन देश को हरियाणा के भजनलाल की असाधारण राजनीतिक क्षमताओं के बारे में तब पता चला जब साल 1979 में उन्होंने चौधरी देवीलाल की सरकार में डेयरी मंत्री रहते हुए तख्तापलट कर खुद की ही सरकार बना ली और मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ गए, लेकिन ये लड़ाई आसान नहीं थी कि क्योंकि तब खतरे की आशंका को भांपते हुए चौधरी देवीलाल ने करीब 42 विधायकों को तेजाखेड़ा के अपने किलेनुमा घर में बंदूक की नोक पर बंद करके रखा था और इन्हें कहीं भी आने-जाने की मनाही थी, लेकिन भजनलाल भी कम नहीं थे.

भजनलाल की चाल

दरअसल, जिन विधायकों को देवीलाल ने बंद करके रखा था इन्हीं में से एक विधायक राव निहाल सिंह थे, इन्होने तेजाखेड़ा से छुट्टी ली और अपनी बेटी की शादी के लिए घर पहुंच गए. लेकिन देवीलाल से रहा नहीं गया और वो भी पीछे–पीछे बिना बुलाए मेहमान के तौर पर वहां पहुंच गए, पर देवीलाल को कहाँ पता था कि अब देर हो चुकी है क्योंकि जब वो वहां पहुंचे तब तक भजनलाल वहां पहुँच चुके थे. दूसरी ओर घर में बंद लोकदल के एक और विधायक ने तेजाखेड़ा से बाहर जाने की अनुमति मांगी. दरअसल उस वक्त उनके चाचा गंभीर रूप से बीमार थे, ऐसे में उन्हें अपने खेमे में बनाए रखने के लिए चौधरी देवीलाल ने उनके लिए सारे इंतज़ाम करवाए. लेकिन चौधरी देवीलाल से पहले ही भजनलाल ने अंतिम संस्कार तक की तैयारियां करवा दी थी तो यहाँ भी देवीलाल फेल हो गए. इसी बीच देवीलाल के घर कुछ विधायकों से उनके बच्चे और बीवियां मिलने आते और चुपके से ज़्यादा ऑफर आने की बातें बता जाते. रातभर विधायक टहलते रहते और दोनों के ही ऑफर्स के बारे में सोचते, ऐसे में वो दोनों लाल में काफी कन्फ्यूज़ थे, लेकिन बाद में 42 विधायक भजनलाल के खेमे में गए और इस प्रकार जनता पार्टी के चौधरी देवीलाल की सरकार गिराकर भजनलाल 1979 में जनता पार्टी से ही हरियाणा के मुख्यमंत्री बन गए.

आगे चलकर भजनलाल पर आरोप लगे कि खरीदे गए इन विधायकों, कुछ जजों और सरकारी अधिकारियों को दिल्ली, चंडीगढ़ और पंचकुला में प्लॉट बांटे गए हैं. तब ‘आया राम–गया राम’ जुमले को प्रसिद्ध कराने वाले विधायक गया लाल को लेकर ये कहा जा रहा था कि भजनलाल ने इन्हें दो प्लॉट दिए हैं, बता दें गया लाल को लेकर ‘आया राम–गया राम’ जुमला इसलिए दिया जाता था क्योंकि गया लाल ने एक ही दिन में तीन बार पार्टी बदल ली थी.

भजनलाल ने शुरू की जाटव बनाम गैर जाटव की लड़ाई

साल 1977 के चुनाव के बाद केंद्र में जनता पार्टी की सरकार बनी लेकिन आपसी मतभेद के चलते तीन साल में ही ये सरकार गिर गई. इसके बाद जब इंदिरा गाँधी प्रधानमंत्री बनी तो भजनलाल अपने करीब 40 विधायकों समेत कांग्रेस में शामिल हो गए.
भीम एस दहिया अपनी किताब पावर पॉलिटिक्स ऑफ हरियाणा में लिखते हैं कि अपने शुरूआती राजनीतिक सफर में भजनलाल ने जाटों को खुश करने की कोशिश की लेकिन ऐसा कर न सके, आगे दहिया लिखते हैं कि चौधरी देवीलाल की सरकार को सत्ता से बाहर किया जाना जाटों ने खुद की बेइज्जती की तरह लिया, इसके साथ ही इस किताब में ज़िक्र है कि लोग बात करते थे कि हरियाणा के एक ज़िले हिसार में सिमटे बिश्नोई समुदाय के नेता ने चौधरी देवीलाल की सरकार गिरा दी. संख्या के हिसाब से बिश्नोई की हरियाणा की राजनीति में ज्यादा भूमिका नहीं होती थी, अब जाट समुदाय द्वारा स्वीकार ना किये जाने पर भजनलाल ने विधायकों को खुश करना शुरू दिया और उन्हें बिना मांगे सब सुविधाएं दे दी गई जिसके चलते उन्हें बाकी चीज़ों से कोई फर्क ही नहीं पड़ा. देवीलाल और भजनलाल की राजनीति के चलते हरियाणा में जाट और गैर जाट की भावना बढ़ने लगी, वहीं दोनों ही नेताओं को ये राजनीति खूब सूट करती थी. 1979 से लेकर 1999 तक जब भजनलाल सत्ता से हटते तो देवीलाल आते और जब देवीलाल हटते तो भजनलाल आते.

भजनलाल परिवार

1991-1996 तक भजनलाल हरियाणा के मुखयमंत्री रहे थे, फिर इसके बाद सत्ता परिवर्तन हो गया और पहले बंसीलाल फिर चौधरी देवीलाल के बेटे ओमप्रकाश चौटाला सत्ता में आ गए. बाद में कांग्रेस के ही भूपिंदर सिंह हुड्डा साल 2005 में मुख्यमंत्री बने, लेकिन तब तक भजनलाल ये समझ चुके थे कि वो गांधी परिवार के साथ बगावत नहीं कर सकते इसलिए उन्होंने चुप रहना ही सही समझा. तब गांधी परिवार ने भजनलाल को उनके बेटे कुलदीप बिश्नोई और चांद राम को अच्छे पदों पर जगह का वादा किया था, लेकिन आगे चलकर राजनीतिक समीकरण बदले क्योंकि भजनलाल ने 2007 में कांग्रेस छोड़कर अपनी पार्टी हरियाणा जनहित कांग्रेस बना ली थी.

देखिए, भजनलाल को भारतीय चुनावी राजनीति का प्रोफेसर यूँ ही नहीं कहा जाता, दरअसल, 78 साल की उम्र में भी 2009 के चुनावों से पहले उन्होंने कह दिया था कि चुनाव जीतने के लिए अभी तो मैं जवान हूं. उसी साल लोकसभा चुनाव में हरियाणा के दो बड़े नेताओें संपत सिंह और जय प्रकाश को हराकर वो सांसद भी बने थे, लेकिन साल 2011 में 80 साल की उम्र में उनका देहांत हो गया. जब भी भजनलाल के राजनीतिक सफर की बात की जाती है तो इस बात को याद किया जाता है कि उनकी खासियत थी कि वो दूसरे खेमे में खरीद लिए जाने वाले विधायकों की पहचान कर लेते थे.

भजनलाल के दो बेटे चंद्र मोहन बिश्नोई और कुलदीप बिश्नोई और एक बेटी रोशनी हैं, चंद्र मोहन कांग्रेस के कार्यकाल में उपमुख्यमंत्री थे, लेकिन इन पर अनुपस्थिति के आरोप लगाकर 2008 में उपमुख्यमंत्री के पद से हटा दिया गया था. इसके बाद चंद्र मोहन सीधे अपनी दूसरी पत्नी फिज़ा (अनुराधा बाली) के साथ सामने आए, दोनों ने इस्लाम कबूलकर मुस्लिम रीति-रिवाज़ों से शादी कर ली थी, शादी के बाद चंद्र मोहन बन गए थे चाँद मोहम्मद. लेकिन फिर भजनलाल ने चंद्र मोहन को संपत्ति और राजनीतिक उत्तराधिकार से बेदखल कर दिया और उनकी संपत्ति चंद्र मोहन की पहली पत्नी और उनके बच्चों के नाम कर दी, फिर क्या था चंद्र मोहन ने अपनी चाल बदली और एक साल में ही अनुराधा बाली को छोड़कर वापस आ गए, और इसके एक साल बाद ही संदिग्ध परिस्तिथियों में अनुराधा बाली की मौत हो गई, फिर साल 2018 में चंद्र मोहन के फिर से राजनीतिक रूप से सक्रिय होेने की बात उठी पर उठ के रह गई क्योंकि तब तक भजनलाल के दूसरे बेटे कुलदीप बिश्नोई मैदान में आ चुके थे.

कुलदीप बिश्नोई आदमपुर सीट से लड़ते हैं और वो इस सीट से तीसरी बार विधायक हैं. कुलदीप की पत्नी रेणुका बिश्नोई भी हांसी विधानसभा से विधायक हैं. दोनों के तीन बच्चे हैं, कुलदीप के बेटे भव्य बिश्नोई पिता के नक़्शे कदम पर चलते हुए इस बार आदमपुर सीट से उपचुनाव लड़ रहे हैं. जबकि बेटी यूएसए में पढ़ाई कर रही हैं. एक और बेटा चैतन्य बिश्नोई चेन्नई सुपर किंग्स से आईपीएल खेल चुके हैं, कुलदीप बिश्नोई ने साल 2016 में अपनी पार्टी हरियाणा जनहित कांग्रेस को इंडियन नेशनल कांग्रेस में मिला लिया था, लेकिन हाल ही में वो कांग्रेस से अलग हो गए हैं, और भाजपा में शामिल हो गए. ऐसे में गया लाल और भजनलाल की तरह कुलदीप बिश्नोई को लेकर भी ‘आया राम-गया राम’ जुमला इस्तेमाल किया जाता है.

 

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