नई दिल्ली. हरियाणा चुनाव परिणाम आने के बाद कांग्रेस में कोहराम मचा है. पार्टी और सीएम पद के दावेदार भूपेंद्र सिंह हुड्डा व दीपेंद्र हुड्डा दोनों को पूरी उम्मीद थी कि हरहाल में सूबे में कांग्रेस की सरकार बनेगी. …लेकिन ऐसा हो न सका.
जैसे ही परिणाम आया कांग्रेस भागे-भागे चुनाव आयोग पहुंची और हार के कारणों का पता लगाने के लिए छत्तीगढ़ के पूर्व सीएम भूपेश बघेल और राजस्थान के विधायक हरीश चौधरी की दो सदस्यीय कमेटी बना दी.
इंडियन एक्सप्रेस ने कमेटी के सामने अपना पक्ष रखने वाले प्रत्याशियों के हवाले से एक रिपोर्ट छापी है. रिपोर्ट के मुताबिक एक उम्मीदवार ने फोन पर कमेटी को बताया है कि राहुल गांधी की जिस सभा में मौजूद थे भूपेंद्र हुड्डा ने उनके लिए वोट नहीं मांगे. यही नहीं उनके कैंप के लोगों ने खुलेआम उनको हराने के लिए प्रचार किया. उस उम्मीदवार ने यह भी बताया है कि भाजपा जाटों की एकजुटता के खिलाफ यह संदेश देने में कामयाब रही कि यदि कांग्रेस जीती तो सब कुछ जाटों के हाथों में चला जाएगा. मतलब साफ कि हुड्डा कैंप के विरोध के कारण जाटों ने उन्हें वोट नहीं दिया और भाजपा के नैरेटिव की वजह से गैर जाटों ने उनका समर्थन नहीं किया.
एक कांग्रेस प्रत्याशी ने कमेटी को बताया है कि पार्टी नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के कार्यक्रमों के बारे में पता नहीं चल रहा था. उन्हें 45-46 सीटों पर जाना था लेकिन पहुंचे 20-22 पर. राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की विजय संकल्प यात्रा बहुत देर से निकली. पार्टी की हार में रणदीप सिंह सुरजेवाला और कुमारी सैलजा भी कारण बनीं. एक सीट पर 25-30 दावेदार थे और इन नेताओं ने सबको आश्वासन दे रखा था लिहाजा जब टिकट नहीं मिला तो वे अधिकृत उम्मीदवार के खिलाफ हो गये और नुकसान पहुंचाया.
जांट कमेटी को यह भी बताया गया है कि चुनाव के दौरान आपस में तालमेल का अभाव था. प्रदेश के नेताओं से संपर्क साधना मुश्किल था और एआईसीसी के नेताओं से आसानी से संपर्क हो जा रहा था. जिला, ब्लॉक और बूथ स्तर पर संगठन या तो बहुत कमजोर था या बना ही नहीं था. ईवीएम पर भी ठीकरा फोड़ा गया है और सवाल उठाये गये हैं कि दिन भर यूज होने के बावजूद बैटरी 99 फीसद तक कैसे शो हो रही थी. ये सवाल कांग्रेस के प्रतिनिधिमंडल ने चुनाव आयोग के सामने भी उठाये थे.
हालांकि किसी भी चुनाव में जीत हार का कोई एक कारण नहीं होता लेकिन हार के बाद प्रत्येक दल मंथन करता है. इस तर्क में दम दिखता है कि भाजपा के जाट Vs नॉन जाट नैरेटिव ने प्रभावी रूप से काम किया. आपको बता दें कि जिस कांग्रेस की सरकार बनने की पूरी उम्मीद थी वह महज 37 सीटों पर सिमट गई थी और भाजपा 48 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब हुई थी. 2 सीटे इनेलो के खाते में गई थी जबकि 3 सीटें निर्दलीयों ने झटकी थी.
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