गोरखपुर/नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर स्थित गीता प्रेस को साल 2021 के गांधी शांति पुरस्कार के लिए चुना गया है. केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने रविवार को इसकी घोषणा की. इस बीच गीता प्रेस के ट्रस्टी और मैनेजर डॉ. लालमणि तिवारी ने पुरस्कार के लिए भारत सरकार और प्रधानमंत्री मोदी का धन्यवाद किया है. उन्होंने […]
गोरखपुर/नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर स्थित गीता प्रेस को साल 2021 के गांधी शांति पुरस्कार के लिए चुना गया है. केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने रविवार को इसकी घोषणा की. इस बीच गीता प्रेस के ट्रस्टी और मैनेजर डॉ. लालमणि तिवारी ने पुरस्कार के लिए भारत सरकार और प्रधानमंत्री मोदी का धन्यवाद किया है. उन्होंने कहा कि हम निश्चित रूप से इस सम्मान को स्वीकार करेंगे. लेकिन हम किसी भी तरह की धनराशि को नहीं लेंगे, क्योंकि यह हमारा सिद्धांत है.
बता दें कि, गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार मिलने को लेकर सियासी विवाद भी पैदा हो गया है. कांग्रेस पार्टी ने गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार दिए जाने पर सवाल खड़े किए हैं. वहीं अब इस मामले पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का बयान भी सामने आ गया है. शाह ने कहा है कि भारत की गौरवशाली प्राचीन सनातन संस्कृति और आधार ग्रंथों को आज बहुत सुलभता से सभी पढ़ सकते हैं तो इसमें गीता प्रेस का अतुलनीय योगदान रहा है.
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार मिलने पर ट्वीट किया है. जिसमें उन्होंने लिखा है कि 100 सालों से ज्यादा वक्त से गीता प्रेस रामचरित मानस से लेकर श्रीमद्भगवद्गीता जैसे पवित्र हिंदू ग्रंथों को नि:स्वार्थ भाव से लोगों तक पहुंचाने का अद्भुत कार्य कर रही है. इसी वजह से गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार मिलना उनकी ओर से किए जा रहे भागीरथ कार्यों का सम्मान भर है. केंद्रीय गृह मंत्री ने आगे लिखा कि गीता प्रेस को यह पुरस्कार अहिंसक और अन्य गांधीवादी तरीकों से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन लाने की दिशा में उत्कृष्ट योगदान के लिए दिया जा रहा है.
बता दें कि इससे पहले कांग्रेस पार्टी ने गीता प्रेस को पुरस्कार दिए जाने की आलोचना की थी. कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि साल 2021 के लिए गांधी शांति पुरस्कार गोरखपुर स्थित गीता प्रेस को दिया जा रहा है, जो इस साल अपना शताब्दी वर्ष मना रहा है. अक्षय मुकुल ने साल 2015 में इस संस्थान की एक बहुत अच्छी जीवनी लिखी, जिसमें उन्होंने इस संस्थान के महात्मा के साथ उतार-चढ़ान वाले संबंधों, राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक एजेंडे पर उनके साथ चली लड़ाइयों का जिक्र किया है. रमेश ने आगे कहा कि मोदी सरकार का यह फैसला वास्तव में एक उपहास है. ये सावरकर और गोडसे को पुरस्कार देने जैसा है.