नई दिल्ली, 2024 के आम चुनाव परिणाम के बाद विपक्ष संजीवनी पाकर उर्जावा हो गया है जबकि सत्ता पक्ष मौन और भाजपा की जड़ों में खाद पानी डालने वाला राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ यानी कि आरएसएस त्योरियां चढ़ाये हुए है. चुनाव के दौरान भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने एक इंटरव्यू में कहा था कि […]
नई दिल्ली, 2024 के आम चुनाव परिणाम के बाद विपक्ष संजीवनी पाकर उर्जावा हो गया है जबकि सत्ता पक्ष मौन और भाजपा की जड़ों में खाद पानी डालने वाला राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ यानी कि आरएसएस त्योरियां चढ़ाये हुए है. चुनाव के दौरान भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने एक इंटरव्यू में कहा था कि दौर बदल रहा है. भाजपा काफी मजबूत हो चुकी है और अपना काम खुद करती है, चुनाव के लिए आरएसएस की जरूरत नहीं.
परिणाम आने के बाद सरसंघचालक मोहन भागवत का बयान आया कि एक सच्चा सेवक मर्यादा बनाए रखता है, वह काम करते समय मर्यादा का पालन करता है. उसमें यह अहंकार नहीं होता कि वह कहे कि ‘मैंने यह काम किया’. केवल वही व्यक्ति सच्चा सेवक कहलाता है. इसके बाद संघ के वरिष्ठ नेता इंद्रेश ने जयपुर में कहा कि जिस पार्टी ने भगवान राम की भक्ति की लेकिन अहंकारी हो गई, उसे (राम ने) 241 पर रोक दिया, लेकिन उसे सबसे बड़ी पार्टी बना दिया. जो पार्टी राम विरोधी थी उसे 234 पर रोक दिया.
मोहन भागवत ने नागपुर में आरएसएस के कार्यक्रम में संकेतों में बात कही थी लेकिन मणिपुर को लेकर जो सवाल उठाये थे वो मोदी सरकार की पेशानी पर बल बढ़ाने वाले थे. उन्होंने दो टूक कहा था कि कि मणिपुर एक साल से शांति की बाट जोह रहा है. उन्होंने चुनाव के दौरान मर्यादा टूटने और अनावश्यक संघ पर कीचड़ उछालने को भी अफसोसजनक बताया था. उनके बयान पर राजनीतिक पंडित अभी मंथन कर ही रहे थे कि संघ के वरिष्ठ नेता इंद्रेश ने साफ साफ बता दिया कि अहंकार किसी का नहीं रहता. वो राम को तो लाये लेकिन अहंकारी हो गये इसलिए भगवान ने उसे तोड़ दिया.
ऐसे में ये सवाल उठ रहा है कि आखिर भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने क्यों कहा कि अब उन्हें संघ की जरूरत नहीं, पार्टी अपना काम करने में सक्षम है. उसके बाद पहले चरण के चुनाव में संघ चुप बैठ गया, दूसरे चरण में आधे अधूरे मन से निकला और तीसरे चरण से सक्रिय हुआ. परिणाम आने के बाद संघ के सबसे बड़े पदाधिकारी का बयान आया कि सच्चे सेवक में अहंकार नहीं होता. क्या भाजपा और आरएसएस में मतभेद बढ़ रहा है और वह मनभेद की तरफ जा रहा है या सिर्फ खींचतान तक सीमित है.
आपको बता दें कि आरएसएस और भाजपा में खींचतान कोई नई बात नहीं है, जब अटल बिहारी वाजपेयी पीएम थे तब सरसंघचालक सुदर्शन से टकराव सीधे दिखा था और अब पीएम मोदी व भाजपा से संघ की बढ़ती दूरियां फिर दिख रही है.
दरअसल संघ एक वैचारिक संगठन है और वह व्यक्ति से ज्यादा विचार को महत्व देता है, चुनाव के दौरान जिस तरह से व्यक्तिवादी नारे जैसे ‘मोदी की गारंटी’ ‘ मोदी है तो मुमकिन ‘ गढ़े गये और खुद पीएम ने जगह जगह यह नारा लगाया वह आरएसएस को अच्छा नहीं लगा. आरएसएस के जानकार मानते हैं कि संघ यह बर्दाश्त नहीं कर सकता कि व्यक्ति संस्था से बड़ा हो जाए.
जेपी नड्डा के बयान के बारे में माना गया है कि उन्होंने दिया नहीं उनसे बयान दिलवाया गया. संघ को यह बात भी नागवार गुजर रही है कि दूसरे दलों के दागी लोगों को लाकर चुनाव लड़ाया जा रहा है और कार्यकर्ताओं की उपेक्षा हो रही है. सामूहिक फैसले की बजाय दो चार लोग फैसले ले रहे हैं. जिस तरह से एक साल से मणिपुर जल रहा है और सरकार मौन साधे बैठी है वह भी संघ को ठीक नहीं लगा है.
ऐसी बात नहीं की पीएम मोदी और गृहमंत्री शाह को चुनावी बयार से आ रहे संकेतों की जानकारी नहीं थी. उन्हें एक एक बात की जानकारी थी और पीएम मोदी नागपुर दौरे के दौरान वहां रुके भी थे. पहले, दूसरे चरण के चुनाव के बाद नारे बदल गये थे, हिंदू मुस्लिम, मंगलसूत्र, पिछड़ों-दलितों का आरक्षण काटकर मुस्लिमों को देने जैसी बातें खुद पीएम मोदी करने लगे थे. अंतिम चरण के चुनाव तक दल बदल चलता रहा लेकिन बात नहीं बनी.
हार के बहुत सारे कारणों में से आरएसएस की भाजपा से बढ़ती दूरियां भी एक बहुत बड़ा कारण हैं. नीतियां और फैसले अब नागपुर से नहीं बल्कि अहमदाबाद से लिये जाने लगे हैं. कहने को दोनों शहरों की दूरी लगभग 850 किमी है लेकिन जमीनी दूरी से ज्यादा दिल की दूरी मायने रखती है. अब देखना यह है कि आरएसएस हुक्मरानों को झकझोर कर छोड़ देता है या मतभेद, मनभेद की तरफ ले जाता है.
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