नई दिल्ली. दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) चुनाव के नतीजे लगभग आ गए हैं, नगर निगम में आम आदमी पार्टी ने बहुमत का आंकड़ा छू लिया है, आम आदमी पार्टी को 134 यहाँ जबकि भाजपा को यहाँ 104 सीटें मिली हैं. वहीं, अगर कांग्रेस और अन्य की बात करें तो कांग्रेस को यहाँ 9 सीटें मिलीं हैं जबकि अन्य के खाते में तीन सीटें आई हैं.
राजनीतिक पंडितों की मानें तो भाजपा को अब दिल्ली में नए नेता की तलाश करनी होगी क्योंकि विजय मल्होत्रा, विजय गोयल, हर्षवर्धन के बाद भारतीय जनता पार्टी में कोई नया नेतृत्व ऐसे उभरकर सामने नहीं आया है. हालांकि, पार्टी के पास गौतम गंभीर और मनोज तिवारी जैसे लोकप्रिय नेता हैं लेकिन पार्टी को उनका कोई ख़ास फायदा नहीं हो रहा है. भले ही मनोज तिवारी अपने गढ़ में आम आदमी पार्टी को कांटे की टक्कर दे रहे हों लेकिन पूरी दिल्ली में उनका फायदा पार्टी को नहीं मिल पाया. अब अगर भाजपा में नेतृत्व की ही बात की जाए तो फिलहाल पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष आदेश गुप्ता हैं. लेकिन दिल्ली के किसी भी वॉर्ड में उनका खुद का जनाधार नहीं है, ऐसे में पार्टी को अब नए चेहरे तलाशने होंगे.
वहीं, हंसराज हंस, गौतम गंभीर जैसे सांसद लोकसभा का चुनाव भले ही जीत गए हों, लेकिन आम जनता से उनकी कनेक्टिविटी बिल्कुल नहीं है. आज के समय में लोग इन्हें जनसेवक से ज्यादा सेलिब्रेटी के तौर पर ही पहचानते हैं.
भाजपा को एमसीडी की सत्ता से बाहर करने की एक बड़ी वजह एंटी इंकम्बेंसी फैक्टर भी है. दरअसल, जब कई सालों से कोई पार्टी एक ही जगह सत्ता में रहती है तो उसके खिलाफ एंटी इंकम्बेंसी फैक्टर काम करने लगते हैं. बस ऐसा ही कुछ हुआ भाजपा के साथ जिसके चलते जनाधार ने इस बार एमसीडी में भाजपा को नहीं स्वीकारा.
माना जा रहा है कि नगर निगम चुनावों में भाजपा के पास मुद्दों की भी कमी थी तभी तो मुद्दों पर बात करने की बजाय पार्टी सत्येंद्र जैन के वायरल वीडियो और शराब घोटाले को लेकर आम आदमी पार्टी को घेरती रही. भाजपा इन चुनावों के प्रचार के दौरान मुद्दों से हटकर आम आदमी पार्टी पर निशाना साधते ही नज़र आई. भाजपा ने इन चुनावों में आम आदमी पार्टी नेता सत्येंद्र जैन के जेल में सुविधांए लेते वीडियो के जरिए पार्टी को घेरने की हर सम्भव कोशिश की. पार्टी ने प्रदूषण को लेकर भी आप को घेरा, लेकिन चुनाव में भाजपा को इसका कोई ख़ास फायदा होता नज़र नहीं आया.
दिल्ली में कूड़ा एक बड़ी समस्या है. राजधानी में सालों से तीन कूड़े के पहाड़ हैं- ग़ाज़ीपुर, ओखला और भलस्वां. नगर निगम ने गाजीपुर लैंडफिल साइट को समतल करने की डेडलाइन दिसंबर 2024 तय कर रखी थी लेकिन अब तक इस दिशा में कोई काम नहीं किया गया. वहीं, भलस्वा साइट को अगले साल जुलाई तक समतल करने का लक्ष्य रखा गया था. जबकि, ओखला साइट के दिसंबर 2023 तक समतल होने की बात कही जा रही थी.
साल 2019 में गाजीपुर लैंडफिल साइट की ऊंचाई 65 मीटर तक जा पहुंची थी, यानी, यहां कूड़े का पहाड़ इतना ऊंचा हो गया था कि वो कुतुब मीनार से बस 8 मीटर ही छोटा रह गया था, कूड़े के पहाड़ को लेकर लोगों में आक्रोश साफ़ देखने को मिल रहा था. वहीं, आम आदमी पार्टी ने भी कूड़े के पहाड़ को लेकर भाजपा को घेरा था.
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