उत्तर प्रदेश. दारुल उलूम देवबंद Darul Uloom Deoband की ओर से जारी एक फतवा विवादों में घिर गया है। गोद लिए बच्चे पर जारी इस फतवे को बाल अधिकारों का हनन माना जा रहा है। मामले के तूल पकड़ने पर प्रशासन की ओर से संस्था की वेबसाइट को बंद करने के आदेश दे दिए गए हैं। उधर फतवे पर सफाई देते हुए दारुल उलूम इसे मजहबी मामला बता रहा है।
दारुल उलूम की ओर से गोद लिए हुए बच्चों को लेकर फतवा जारी किया गया था, जिसमें कहा गया था कि ऐसे बच्चे को असल बच्चे की बराबर दर्जा नहीं दिया जा सकता है। हालांकि बच्चा गोद लेना गैरकानूनी नहीं है। फतवे में आगे कहा गया कि यह बेहद जरूरी है कि बालिग होने के बाद गोद लिया हुआ बच्चा शरिया पर्दा का पालन करे। केवल इतना ही नहीं बच्चे को पिता की संपत्ति में कोई हिस्सा नहीं मिलने और किसी भी मामले में उसके वारिस नहीं होने की भी बात कही गई है।
दारुल उलूम के इस विवादित फतवे पर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने आपत्ति जताते हुए इसकी शिकायत साहरपुर डीएम से की। अपनी शिकायत में उन्होंने कहा कि दारुल उलूम अपनी वेबसाइट पर विवादित फतवा जारी कर रहा है या भ्रामक बयान दे रहा है। यह पूरी तरह से गलत है। मामले का संज्ञान लेते हुए सहारनपुर डीएम ने वेबसाइट की जांच कराने, भ्रामक सामग्री हटाने और किशोर न्याय अधिनियम 2015 के तहत दारुल उलूम की वेबसाइट पर फिलहाल पाबंदी लगा दी है।
दारुल उलूम ने अपनी सफाई में प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने हमें अधिकार दिया है। वैसे भी बच्चों को लेकर जारी कोई भी फतवा, संस्था की ओर से मशविरा भर है। इसे मानना और न मानना लोगों के हाथ में है। साथ ही, इस मामले को मजहबी मामला बनाकर अलग रूप देने की कोशिश की जा रही है।
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