गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार मिलने पर छिड़ा विवाद, कांग्रेस ने की आलोचना, शाह ने दिया ये जवाब

नई दिल्ली। गोरखपुर की विश्व प्रसिद्ध गीता प्रेस को साल 2021 के लिए गांधी शांति पुरस्कार दिया जाएगा. पीएम मोदी की अध्यक्षता वाली जूरी के निर्णय लेने के बाद रविवार को इसकी घोषणा केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने की. इस बीच इसे लेकर सियासी विवाद भी पैदा हो गया है. कांग्रेस पार्टी ने गीता प्रेस को […]

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गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार मिलने पर छिड़ा विवाद, कांग्रेस ने की आलोचना, शाह ने दिया ये जवाब

Vaibhav Mishra

  • June 19, 2023 4:45 pm Asia/KolkataIST, Updated 1 year ago

नई दिल्ली। गोरखपुर की विश्व प्रसिद्ध गीता प्रेस को साल 2021 के लिए गांधी शांति पुरस्कार दिया जाएगा. पीएम मोदी की अध्यक्षता वाली जूरी के निर्णय लेने के बाद रविवार को इसकी घोषणा केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने की. इस बीच इसे लेकर सियासी विवाद भी पैदा हो गया है. कांग्रेस पार्टी ने गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार दिए जाने पर सवाल खड़े किए हैं. वहीं अब इस मामले पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का बयान भी सामने आ गया है. शाह ने कहा है कि भारत की गौरवशाली प्राचीन सनातन संस्कृति और आधार ग्रंथों को आज बहुत सुलभता से सभी पढ़ सकते हैं तो इसमें गीता प्रेस का अतुलनीय योगदान रहा है.

अमित शाह ने क्या कहा?

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार मिलने पर ट्वीट किया है. जिसमें उन्होंने लिखा है कि 100 सालों से ज्यादा वक्त से गीता प्रेस रामचरित मानस से लेकर श्रीमद्भगवद्गीता जैसे पवित्र हिंदू ग्रंथों को नि:स्वार्थ भाव से लोगों तक पहुंचाने का अद्भुत कार्य कर रही है. इसी वजह से गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार मिलना उनकी ओर से किए जा रहे भागीरथ कार्यों का सम्मान भर है. केंद्रीय गृह मंत्री ने आगे लिखा कि गीता प्रेस को यह पुरस्कार अहिंसक और अन्य गांधीवादी तरीकों से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन लाने की दिशा में उत्कृष्ट योगदान के लिए दिया जा रहा है.

कांग्रेस ने की थी आलोचना

बता दें कि इससे पहले कांग्रेस पार्टी ने गीता प्रेस को पुरस्कार दिए जाने की आलोचना की थी. कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि साल 2021 के लिए गांधी शांति पुरस्कार गोरखपुर स्थित गीता प्रेस को दिया जा रहा है, जो इस साल अपना शताब्दी वर्ष मना रहा है. अक्षय मुकुल ने साल 2015 में इस संस्थान की एक बहुत अच्छी जीवनी लिखी, जिसमें उन्होंने इस संस्थान के महात्मा के साथ उतार-चढ़ान वाले संबंधों, राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक एजेंडे पर उनके साथ चली लड़ाइयों का जिक्र किया है. रमेश ने आगे कहा कि मोदी सरकार का यह फैसला वास्तव में एक उपहास है. ये सावरकर और गोडसे को पुरस्कार देने जैसा है.

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