नई दिल्ली : भारत की मीराबाई चानू ने क्लीन एंड जर्क के अपने पहले अटेंप्ट में 109 किलो ग्राम का भार उठाया और अपने लिए गोल्ड मेडल पक्का किया है।आपको बता दें, यह लिफ्ट कॉमनवेल्थ और कॉमनवेल्थ गेम्स रिकॉर्ड है. आइये आज आपको बताते हैं मीराबाई की लगन और संघर्ष की कहानी और कैसे एक किताब ने उनका पूरा जीवन बदल दिया था.
मीराबाई चानू ने अपने जीवन का अधिकांश भाग गरीबी और अभाव में ही बिताया. वह घर के लिए जंगलों में लकड़ियां चुना करती थीं. महज 12 साल की उम्र से ही चानू ने भार उठाना शुरू कर दिया. जब वह कक्षा आठवीं में थी तब उन्होंने अपना भविष्य भारोत्तोलन में बनाने की ठानी. आज उनका यही हुनर उन्हें विश्व स्तर पर पहचान दिला रहा है. आज उन्होंने एक बार फिर वेटलिफ्टिंग में गोल्ड लाकर देश का नाम रोशन किया है. आज उन्होंने बर्मिंघम में अपना खिताब बचा लिया है लेकिन उन्हें यहाँ तक पहुँचने के लिए कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. जलावन के लिए भारी वजन उठाने से लेकर आज देश के लिए गोल्ड मेडल उठाना और सम्मान लेकर आना उनके जीवन के संघर्षों को दिखाता है.
कक्षा आठवीं में मीराबाई ने वेटलिफ्टर कुंजारानी देवी के बारे में एक किताब पढ़ी थी. इस किताब से ही उनके दिमाग में वेटलिफ्टिंग को लेकर प्रेरणा जगी. बचपन में मीराबाई चानू जब जंगल में लकड़ियां बीनने जाती थीं तो वह अपने भाई बहनों से अधिक वजनी लकड़ियां आसानी से उठा लेती थीं ऐसे में उनके लिए ये कोई मुश्किल बात नहीं थी. जंगल से जलावन के लिए लकड़ियां उठाने वाली मीरा ने अपने अभ्यास से आखिर में देश को चोटी तक पहुंचा दिया.
बता दें, भारत को आज वेटलिफ्टिंग में यह तीसरा पदक मिला है. इससे पहले 55 किलोग्राम भारवर्ग में संकेज महादेव ने देश के नाम सिल्वर मेडल किया था. वहीं 61 किलो की कैटेगरी में गुरुराजा पुजारी ने भी भारत को ब्रॉन्ज मेडल से सम्मानित किया था. मीराबाई चानू की बात करें तो उन्होंने इससे पहले 2014 के कॉमनवेल्थ गेम्स में भी वेटलिफ्टिंग क्षेत्र में सिल्वर मेडल जीता था. इसके अलावा भी गोल्ड कोस्ट में कॉमनवेल्थ गेम्स 2018 में मीराबाई गोल्ड मेडल अपने नाम किया था. 27 साल की मीराबाई ने पिछले साल हुए तोक्यो ओलिंपिक में भी देश का नाम रोशन किया था. उन्होंने भारत के लिए सिल्वर मेडल जीता था.
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