हैदराबाद/नई दिल्ली। भारत ने आज अपना तीसरा मून मिशन ‘चंद्रयान-3’ लॉन्च कर दिया. आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से दोपहर 2 बजकर 35 मिनट पर चंद्रयान-3 को लॉन्च किया गया. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन का ये बेहद खास मिशन 615 करोड़ की लागत में तैयार हुआ है. लॉन्च होने के बाद करीब 42 दिन बाद यह चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा. बता दें कि अगर चंद्रयान-3 का विक्रम लैंडर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सुरक्षित सॉफ्ट लैंडिंग कर लेता है तो भारत ऐसा करने वाला दुनिया का पहला देश बन जाएगा.
इसके साथ ही चंद्रयान-3 के चांद की सतह पर उतरते ही भारत दुनिया के चार देशों में शामिल हो जाएगा. इससे पहले अब तक अमेरिका, रूस और चीन ही चांद की सतह पर अपना लैंडर उतार चुके हैं. इससे पहले सितंबर 2019 में भी इसरो ने चंद्रयान-2 के जरिए चांद के दक्षिणी धुर्व पर उतरने की कोशिश की थी, लेकिन उस वक्त लैंडर की हार्ड लैंडिंग होने से मिशन पूरा नहीं हो सका था. इसरो ने अपनी पिछली गलतियों से काफी सबक लिया है. इस बार कई सारे बदलाव के बाद चंद्रयान-3 को लॉन्च किया गया.
चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव भारते के साथ ही अमेरिका और चीन की नजरे हैं. कुछ साल पहले ही चीन ने दक्षिणी ध्रुव से कुछ ही दूरी पर अपने लैंडर की लैंडिंग कराई थी. वहीं, अमेरिका भी 2024 में दक्षिणी ध्रुव पर अंतरिक्ष यात्रियों को भेजने की तैयारी में जुटा है. ऐसे में इसरो के चंद्रयान-3 मिशन पर पूरी दुनिया की नजरें हैं. अनुमान जताया जा रहा है कि 23 या 24 अगस्त को चंद्रयान-3 चांद की सतह पर लैंड कर लेगा.
बता दें कि चंद्रयान-3 में ऑर्बिटर नहीं है, बल्कि एक प्रोपल्शन मॉड्यूल है. जो किसी संचार उपग्रह की तरह काम करेगा. ISRO ने चंद्रयान-3 के शुरुआती बजट के लिए 600 करोड़ रुपए का अनुमान लगाया था, लेकिन यह मिशन मात्र 615 करोड़ रुपए में पूरा हो जाएगा. चंद्रयान-3 का बजट रूस, चीन,अमेरिका के मून मिशन से बेहद कम है. अगर गणना की जाए तो मून मिशन पर प्रति किलोमीटर का खर्च मात्र 16000 रुपये हैं. पृथ्वी से चांद की दूरी 3 लाख 84 हजार 403 किमी है. बताया जा रहा है कि चंद्रयान 3 का कुल बजट 615 करोड़ रुपये है. इससे समझा जा सकता है कि इस मिशन की लागत प्रति किलोमीटर 6000 रुपये हैं. ये रकम रूस, चीन और अमेरिका के लैंडर मिशन से बेहद कम है.
चंद्रयान 1 भारत का पहला चंद्र मिशन रहा. इस प्रोजेक्ट पर इसरो के वैज्ञानिकों की काफी बड़ी टीम खोज कर रही थी. इस प्रोजेक्ट को 22 अक्टूबर 2008 को लांच किया गया था. चंद्रयान-1 के पीछे की प्लानिंग और आईडिया में माधवन नायर ‘इसरो’ के पूर्व प्रमुख ने मुख्य भूमिका निभाई थी. इस मानव रहित यान को चन्द्रमा तक पहुंचाने के लिए 5 दिनों का समय लग गया था. वहीं इसे चन्द्रमा पर स्थापित करने में पूरे 15 दिनों का वक़्त लगा था. जहां तक इसके नाकाम होने का कारण देखा जाए तो करीब 1 साल बाद खराब थर्मल परीक्षण और ऑर्बिटर को स्टार ट्रैकर की विफलता के साथ-साथ कई तकनीकी खराबी का सामना करना पड़ा. यही कारण है कि चंद्रयान 1 निष्फल हो गया. लेकिन वहीं चंद्रयान मिशन से भारत ने एक बहुत बड़ी खोज और सफलता भी पाई, जोकि चन्द्रमा पर पानी होना है.
22 जुलाई 2019, भारत के लिए सबसे बड़ी सफलता और ऐतिहासिक दिन रहा था. रितु करिधल एक वैज्ञानिक जो इसरो के बड़े अंतरिक्ष मिशन चंद्रयान-2 की प्रभारी थीं. अगर सब कुछ योजना के मुताबिक होता तो चंद्रयान-2 चंद्रमा के सबसे दक्षिणी हिस्से पर उतारा जाता. लेकिन कुछ गलतियों की वजह से अपने रास्ते से भटक जाने पर चंद्रयान अपने निर्धारित लक्ष्य से करीब 2.1 किलोमीटर दूर उतरा. अंतरिक्ष यान को नियंत्रित करने के प्रभारी लोगों का भी इससे संपर्क टूट गया. इसी कारण को अपनी प्रेरणा बनाते हुए चंद्रयान 3 की तैयारी शुरू कर दी गयी.
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