नई दिल्ली: समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के विरोध में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दिया है. इस हलफनामे में केंद्र सरकार की ओर से भारत में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने पर विरोध जताया गया है. जिसमें कहा गया है कि समलैंगिक संबंध और विषमलैंगिक संबंध स्पष्ट रूप से अलग-अलग वर्ग हैं. साथ ही इस वर्ग को मान्यता देने को भारतीय पारिवारिक सिस्टम के खिलाफ बताया गया है.
केंद्र सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में कहा गया कि समान-लिंग वाले व्यक्तियों की ओर से भागीदारों के रूप में एक साथ रहने को डिक्रिमिनलाइज़ किया गया है. लेकिन पति-पत्नी और बच्चों के भारतीय परिवार की अवधारणा के साथ इस बात की तुलना नहीं की जा सकती है. बता दें, कल यानी सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह को कानूनी वैधता देने का अनुरोध करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई होनी है. प्रधान न्यायाधीश धनंजय वाई. चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला की पीठ के समक्ष समलैंगिक विवाह को वैधता दिये जाने संबंधी याचिकाएं रखी जाएंगी.
दरअसल समलैंगिक विवाह से जुड़ी उन याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट ने एक साथ सम्बद्ध करते हुए अपने पास स्थानांतरित कर लिया था जो दिल्ली हाई कोर्ट सहित देश के सभी हाईकोर्ट में लंबित पड़ी थीं. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में केन्द्र की ओर से पेश वकील और याचिकाकर्ताओं की अधिवक्ता अरुंधति काटजू को साथ मिलकर सभी लिखित सूचनाओं, दस्तावेजों और पुराने उदाहरणों को एकत्र करने का आदेश दिया था. इन्हीं दस्तावेजों के आधार पर सुनवाई आगे बढ़ाई जाएगी.
छह जनवरी के अपने आदेश में पीठ ने शिकायतों की सॉफ्ट कॉपी (डिजिटल कॉपी) को पक्षकारों के बीच साझा करने और उसे अदालत को भी उपलब्ध करवाए जाने की बात कही थी. इसके अलावा पीठ ने कहा था कि सभी याचिकाओं को एक साथ सूचीबद्ध किया जाए और इस मामले में अगली तारीख 13 मार्च 2023 तय की गई थी.
गौरतलब है कि इस मामले में विभिन्न याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ताओं ने पीठ से इस मामले में आधिकारिक फैसले के लिए सभी मामलों को अपने पास स्थानंतरित करने का अनुरोध किया था. साथ ही केन्द्र को भी अपना जवाब सुप्रीम कोर्ट में देने की बात कही गई थी. बता दें, साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने आपसी सहमति से किए गए समलैंगिक यौन संबंध को अपराध की श्रेणी से बाहर करने का फैसला सुनाया था. पिछले साल सितंबर में यह फैसला सुनाने वाली सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ भी शामिल थे. नवंबर में केन्द्र को इस संबंध में नोटिस जारी किया गया था और याचिकाओं के संबंध में महाधिवक्ता आर. वेंकटरमणी की मदद मांगी थी.
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