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‘के बनी गोपालगंज के लाल’, क्या भाजपा बचा पाएगी अपनी साख ! जानें इतिहास

गोपालगंज. बिहार की दो सीटों पर इस समय उपचुनाव हो रहे हैं, कल यानी 3 नवंबर को मोकामा और गोपालगंज सीट पर चुनाव होना है, जिसके नतीजे सात नवंबर को आएँगे. भारतीय जनता पार्टी का पिछले चार विधानसभा चुनावों से गोपालगंज विधानसभा सीट पर कब्जा रहा है, ऐसे में भाजपा के लिए यह साख की लड़ाई बन चुकी है, विधायक सुभाष सिंह के निधन की वजह से ये सीट खाली हो गई जिसके बाद यहाँ उपचुनाव करवाया जा रहा है, भाजपा की ओर से इस चुनाव में सुभाष सिंह की पत्नी कुसुम देवी पर दांव लगाया गया है, वहां महागठबंधन की तरफ से लगभग दो दशक बाद वैश्य वर्ग के उम्मीदवार को उतारा गया है. जबकि बसपा ने इसे त्रिकोणीय मुकाबला बनाते हुए यहाँ से लालू यादव की सरहज इंदिरा देवी को प्रत्याशी बनाया है.

गोपालगंज सीट का इतिहास

अब अगर गोपालगंज सीट के पिछले छह विधानसभा चुनाव के परिणामों की ओर नज़र डालें तो साल 2020 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी सुभाष सिंह ने 77 हज़ार 791 वोट हासिल कर यहाँ भाजपा का परचम लहराया था, जबकि बसपा प्रत्याशी अनिरुद्ध प्रसाद (साधु यादव) 41 हज़ार 39 वोटों से दूसरे नंबर पर रहे थे वहीं अगर तीसरे नंबर की बात करें तो इसपर कांग्रेस प्रत्याशी आसिफ गफूर 36 हज़ार 460 वोटों के साथ थे. इसी तरह अब अगर 2015 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो तब भी भाजपा प्रत्याशी सुभाष सिंह ने 78 हज़ार 491 वोटो हासिल कर भाजपा की जीत सुनिश्चित की थी. वहीं राजद प्रत्याशी रेयाजुल हक (राजू) 73 हज़ार 417 वोटों से दूसरे नंबर पर थे, उस समय आरजेडी और भाजपा प्रत्याशी में वोट का बहुत कम फासला था. इसी कड़ी में तब बसपा प्रत्याशी जय हिंद प्रसाद 3 हज़ार 665 वोटों से तीसरे नंबर पर थे, इसी तरह साल 2010 के विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी सुभाष सिंह ने 58 हज़ार 10 वोटों के साथ जीत हासिल की थी, और तब कांग्रेस प्रत्याशी अनिरुद्ध प्रसाद (साधु यादव) 8 हज़ार 488 वोटों से दूसरे नंबर पर रहे थे.

2005 का वो चुनाव जिसने बदल दी राजनीति की धारा

साल 2005 को बिहार की राजनीति का आधार वर्ष बोला जाता है ऐसा इसलिए क्योंकि ये वही साल है जब बिहार की राजनीति एक धारा से दूसरी धारा की ओर चल पड़ी थी, तब बिहार की राजनीति में लालू-राबड़ी युग के बाद नीतीश कुमार का पदार्पण हुआ था, और तब से ही नीतीश कुमार यहाँ अपने पैर जमाए हुए हैं. इस साल दो चुनाव हुए थे, पहला चुनाव तो फरवरी में हुआ था और दूसरा चुनाव हुआ था अक्टूबर में. अब फरवरी 2005 चुनाव के नतीजों के गहरे निहितार्थ थे, क्योंकि ये नतीजे इस बात की ओर साफ़ इशारा कर रहे थे कि बिहार की फ़िज़ा में बागी रुख मिल गया है, उस समय लालू का वोट छिटकने लगा था, MY समीकरण का तिलिस्म भी टूट रहा था और इस चुनाव में जो एक्स फैक्टर बनकर उभरे वो थे रामविलास पासवान. फरवरी का ये चुनाव इस तरह ख़ास हुआ क्योंकि तब राष्ट्रीय जनता दल 75 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी तो थी लेकिन तब एक बहुत बड़ा हिस्सा नीतीश कुमार के साथ था. नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड इस चुनाव में 138 सीटों पर चुनाव लड़ी और 55 सीटें जीतीं, लेकिन इस चुनाव के हीरो न तो लालू थे और न ही नीतीश इस चुनाव के हीरो थे रामविलास पासवान.

इस चुनाव में पासवान 29 सीट लेकर ऐसे घट के रूप में उभरे जिनके पास सत्ता की चाभी थी इसीलिए लालू पासवान को मनाते रह गए, लेकिन वे पासवान की मुस्लिम मुख्यमंत्री की ज़िद को पूरा न कर सके, इसके बाद फिर नीतीश के सामने मात्र 7 महीने बाद चुनाव फिर आ गया. फरवरी 2005 में खंडित जनादेश का हश्र देख चुके बिहार में अक्टूबर 2005 में एक बार फिर चुनावी रणभेरी बजी और इस बार नीतीश कुमार को बढ़त मिली, यहाँ तक कि अकेले दम पर चुनाव लड़ने वाले पासवान को भी मुंह की खानी पड़ी, क्योंकि पासवान की पार्टी इस चुनाव में अकेले दम पर (कुछ जगहों पर सीपीआई के साथ समझौता) सबसे ज्यादा 203 सीटों पर चुनाव लड़ी लेकिन मात्र 10 सीटें ही जीत पाई, उनका मुस्लिम दांव पूरी तरह विफल हुआ, वहीं लालू को तो नुकसान हुआ ही. इसी कड़ी में गोपालगंज सीट भी उनके हाथ से चली गई.

गोपालगंज ने देखा बदलाव

साल 2005 अक्टूबर में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी सुभाष सिंह ने 39 हज़ार 205 वोटों से जीत हासिल की थी, जबकि उस समय बसपा प्रत्याशी रेयाजुल हक (राजू) 31 हज़ार 271 वोटों के साथ दूसरे नंबर पर थे वहीं राजद प्रत्याशी ध्रुवनाथ चौधरी 21 हज़ार 894 वोटों से तीसरे नंबर पर रहे थे, और तब से ही इस सीट पर भाजपा प्रत्याशी सुभाष सिंह का राज रहा है.

इस बार किसका पलड़ा भारी

भारतीय जनता पार्टी का पिछले चार विधानसभा चुनावों से गोपालगंज विधानसभा सीट पर कब्जा रहा है, ऐसे में भाजपा के लिए यह साख की लड़ाई बन चुकी है, विधायक सुभाष सिंह के निधन की वजह से ये सीट खाली हो गई जिसके बाद यहाँ उपचुनाव करवाया जा रहा है, भाजपा की ओर से इस चुनाव में सुभाष सिंह की पत्नी कुसुम देवी पर दांव लगाया गया है, वहां महागठबंधन की तरफ से लगभग दो दशक बाद वैश्य वर्ग के उम्मीदवार को उतारा गया है. जबकि बसपा ने इसे त्रिकोणीय मुकाबला बनाते हुए यहाँ से लालू यादव की सरहज इंदिरा देवी को प्रत्याशी बनाया है.

 

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