नई दिल्ली. बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद जिस तरह से शेख हसीना को पीएम की कुर्सी के साथ साथ देश छोड़ने को मजबूर किया गया उसके बाद सबसे बड़ा सवाल यही है कि इसके पीछे किसका हाथ. जो छात्र आरक्षण के विरोध में प्रदर्शन कर रहे थे वो शेख हसीना के इस्तीफे पर क्यों अड़े. क्या शेख हसीना को हटाने के पीछे अमेरिका और पाकिस्तान जैसे देशों का हाथ है?
बात मई की है जब शेख हसीना ने कहा था कि यदि वह ह्वाइट मैन की बात मान लेती हैं तो उन्हें कोई दिक्कत नहीं होगी. वो हमारे यहां एक एयरबेस बनाना चाहते हैं. तब उनसे पूछा गया था कि ह्वाइट मैन कौन हैं तब उन्होंने अमेरिका का नाम तो नहीं लिया लेकिन इशारों ही इशारों में सब कुछ बता दिया. साथ में यह भी इंगित कर दिया कि वो ऐसा हरगिज नहीं करेंगी और तभी से उनके खराब दिन शुरू हो गये थे.
सूत्रों के मुताबिक बंगाल की खाड़ी में तीन वर्ग किमी का एक समुद्री टापू है जो कि आधिकारिक तौर पर बांग्लादेश का है. इसका नाम सेंट मार्टिन आइलैंड है और इस पर अमेरिका की नजर सालों से है. वो यहां पर एक सैन्य बेस का निर्माण कर तिमोर की तरह बांग्लादेश के चटगांव, म्यांमार के कुछ भाग और टापू पर एयर बेस बनाकर ईसाई देश बनाना चाहता है. शेख हसीना इसके लिए तैयार नहीं हुई और जनवरी 2024 में चुनाव जीतकर पांचवीं बार पीएम बनीं शेख हसीना के बुरे दिन और बुरे होते चले गये.
एक खबर यह है कि तीन पाकिस्तानी राजनयिकों ने इस तख्तापलट में अहम भूमिका निभाई. इनमें से एक ने अपना प्रोफाइल भी बदल लिया है, इन तीनों पाकिस्तानी राजनयिकों के बारे में विस्तृत जानकारी जुटाई जा रही है. आईएसआई का ढाका में मौजूद एक ब्रिगेडियर आंदोलन के लिए फंडिंग कर रहा था और प्रतिबंधित कट्टरपंथी संगठन जमात-ए-इस्लामी इसको पीछे से ऑक्सीजन दे रहा था. जमात-ए-इस्लामी पाकिस्तान में बैठे कट्टरपंथी लोगों का संगठन है और वो उसे हवा दे रहे थे.
बताया जा रहा है कि तख्तापलट से कुछ दिन पहले भारतीय राजनयिक से ढाका में शेख हसीना ने मुलाकात की थी और बातचीत में अपनी आशंकाओं से अवगत कराया था. हालांकि अभी ये कहना मुश्किल है कि अमेरिका की सीआईए पाकिस्तान की आईएसआई के साथ मिलकर काम कर रही थी या अपने हिसाब से सब कुछ देख रही थी.
बांग्लादेश में भारत के उच्चायुक्त रहे हर्षवर्धन श्रृंगला का भी मानना है कि शेख़ हसीना की तख़्तापलट के पीछे जमात-ए-इस्लामी व बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के अलावा, विदेशी ताक़तों का भी हाथ हो सकता है। इतिहास गवाह है कि ऐसी कार्रवाइयां अकेले किसी पार्टी और संगठन के दम पर नहीं होती, पर्दे के पीछे से बड़े खिलाड़ी खेल रहे होते हैं और बांग्लादेश के मामले में भी यही हुआ है.
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