अफगानिस्तान की तालिबानी हुकूमत पाकिस्तान के डीप स्टेट से परेशान और भारत से राजनयिक रिश्ते कायम करने को बेताब है. अफगानी तालिबान ने नई दिल्ली में उस नजीब शाहीन को राजदूत बनाना चाहता है जो मुहम्मद सुहैल शाहीन के बेटे हैं. सुहेल शाहीन वही शख्स हैं जो कतर में तालिबान के प्रवक्ता हैं और उन्होंने ही अमेरिका के अफगानिस्तान से निकलने के लिए डील की थी.
नई दिल्ली. कोरोना काल में जब अफगानिस्तान संगीनों के साये में अमेरिकी बंधन से आजाद हो रहा था तब कोहराम मच गया था. तालिबानियों ने अपने हाथ में हुकूमत ली और महिलाओं पर अत्याचार किया. कई देशों ने अपने दूतावास बंद कर दिये. आतंकवादी और कट्टरपंथी तालिबानियों पर कोई यकीन करने को तैयार नहीं था लेकिन धीरे धीरे तालिबानियों को यह बात समझ में आ गई कि दुनिया से अलग-थलग नहीं रह सकते. पाकिस्तान अपने हिसाब से अफगानिस्तान का शोषण करता है लिहाज अब अफगानिस्तान उसके चंगुल से निकलने के लिए छटपटा रहा है और इसी क्रम में उसने भारत से मदद मांगी है और कह रहा है कि यदि ऐसा हो गया तो पाकिस्तान को औकात बता देंगे.
द संडे गार्डियन की रिपोर्ट के मुताबिक अफगानिस्तान हरहाल में भारत से संबंध सुधारने को आतुर है और उधर से पहल हो रही है कि भारत से राजनयिक रिश्ते बहाल हो. भारत जिस तरह से पहले अफगानिस्तान में इंफ्रास्ट्र्क्चर मजबूत करने व अस्पताल, पुल, सड़क जैसी सुविधाएं मुहैया कराने के लिए काम कर रहा था वह करे. तालिबानी हुकूमत पाकिस्तान के हस्तक्षेप से परेशान है लिहाजा वह भारत से रिश्ते सुधारने के लिए तैयार है. इसी कड़ी में अफगान तालिबान ने नई दिल्ली में उस नजीब शाहीन को राजदूत बनाना चाहता है जो मुहम्मद सुहैल शाहीन के बेटे हैं. सुहेल शाहीन वही शख्स हैं जो कतर में तालिबान के प्रवक्ता हैं. दोहा के तालिबानी ऑफिस ने ही अमेरिका के अफगानिस्तान से निकलने के लिए डील की थी.
चूंकि अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में गिव एंड टेक चलता है इसलिए अफगानिस्तान की तरफ से यह भी संदेश आया है कि यदि भारत अफगानिस्तान के साथ राजनयिक रिश्ते मजबूत करता है तो बदले में वह अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत का समर्थन करेगा. एक अफगान अधिकारी के मुताबिक अफगानिस्तान अपने यहां पाकिस्तान की भूमिका को खत्म करना चाहता है. अभी वह जरूरी चीजों के लिए उस पर निर्भर करता है और पाकिस्तान का डीप स्टेट उसके यहां बुरी तरह संलिप्त है . डीप स्टेट पाकिस्तान की सेना, पुलिस, न्यापालिका, खुफिया, मीडिया और अभिजात्य वर्ग का ऐसा अनौपचारिक समूह है जो काफी प्रभावी है. यह समूह नहीं चाहता कि तालिबान के भारत से अच्छे संबंध बने इसलिए विदेशी मामलो में भी निर्देशित करता है.
यह बात किसी से नहीं छिपी है कि पाकिस्तान की इस नीति से तालिबान नाराज है और वह इससे मुक्ति चाहता है. दोनों देश की सेनाओं में लड़ाई भी हो चुकी है जिसकी वजह से आपस में तनाव बढ़ा है. तालिबानी शासन से पहले भी भारत वहां पर विकास कार्यों में लगा था और एक बार फिर तालिबान भारत की भूमिका अपने देश में बढ़ाना चाहता है. इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में वह बुरी तरह पिछड़ा हुआ है.
अफगानिस्तान में 1000 लोगों पर पर केवल 0.33 डॉक्टर्स है जबकि अन्तर्राष्ट्रीय मानक 2.5 का है. वहां पर केवल 134 अस्पताल हैं लिहाजा अफगानिस्तान स्वास्थ्य क्षेत्र में भारत की मदद चाहता है. भारत तालिबान से रिश्ते बढ़ाने को लेकर जल्दीबाजी में नहीं है और ठोक बजाकर परखने के बाद ही आगे बढ़ना चाहता है. तालिबान यह कहकर भारत को आश्वस्त करना चाह रहा है कि 2021 के बाद अफगानिस्तान ने पाकिस्तानी आतंकी संगठन लश्कर की भूमिका को काफी हद तक कम कर दिया है.
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