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Vladimir Putin: व्लादिमीर पुतिन का 70वां जन्मदिन आज, जानिए KGB जासूस कैसे बना रूस का सबसे सफल राजनेता

Vladimir Putin Birthday:

नई दिल्ली। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का आज 70वां जन्मदिन है। उनका जन्म 7 अक्टूबर 1952 को सोवियत संघ के शहर लेनिनग्राद में हुआ था। रूसी राष्ट्रपति का पूरा नाम व्लादिमीर व्लादिमीरोविच पुतिन है। माचो मैन की छवि वाले पुतिन साल 2012 से लगातार रूस के राष्ट्रपति हैं।

आइए जानते हैं टाइम मैग्जीन द्वारा चार बार दुनिया के सबसे शक्तिशाली व्यक्ति घोषित किए जाने वाले रूस के सर्वशक्तिमान राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की कहानी…

हिटलर की सेना ने छोड़ी गहरी छाप

व्लादिमीर पुतिन का जन्म लेनिनग्राद नाम के जिस शहर में हुआ था, उसपर द्वितीय विश्व युद्ध के समय हिटलर की सेना ने 800 से अधिक दिनों तक घेरेबंदी की थी। दूसरे विश्व युद्ध के खत्म होने के 7 साल बाद जन्मे पुतिन के व्यक्तित्व पर इस घटना ने गहरी छाप छोड़ी थी। उनके स्कूल के दोस्त बताते हैं कि वो स्कूल टाइम से ही बहुत गुस्सैल स्वाभाव के हुआ करते थे। पुतिन किसी से भी बिना डरे लड़ जाते थे। उनके गली में कई खूंखार गैंग्स थी, लेकिन उन्हें किसी से खौफ नहीं रहता था।

(बचपन में व्लादिमीर पुतिन)

बचपन में ही पैदा हुई ताकत की भूख

पुतिन का बचपन लेनिनग्राद शहर के गैंग कल्चर में बीता। यहीं पर उनके अंदर बेशुमार ताकत हासिल करने की भूख पैदा हुई। पुतिन का झुकाव रूसी सेना के मार्शल आर्ट सेम्बो की ओर हुआ। जहां पर उन्होंने मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग ली। इसके बाद उन्होंने जूडो कराटे सीखा और मात्र 18 साल की उम्र में उन्हें ब्लैक बेल्ट मिल गई। वो नेशनल जूनियर चैंपियनशिप में तीसरे नंबर पर आए। पुतिन के जीवन के इसी दौर को लेकर उन्हें माचो मैन का तमगा मिला।

(जूडो ट्रेनिंग करते हुए व्लादिमीर पुतिन)

16 साल में मांगी KGB की नौकरी

पुतिन के जिंदगी की ज्यादातर जानकारियां तो सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन कुछ ऐसी कहानियां जरूर हैं जिसपर लोग विश्वास करते हैं। बताया जाता है कि लेनिनग्राद शहर में लिटेनी प्रोस्पेक्ट नाम की एक ऐसी सड़क थी, जहां पर सोवियत संघ की खुफिया एजेंसी केजीबी का हेडक्वार्टर था। इस सड़क पर जाने से आम लोग बचते थे। कहा जाता है कि पुतिन जब 16 साल के थे तो वो इसी इमारत में घुस गए और रेड कार्पेट बिछे रिसेप्शन पर बैठे अधिकारी से पूछा था कि केजेबी एजेंट कैसे बने।

(व्लादिमीर पुतिन)

कानून की डिग्री लेकर बने KGB एजेंट

अधिकारी ने पुतिन को पहले कानून की डिग्री लेने की सलाह दी थी। जिसके बाद उन्होंने सीधे लेनिनग्राद की स्टेट यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया और कानून की डिग्री हासिल की। इसके बाद साल 1975 में पुतिन केजीबी के एजेंट बन गए। खुफिया एजेंसी में भर्ती होने के बाद पुतिन को सुरक्षा और ताकत के रूप में वो दो चीजे मिली जिसकी उन्हें जरूरत थी। इसके बाद शुरू हुआ व्लादिमीर पुतिन के रूसी राष्ट्रपति बनने का सफर।

(केजीबी एजेंट के रूप में व्लादिमीर पुतिन)

पूर्वी जर्मनी के दफ्तर में मिली तैनाती

केजीबी में शामिल होने के बाद पुतिन ने सबसे पहले जर्मन भाषा सीखी। इसके बाद साल 1985 में पूर्वी जर्मनी के शहर ड्रेस्डेन में स्थित केजीबी दफ्तर में उनकी तैनाती हुई। पुतिन ने इसी दफ्तर से सोवियत संघ को विघटित होते हुए देखा। इसी बीच उनके साथ एक प्रसिद्ध घटना हुई। साल 1989 में पूर्वी जर्मनी की सरकार गिरने को आई गई। उसी दौरान 5 दिसंबर को सोवियत विरोधी भीड़ ने केजीबी की इमारत को चारो तरफ से घेर लिया।

(मिखाइल गोर्बाचेव के साथ पुतिन)

पुतिन ने मदद के लिए नजदीकी सोवियत सेना के ठिकाने पर कई बार फोन मिलाया, लेकिन कोई मदद नहीं मिली। बाद में रेड आर्मी की ओर से उन्हें जवाब मिला कि मॉस्को के आदेश के बिना हम कुछ नहीं कर सकते। मॉस्को अभी खामोश है। इस घटना ने भी पुतिन की शख्सियत पर गहरी छाप छोड़ी। वो इस घटना के लिए तत्कालीन सोवियत नेता मिखाइल गोर्वाचेव को जिम्मेदार मानते हैं। इसके बाद पुतिन ने ये ठान लिया कि वो कभी भी ऐसी गलती नहीं करेंगे और दुश्मनों का मजबूती से सामना करेंगे।

प्रोफेसर से सीखे राजनीति के गुर

सोवियत संघ के विघटन के बाद पुतिन ने केजीबी को अलविदा कह दिया। वो साल 1991 में अपने शहर लेनिनग्राद पहुंचे, जिसका नाम अब सेंट पीटर्सबर्ग हो गया था। यहां पर पुतिन एक यूनिवर्सिटी में वाइस रेक्टर के डिप्टी के रूप में जुड़ गे। इसके बाद वो प्रोफेसर एनाटोली सोबचाक के असिस्टेंट बन गए। सोबचाक ने कुछ समय बाद यूनिवर्सिटी छोड़कर लेनिनग्राद सिटी काउंसिल का चुनाव लड़ा और चेयरमैन बन गए। पुतिन ने उनके चुनावी अभियान का सारा जिम्मा संभाला और जीत दिलाई। उन्होंने इसी दौरान राजनीति के गुर भी सीखे।

(पुतिन और एनाटोली सोबचाक)

क्रेमलिन में जमाया अपना सिक्का

पुतिन जून 1991 में सेंट पीटर्सबर्ग के डिप्टी मेयर चुने गए। इसके बाद जब साल 1996 में प्रोफेसर सोबचाक मेयर का चुनाव हार गए तो पुतिन ने मॉस्को चले गए। वहां पर वो क्रेमलिन में राष्ट्रपति की संपत्तियों का देखभाल करने वाले विभाग में महत्वपूर्ण जिमेमदारी संभालने लगे। बाद में उन्होंने क्रेमलिन में अलग-अलग जिम्मेदारियां संभालीं। फिर जुली 1998 में केजीबी की जगह लेने वाली खुफिया एजेंसी फेडरल सिक्योरिटी सर्विस के प्रमुख बन गए। इस दौरान उनकी गिनती रूस के सबसे ताकतवर लोगों में होने लगी। वो राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन के काफी करीबी बन गए।

(पुतिन और बोरिस येल्तसिन)

तेजी से चढ़ी राजनीति की सीढ़ियां

क्रेमलिन में पांव जमाने के बाद पुतिन ने बहुत जल्दी राजनीति की सीढ़ियां चढ़ी और शिखर पहुंचने लगे। साल 1998 में राष्ट्रपति बोरिस ने उन्हें उप प्रधानमंत्री की जिम्मेदारी सौंपी। इसी साल वो रूस के प्रधानमंत्री भी बन गए। क्रेमलिन में उन्हें राष्ट्रपति येल्तसिन का स्वाभाविक उत्तराधिकारी माना जाने लगा। इसके बाद जब 31 दिसंबर 1999 में येल्तसिन ने इस्तीफा दिया पुतिन कार्यवाहक राष्ट्रपति बन गए। मार्च 2000 में उनके हाथ में देश की सबसे सर्वोच्च सत्ता आ गई। व्लादिमीर पुतिन को रूस का राष्ट्रपति चुना लिया गया। तब से लेकर अभी तक पुतिन रूस की सत्ता का केंद्र बने हुए हैं।

(साल 2000 में व्लादिमीर पुतिन)

दो दशक से बने हैं सत्ता के केंद्र

कभी राष्ट्रति तो कभी प्रधानमंत्री पिछले दो दशकों से रूस के शासन-सत्ता की बागडोर उनके हाथ में ही है। पुतिन 2000 से 2008 तक लगातार दो बार रूस के राष्ट्रपति बने। क्योंकि रूसी संविधान के मुताबिक कोई भी व्यक्ति लगातार तीन बार राष्ट्रपति नहीं बन सकता है। इसीलिए उन्हें अपना पद छोड़ना पड़ा। पुतिन ने अपने करीबी दिमित्री मेदवेदेव का राष्ट्रपति की कुर्सी पर बिठाकर खुद प्रधानमंत्री बन गए। इसी बीच रूस के संविधान में बड़ा बदलाव हुआ और कार्यकाल का 4 साल से बढ़ाकर 6 साल के लिए कर दिया गया। साल 2008 से 2012 तक प्रधानमंत्री पद पर रहने के बाद फिर से पुतिन की राष्ट्रपति पद पर वापसी हुई। साल 2012 में वो फिर से रूस के राष्ट्रपति चुने गए, तबसे वो इस पद कायम है।

(राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन)

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Vaibhav Mishra

असिस्टेंट प्रोड्यूसर- इनखबर | राजनीति और विदेश के मामलों पर लिखने/बोलने का काम | IIMT कॉलेज- नोएडा से पत्रकारिता की पढ़ाई | जन्मभूमि- अयोध्या, कर्मभूमि- दिल्ली

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Vaibhav Mishra

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