नई दिल्ली: मणिपुर हिंसा के मुद्दे पर कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने संसद में जारी गतिरोध के बीच बुधवार (26 जुलाई) को मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया. इस पर चर्चा के लिए सदन में मंजूरी भी दे दी गई है. नौ साल के कार्यकाल में मोदी सरकार के खिलाफ दूसरी बार अविश्वास […]
नई दिल्ली: मणिपुर हिंसा के मुद्दे पर कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने संसद में जारी गतिरोध के बीच बुधवार (26 जुलाई) को मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया. इस पर चर्चा के लिए सदन में मंजूरी भी दे दी गई है. नौ साल के कार्यकाल में मोदी सरकार के खिलाफ दूसरी बार अविश्वास प्रस्ताव लाया जा रहा है.
न्यूज़ एजेंसी PTI के अनुसार अविश्वास प्रस्ताव लाने की शुरुआत प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के समय ही हो गई थी. 1963 में आचार्य कृपलानी नेहरू के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आए थे जिसमें केवल 62 मत पड़े थे. जबकि विरोध में 347 मत डाले गए थे. इंदिरा गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी समेत कई प्रधानमंत्रियों की सरकार में अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था. अविश्वास प्रस्ताव के कारण तीन प्रधानमंत्रियों ने अपने पद से इस्तीफा भी दिया था. बता दें, यदि अविश्वास प्रस्ताव में मौजूदा सरकार को बहुमत नहीं मिलता है तो प्रधानमंत्री समेत पूरे मंत्रिपरिषद को इस्तीफा देना पड़ता है.
1990 में वीपी सिंह की सरकार अविश्वास प्रस्ताव लाने के कारण सत्ता से गिर गई थी. इसी तरह 1997 में एच डी देवगौड़ा की सरकार भी गिर गई थी. इसके अलावा अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार भी 1999 में अविश्वास प्रस्ताव के बाद गिर गई थी. नवंबर 1990 में वीपी सिंह के खिलाफ भी जब अविश्वास प्रस्ताव लाया गया तो उन्होंने इस्तीफा दे दिया था. भाजपा ने इस दौरान राम मंदिर के मामले पर समर्थन वापस ले लिया था, इस प्रस्ताव पर 346 मत पड़े थे जबकि विरोध में 142 मत आए थे.
एच डी देवगौड़ा की सरकार के खिलाफ साल 1997 में 292 सांसदों ने लाए गए प्रस्ताव में सरकार के खिलाफ वोटिंग की थी. हालांकि 158 सांसदों ने सरकार का समर्थन किया था. साल 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार केवल एक वोट से अविश्वास प्रस्ताव में हार गए थे. एआईएडीएमके के समर्थन वापस लेने से उनकी सरकार गिर गई थी.
अगस्त 1963 में देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के खिलाफ पहला अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था जो आचार्य कृपलानी ने पेश किया था. इस अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के बाद 62 मत पड़े थे जबकि इसके खिलाफ 347 वोट आए थे.
लाल बहादुर शास्त्री के खिलाफ एनसी चटर्जी 2 सितंबर 1964 में अविश्वास प्रस्ताव लाए थे. 18 सितंबर को इस पर वोटिंग हुई लेकिन चटर्जी लाल बहादुर शास्त्री की सरकार नहीं गिरी. मार्च 1965 और अगस्त 1965 को भी अविश्वास प्रस्ताव लाल बहादुर शास्त्री के खिलाफ लाया गया लेकिन वह सरकार गिराने में सफल नहीं रहे.
देश में अब तक इंदिरा गांधी के खिलाफ अब तक सबसे अधिक यानी 15 बार अविश्वास प्रस्ताव लाया गया. जब पहली बार इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं तो वो राज्यसभा से सांसद थीं. अगस्त 1966 में CPI के सांसद हिरेंद्रनाथ मुखर्जी ने उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया जिसपर 270 सांसदों ने वोट दिया जबकि 270 एमपी ने इसके खिलाफ वोटिंग की. इसके अलावा इंदिरा सरकार के खिलाफ इतनी बार अविश्वास प्रस्ताव पेश हुआ-
नवंबर 1966 – भारतीय जन संघ के नेता – असफल
इंदिरा गांधी के खिलाफ नवंबर 1967, फरवरी 1968 और नवंबर 1968 में भी अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था. वहीं फरवरी 1969, जुलाई 1970, नवंबर 1973 और मई 1974 में भी इंदिरा गांधी की सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया.
इसके बाद इंदिरा गांधी के खिलाफ मई 1975 में अविश्वास प्रस्ताव लाया गया. मई 1981, सितंबर 1981 और अगस्त 1982 में ऐसे ही उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया. लेकिन इंदिरा गाँधी की सरकार नहीं हिल पाई. दूसरी ओर 1979 में अविश्वास प्रस्ताव का सामना किए बिना मोरारजी देसाई ने पीएम पद छोड़ दिया था.
राजीव गांधी की सरकार के खिलाफ दिसंबर 1987 में सी माधव रेड्डी अविश्वास प्रस्ताव लेकर आए. जिसमें वह असफल रहे. फिर पी वी नरसिम्हा राव की सरकार के खिलाफ जुलाई 1992 में बीजेपी नेता जसवंत सिंह ने अविश्वास प्रस्ताव पेश किया जिसपर वोटिंग 17 जुलाई 1992 को हुई. अविश्वास प्रसताव के पक्ष में 225 सांसदों और विपक्ष में 271 एमपी ने मतदान किया. दिसंबर के महीने में इसी साल पी वी नरसिम्हा राव के खिलाफ अटल बिहारी वाजपेयी अविश्वास प्रस्ताव लेकर आए थे जिसपर 21 घंटों की बहस हुई.
अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी अविश्वास प्रस्ताव लेकर आई थीं. 189 सांसदों ने अविश्वास प्रस्ताव पर वोट डाला था. 314 ने इस अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान किया था. वहीं मनमोहन सिंह के दस साल के कार्यकाल में एक भी बार अविश्वास प्रस्ताव नहीं आया.