नई दिल्ली: अपनी फितरत के मुताबित बिहार की राजनीति ने देश को आखिरकार एक बार फिर बड़ा उलटफेर दिखा ही दिया. भ्रष्टाचार के मुद्दे पर आरजेडी और जेडीयू में तनातनी तो कई दिन से चल रही थी लेकिन सियासत के इस खेल को नीतीश अपने इस्तीफे के मास्टरस्ट्रोक से इस मोड़ पर ला देंगे और बिहार में सत्ता के समीकरण ही बदल देंगे इसका किसी को अनुमान नहीं था.
बिहार की राजनीति में बड़े उलटफेर के बाद एक बार फिर नीतीश कुमार ने बिहार में छटवी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. महज तीन घंटे के सबसे बड़े सियासी ड्रामें ने सबसे बड़ा उलटफेर किया और बिहार की बदली हुई तस्वीर देश के सामने आ गई. हिन्दुस्तान की राजनीति में किसी सूबे की सरकार ना इतने जल्दी गिरी और ना ही नई सरकार का गठन इतने जल्दी हुआ.
नई सरकार के गठन से ऐसा लगा जैसे इस ड्रामें की पटकथा पहले से ही लिखकर रखी गई थी. बुधवार की शाम 6 बजकर 35 मिनट पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंप देते है. महज 34 मिनट बाद बिहार के इस बड़े घटनाक्रम पर देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का ट्वीट आता है.
जिसमें मोदी लिखते है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में जुड़ने के लिए नीतीश कुमार जी को बहुत-बहुत बधाई. सवा सौ करोड़ नागरिक ईमानदारी का स्वागत और समर्थन कर रहे हैं. देश के, विशेष रूप से बिहार के उज्जवल भविष्य के लिए राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठकर भ्रष्टाचार के खिलाफ एक होकर लड़ना, आज देश और समय की मांग है.
पीएम के ट्वीट के बाद नीतीश ने ट्वीट के जरिए उन्हे धन्यवाद देते हुए लिखा हमने जो निर्णय लिया उस पर माननीय प्रधानमंत्री के ट्वीट के द्वारा दी गई प्रतिक्रिया के लिए उन्हे तहेदिल से धन्यवाद.
संयोग देखिए बिहार में बड़ा सियासी उलटफेर हो रहा था और दिल्ली में बीजेपी की राज्यसभा के उम्मीदवारों को लेकर पहले से तय पार्लियमेंट्री बोर्ड की बैठक चल रही थी. इसी बीच बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह इस घटनाक्रम पर नीतीश से फोन पर बात करते है और उन्हे आश्वस्त करते है कि वो बिहार में नई सरकार के लिए समर्थन देने को तैयार हैं.
और ठीक 9 बजकर 10 मिनट यानि नीतीश के इस्तीफे के 2 घंटे 25 मिनट बाद ही बिहार का नया सियासी भविष्य तय हो जाता है. बिहार बीजेपी के नेता सुशील मोदी नीतीश कुमार को एनडीए के समर्थन का ऐलान कर देते है. बिहार में एनडीए नीतीश को अपना नेता बनाकर 10 बजकर 32 मिनट पर बीजेपी, बिहार के राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी को नीतीश कुमार को नई सरकार के लिए समर्थन करने का पत्र भी सौंप देती है.
महागठबंधन टूटने की जो सबसे पहली और भरोसा करने लायक थ्यौरी आ रही है वो यही है कि नीतीश कुमार को डर था कि बिहार उनके साथ से निकल जाएगा. इस डर की सबसे बड़ी वजह थी लालू की राजद के साथ सत्ता में उनकी यारी.
नीतीश को क्यों था बिहार जाने का डर –
पहला कारण – लालू के परिवार का घोटालों में नाम, नीतीश की स्वच्छ छवि बर्बाद कर रहा था
दूसरा कारण – बीजेपी की बढ़ती शक्ति 2020 विधानसभा चुनाव में नीतीश को सत्ता से बेदखल कर सकती थी
तीसरा कारण – जिस तेज़ी से कांग्रेस बर्बाद हो रही है, उसका साथ लेकर 2020 में राजनीति की नैया डूबती दिख रही थी
ये ऐसा डर था जिसमें नीतीश को अपनी राजनीति और जमीन दोनों खत्म होती नजर आ रही थी और महागठबंधन से अलग होना उनकी मजबूरी बन गई. महागठबंधन टूटने की दूसरी थ्यौरी की पृष्ठभूमि साज़िशों की है. सूत्रों की मानें तो भ्रष्टाचार के मौजूदा भंवर में फंसे अपने परिवार को बचाने के लिए लालू सीधे बीजेपी से ही सेटिंग कर रहे थे.
सूत्र तो यहां तक बताते हैं कि नीतीश को बताया गया कि बीजेपी के दो मंत्रियों के पास लालू का संदेश गया है. लालू ने परिवार को बचाने की एवज में नीतीश सरकार गिराने का भरोसा बीजेपी को दिया. लालू ने कहा कि बीजेपी चाहे तो नीतीश से अपना पुराना हिसाब बराबर कर ले. नीतीश सरकार गिराने के बाद वो बीजेपी को बिना शर्त समर्थन देंगे और बीजेपी का सीएम बनें.
राजनीति में लालू यादव चुनाव लड़ नहीं पाएंगे और उनके सत्ता के शौक को नीतीश भी समझते हैं, पुत्र प्रेम तो है ही. इसलिए नीतीश ने लालू के हाथ मिलाने से पहले ही बीजेपी से हाथ मिलाकर लालू को राजनीतिक तौर पर अलग थलग कर दिया.
बीजेपी के बढ़ते प्रभाव और पीएम मोदी के बढ़ते कद के चलते नीतीश कुमार का पीएम बनने का सपना पूरा होता नहीं दिख रहा था. बिहार की सत्ता भी हाथ से चली जाए इससे बेहतर नीतीश के लिए यही था कि बिहार बचा रहे. कम से कम राज्य के राजा तो बने रहेंगे. इस थ्यौरी में नीतीश के एक साथ कई मोर्चे पर निशाना लगाने की बात पूरी तरह सधती दिखती है.
क्या यही था नीतीश का सबसे सेफ विकल्प ?
राजसत्ता का एक नियम है कि अगर मजबूत से लड़ नहीं सकते तो हाथ मिला लो. नीतीश ने यही किया क्योंकि पिछले विधानसभा चुनावों में उनके और पीएम मोदी के बीच जो बयानबाज़ी चली थी उससे दोनों के पहले से ही बिगड़े रिश्ते और बिगड़ गए थे. नीतीश ने इसको सुधारने की पहल भी खूब की. पीएम मोदी से रिश्ते सुधारने के लिए कई मौकों पर नीतीश ने उनका समर्थन भी किया.
नीतीश की कोशिश थी कि वो बीजेपी से अपने बिगड़े संबंध सुधार लें और पीएम मोदी के साथ हो जाएं और इसमें वो सफल भी रहे. बिहार की राजनीति अब टूट फूट की ज्यादा हो चली है. नीतीश को डर था कि कहीं लालू यादव उनके विधायकों को तोड़कर उन्हें ही अलग थलग ना कर दें और लालू को भी यही डर सता रहा था. लिहाज़ा जिसने पहले हमला कर दिया वो बन गया विजेता.
बिहार में बने सियासत के इस नए गणित ने मोदी के 2019 के सपनों को नई उड़ान दे दी है. कांग्रेस मुक्त भारत की तरफ तेजी से आगे बढती हुई बीजेपी दिखाई दे रही है. साथ ही देश की राजनीति में अब मोदी को चुनौती देने के लिए विपक्ष के पास कोई ऐसा नेता भी नहीं दिखाई दे रहा है जो मोदी के मिशन 2019 को ब्रेक लगा सके.
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