नई दिल्ली : आपने अक्सर देखते हैं कि ट्रेन के पहियों के पास या ट्रैक पर गिट्टी गिरा दी जाती है। ज़्यादातर लोग इस बात से अनजान हैं कि ऐसा क्यों किया जाता है। इसके पीछे एक बहुत ही अहम कारण है और इसका सीधा संबंध यात्रियों की सुरक्षा से है।
गिट्टी का इस्तेमाल ट्रेन के पहियों और ट्रैक के बीच घर्षण बढ़ाने के लिए किया जाता है। घर्षण बढ़ने से ट्रेन की ब्रेक लगाने की क्षमता और स्थिरता बेहतर होती है।
फिसलन की स्थिति: बारिश, गीली पटरियों, बर्फीली सतहों या ढलानों पर अक्सर ट्रेन के पहिए फिसलने लगते हैं। ऐसी स्थिति में रेत डालने से घर्षण बढ़ जाता है, जिससे पहियों को बेहतर पकड़ मिलती है और ट्रेन सुरक्षित तरीके से रुक सकती है या आगे बढ़ सकती है।
अचानक ब्रेक लगाना: जब ट्रेन को अचानक रोकने की ज़रूरत होती है, तो पहियों और ट्रैक के बीच पर्याप्त घर्षण न होने की वजह से ट्रेन फिसल सकती है। रेत के इस्तेमाल से यह समस्या हल हो जाती है।
ढलान पर चढ़ने में मदद: रेत का इस्तेमाल सिर्फ़ ब्रेक लगाने के लिए ही नहीं बल्कि ढलान पर चढ़ने में भी किया जाता है। इससे पहियों को ट्रैक पर बेहतर पकड़ मिलती है, जिससे ट्रेन बिना किसी बाधा के चढ़ पाती है।
सदियों पुरानी तकनीक : यह प्रणाली भारतीय रेलवे में वर्षों से उपयोग में है। इसका उद्देश्य यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करना और ट्रेन को फिसलने से रोकना है। यह सरल तकनीक रेलवे संचालन को न केवल सुरक्षित बनाती है बल्कि कुशल भी बनाती है।
साल 1951 में, देश में कार्यरत 42 विभिन्न रेलवे कंपनियों के एकीकरण से भारतीय रेलवे की स्थापना की गई थी। प्रशासनिक उद्देश्यों के लिए 1951-52 में देश भर में रेलवे नेटवर्क को छह क्षेत्रीय क्षेत्रों में पुनर्गठित किया गया था, जिसे बाद के वर्षों में धीरे-धीरे 18 क्षेत्रों तक विस्तारित किया गया था ।
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