Hidden Charges: App खरीदने के लिए देना होता है हिडन चार्ज, सब्सक्रिप्शन के जाल में फंसे 67 प्रतिशत यूजर्स

नई दिल्ली। साइबर सिक्योरिटी और कंज्यूमर सेफ्टी हमेशा से ही पूरी दुनिया के लिए एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है। ऐसे में सरकारें लगातार इस प्रयास में लगी हुई हैं कि लोगों को सुरक्षित कैसे रखा जाए? एक रिपोर्ट में ये बताया गया है कि 67% कंज्यूमर्स सब्सक्रिप्शन ट्रैप(Hidden Charges) में फंसे हुए हैं। हाल […]

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Hidden Charges: App खरीदने के लिए देना होता है हिडन चार्ज, सब्सक्रिप्शन के जाल में फंसे 67 प्रतिशत यूजर्स

Nidhi Kushwaha

  • February 13, 2024 4:43 pm Asia/KolkataIST, Updated 9 months ago

नई दिल्ली। साइबर सिक्योरिटी और कंज्यूमर सेफ्टी हमेशा से ही पूरी दुनिया के लिए एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है। ऐसे में सरकारें लगातार इस प्रयास में लगी हुई हैं कि लोगों को सुरक्षित कैसे रखा जाए? एक रिपोर्ट में ये बताया गया है कि 67% कंज्यूमर्स सब्सक्रिप्शन ट्रैप(Hidden Charges) में फंसे हुए हैं।

हाल ही में लोकलसर्कल्स ने एक सर्वे किया, जिसमें शामिल करीब 67 प्रतिशत कंज्यूमर्स ने ऐप या सॉफ्टवेयर-ए-ए-सर्विस प्लेटफार्म से कोई प्रोडक्ट सर्विस खरीदा है तो वो अक्सर एक सब्सक्रिप्शन ट्रैप बन जाता है। इसके अलावा 71 % लोगों ने जानकारी दी कि उन्हें खरीददारी के बाद, हिडेन चार्ज(Hidden Charges) देना पड़ता है।

लोग बने सर्वे का हिस्सा

बता दें कि लोकलसर्कल्स के सर्वे में हजारों लोगों ने भाग लिया। रिपोर्ट के अनुसार, भारत के 331 जिलों के ऐप और सॉफ्टवेयर सब्सक्रिप्शन यूजर्स की तरफ से लगभग 44000 से ज्यादा रिएक्शन आए। सरकार ने 13 तरह के डार्क पैटर्न की पहचान की है, जिसमें फॉल्स अरजेंसी , बास्केट स्नीकिंग, कन्फर्म शेमिंग, ऑर्सिड एक्शन, सब्सक्रिप्शन ट्रैप, इंटरफेस इंटरफेरेंस, बैट एंड स्विच, ड्रिप प्राइसिंग, खराब विज्ञापन और नैगिंग शामिल हैं।

इस रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि SaaS बिलिंग और दुष्ट मैलवेयर को डार्क पैटर्न के रूप में चिन्हित किया गया है। जिसका निष्कर्ष ‘डार्क पैटर्न’ से संबंधित बताया गया है। ये वेबसाइटों और ऐप्स के द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले उपाय हैं, जो कि कंज्यूमर्स को उत्पाद या सेवाएं खरीदने के लिए प्रोत्साहन प्रदान करती हैं।

इसका जिम्मेदार एआई भी

  • दरअसल, इन रिपोर्ट में ये भी पता चला है कि इस समस्या के लिए एआई भी काफी हद तक जिम्मेदार है। एआई चैटबॉट ऐप्स की एक नई पीढ़ी यूजर्स का ध्यान महंगी सर्विस की तरफ ले जा रहा है।
  • अब देखना है कि ये है कि सर्वे एजेंसी इन निष्कर्षों को सरकार के सामने कब पेश करेगी। इस रिपोर्ट में ये भी जानकारी दी गई है कि स्कैमर्स चैटजीपीटी के सॉफ़्टवेयर के साथ आने वाले ऐप को स्टोर पर ला रहे हैं। इन ऐप्स में अक्सर हाई सब्सक्रिप्शन फीस देनी पड़ती है।
  • वहीं सर्वे में शामिल लगभग 50 फीसदी कंज्यूमर्स ने ‘बेट और स्विच’ डार्क पैटर्न का एक्सपीरियंस किया। जबकि करीब 25 प्रतिशत कंज्यूमर्स ने कुछ ऐप्स में मैलवेयर का भी अनुभव किया। रिपोर्ट के मुताबिक डार्क वेब पर 815 मिलियन का आधार डेटा बिक्री पर है।

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