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बिहार का रिक्शावाला एप बनाकर दे रहा 50 प्रतिशत सस्ती सर्विस, टीम में IIT, IIM प्रोफेशनल भी शामिल

पटना, बिहार की प्रतिभा का डंका ऐसे ही देश भर में नहीं बजता, इसका उदाहरण यहां का रिक्शावाला दे रहा है. रिक्शा चलाकर जीवन यापन करने वाले सहरसा के युवक दिलखुश ने एक ऐसा एप तैयार किया है जिससे कैब बुकिंग किराये में आप 40 से 60 प्रतिशत तक बचा सकते हैं. इतना ही नहीं […]

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Bihar rickshawwala made app
  • August 23, 2022 5:01 pm Asia/KolkataIST, Updated 2 years ago

पटना, बिहार की प्रतिभा का डंका ऐसे ही देश भर में नहीं बजता, इसका उदाहरण यहां का रिक्शावाला दे रहा है. रिक्शा चलाकर जीवन यापन करने वाले सहरसा के युवक दिलखुश ने एक ऐसा एप तैयार किया है जिससे कैब बुकिंग किराये में आप 40 से 60 प्रतिशत तक बचा सकते हैं. इतना ही नहीं इस ऐप से कैब संचालकों की कमाई भी 10 से 15 हजार बढ़ सकती है. कैब सेवाओं से जुड़े इस ऐप का नाम रोडबेज रखा गया है. एक तरफ कैब बुकिंग की सुविधा देने वाला रोडबेज की लोकप्रियता को इसी से समझा जा सकता है कि मात्र डेढ़ महीने में इस ऐप को 42 हजार लोगों ने इंस्टॉल कर लिया है, आइए आज आपको इसके बारे में बताते हैं:

दिल्ली में रिक्शा चलाता था दिलखुश

हर दिन सैंकड़ों लोग रोडबेज ऐप का फायदा उठा रहे हैं. इस ऐप को बनाने वाला दिलखुश कभी खुद दिल्ली में रिक्शा चलाकर जीवन बसर करता था. दिलखुश की टीम में आज आईआईटी, आईआईएम, ट्रिपल आईटी से पढ़ाई पूरी करने वाले इंजीनियर और मैनेजर भी शामिल हैं. दिलखुश का यह स्टार्ट अप चंद्रगुप्त प्रबंध संस्थान पटना के इंक्यूबेशन सेंटर से इंक्यूबेटेड है, इसके बारे में दिलखुश ने बताया कि अभी राज्य में तीन हजार वाहनों का उसका नेटवर्क है और अगले छह महीने में 15 हजार वाहनों का नेटवर्क तैयार करने का लक्ष्य रखा गया है. दिलखुश की टीम में आज 16 लोग हैं, जिनमें भारत के उच्च शिक्षण संस्थानों से चार लोगों ने उच्च शिक्षा हासिल की है.

दिलखुश के पिता पिता बस ड्राइवर हैं, संसाधनों के अभाव में पढ़ाई नहीं कर पाया था, इसने थर्ड डिविजन से मैट्रिक की परीक्षा पास की है. अभावों में दिलखुश का बचपन गुजरा है, किसी तरह ये मैट्रिक तक की ही पढ़ाई कर पाया, इसके बाद दिल्ली चला गया कर यहाँ रूट का आइडिया न होने की वजह से दिलखुश ने रिक्शा चलाना शुरू किया, लेकिन आज दिलखुश रोडबेज ऐप को संचालित करता है, जिससे कई लोगों को फ़ायदा मिलता है.

 

 

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