नई दिल्ली। मौजूदा समय में कार निर्माता कंपनियां डीजल से चलने वाली कारों के निर्माण में लगातार गिरावट करती जा रही हैं बल्कि स्थिती तो यह आ गई है कि, कुछ कार निर्माता कम्पनियों ने डीजल गाड़ी बनाना ही बंद कर दी है जिसके चलते डीजल गाड़ी का भविष्य अंधकारमय होता जा रहा है। कई अहम कारणों के चलते कार निर्माता कम्पनियों को यह बड़ा क़दम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ा।
डीजल कारों के निर्माण में गिरावट की वजह कम्पनियों की कोई व्यक्तिगत त्रुटि या परेशानी नहीं है बल्कि उपभोक्ताओं एवं सरकार के बड़े फैसलों की वजह डीजल गाड़ियों के लिए काल बन रही हैं।
डीजल कारों के निर्माण पर रोक सबसे पहले भारत मे मारुति ने लगाई, मारुति की यह पहल अन्य कार निर्माता कम्पनियों के लिए एक क्रांति के रूप में सामने आई उसके बाद फॉक्सवैगन ग्रुप की फॉक्सवैगन, ऑडी, एवं स्कोडा ने भी डीजल कारों का निर्माण बंद कर दिया। उसके बाद रेनॉ और निसान ने भी भारत में डीजल कारों के उत्पादन में रोक लगा दी, हम आपको बता दें कि, दिल्ली जैसे महानगर एवं राष्ट्रीय राजधानी में 10 वर्ष से पुरानी डीजल कार प्रतिबंधित है।
सर्वप्रथम राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में 10 वर्ष से ज्यादा पुरानी डीजल गाड़ी प्रतिबंधित होना डीजल कार के उपभोक्ताओं के लिए घाटे का सौदा हो गया था। इससे भी ज़्यादा महत्वपूर्म बात यह है कि, डीजल और पेट्रोल के बीच का अन्तर कम होने के कारण उपभोक्ता डीजल गाड़ी को खरीदना पसंद करता था, जिससे उसे यात्रा के दौरान कम कीमत में ही यात्रा का सुख प्राप्त होता था। लेकिन यह अंतर कम होने के बाद यात्रा में ईंधन की कीमत पर कोई खास असर तो नहीं पड़ता बल्कि दस वर्ष बाद ही उसे नए वाहन को खरीदने की योजना बनानी पड़ती है।
हम आपको बता दें कि,जहां 2012 में डीजल वाहनों की बिक्री पेट्रोल वाहनों के मुकाबले ज्यादा थी, डीजल कारों की बिक्री 54 प्रतिशत और पेट्रोल कारों की बिक्री 45 प्रतिशत थी। वहीं 2022 आते आते डीजल वाहनों की बिक्री मात्र 18 प्रतिशत ही रह गई और पेट्रोल कारों की बिक्री बढ़ कर 69 प्रतिशत हो गई।
हम आपको बता दें कि, 2012 में डीजल एवं पेट्रोल के बीच अंतर 32.27 रुपए था वहीं 2022 आते आते यह अंतर मात्र 7 रुपए ही बचा जिसके चलते डीजल गाड़ियां पेट्रोल गाड़ियों के मुकाबले ज़यादा खर्च करवाने लगीं साथ ही एक्सपायरिंग अवधि भी दस वर्ष ही है।
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