नई दिल्ली : हाल ही में फेसबुक ने अपनी ट्रांसपेरेंसी रिपोर्ट में कहा था कि सरकार द्वारा यूजर का डाटा मांगने के अनुरोध 27 फीसदी बढ़ गए हैं. इसके बाद लोगों को इंटरनेट पर अपनी आज़ादी को लेकर फ़िक्र होने लगी थी.
ऐसे में सवाल ये भी उठता है कि भारत में ऑनलाइन डाटा की कितनी पड़ताल सरकार करती है? ये जानने से पहले जान लेते हैं कि ट्रांसपेरेंसी रिपोर्ट है क्या? दरअसल 2013 में एडवर्ड स्नोडन ने खुलासा किया था कि अमेरिका और यूरोपीय सरकारें बड़ी संख्या में नागरिकों की जासूसी करती हैं.
इसके बाद से फेसबुक, गूगल और माइक्रोसॉफ्ट ने सालाना ट्रांसपेरेंसी रिपोर्ट जारी करने का फैसला किया. इस रिर्पोर्ट में ये कंपनियां किसी देश की सरकार द्वारा उनसे यूजर के मांगे गए डाटा का खुलासा करती हैं. इन रिपोर्ट्स की पड़ताल कर चौकाने वाले तथ्य सामने आये. ये तथ्य इस तरह हैं.
– 2013 से अब तक पकिस्तान सरकार द्वारा यूज़र्स के आंकड़े मांगे जाने में 2000 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. भारत में यह दर 200 प्रतिशत की रही है.
– 2013 में पाकिस्तान सरकार ने यूजर डाटा के लिए केवल 23 अनुरोध किए थे. 2013 में ये बढ़ कर 700 हो गए. भारत में इस तरह की 3,245 रिक्वेस्ट 2013 में की गयी थी. 2016 में ये बढ़ कर 6,324 हो गयीं.
– इन आंकड़ों से ऐसा नहीं समझा जा सकता कि भारतीय इंटरनेट यूज़र्स की निजता खतरे में है. यहां इस बात को समझना जरुरी है कि भारत में फेसबुक का यूजर बेस 2013 में 9.2 करोड़ था. यह संख्या 2016 में बढ़कर 19.5 करोड़ पर पहुंच गई. यूजर बेस के आधार पर देखें तो भारत में डाटा मांगने की रिक्वेस्ट में कमी आई है. हालांकि ये गिरावट 3 से 7 फीसदी की ही है.
– पश्चिमी देशों के मुकाबले भारत ऑनलाइन डाटा की पड़ताल में काफी पीछे है. अमेरिका की बात करें तो गूगल और फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म पर ग्लोबल रिक्वेस्ट में अमेरिका की हिस्सेदारी आधी है.
– जर्मनी की ओर से भी भारत के मुकाबले इस तरह के अनुरोध दुगनी संख्या में मिलते हैं.